Tuesday, March 29, 2011

संघर्षों से डा.जोशी ने लिखी सफलता की कहानी

जर्मन में दो साल तक रहकर शोध कार्य किया पूरा

अब भारत में रहकर ही शोध आगे बढ़ाने की तमन्ना

बागानों में मजदूरी कर पढऩे वाले  युवा वैज्ञानिक डा.केबी जोशी से बातचीत।

जहांगीर राजू रुद्रपुर

लीची के बागानों में मजदूरी कर पढ़ाई करने वाले युवा वैज्ञानिक डा.केबी जोशी संघर्षों के दम पर सफलता की नई कहानी लिखी है। जर्मनी स्थित फैकफर्ट की गौथे यूनिवर्सिटी में दो साल रहकर नैनो टैक्नालाजी में शोध करने के बाद उनकी तमन्ना है कि वह अब भारत में रहकर ही अपनी शोध को आगे बढाएं। मूलरुप से अल्मोड़ा जिले में स्थित जागेश्वर के नैना गांव निवासी डा.केबी जोशी का परिवार वर्तमान में कालाढूंगी के चकलुवा गांव में जाकर बस गया है। पूरी तरह के ग्रामीण परिवेश व ग्रामीण विद्यालयों में पढ़े डा.जोशी ने अपनी पढ़ाई को आगे बढ़ाने के लिए लीची के  बागानों में मजदूरी की। सुबह व शाम के वक्त बागानों में मजदूरी करने के बाद वह समय निकालकर मन से पढ़ाई किया करते थे। चकलुवा गांव में रहते हुए जब उनकी झोपड़ी जलकर राख हो गयी थी तो उनके सामने पढ़ाई आगे बढ़ाने का संकट पैदा हो गया था। जिसके चलते वह निराश होकर फौंज में भर्ती होने गए, लेकिन मजदूरी के दौरान हाथ टूट जाने के कारण वह भर्ती भी नहीं हो सके।
इस दौरान उनके मित्र नरेन्द्र सिजवाली ने उन्हें हल्द्वानी बुला लिया और बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपनी पढ़ाई भी आगे बढ़ाने को कहा। इसके बाद भी डा.जोशी का संघर्ष जारी रखा। ट्यूशन पढ़ाने के साथ ही उन्होंने वर्ष 2000 में एमएसी कैमिस्ट्री की पढ़ाई पूरी की। जिसके बाद उन्होंने 2008 में पीएचडी की। अपने शोध को आगे बढ़ाने के लिए वर्ष 2009 में उनका चयन जर्मन की प्रतिष्ठित हमबोर्ड फैलोशिप के लिए चयन हुआ। 15 मार्च 2009 से 28 फरवरी 201१ तक जर्मनी स्थित फ्रैकंफर्ट की गौथे यूनिवसिर्टी में उन्होंने नैनो टैक्नालाजी पर शोध किया। जहां रहकर उन्होंने अपनी बौद्धिक संपदा का विकास किया। उन्होंने ब्रेनड्रेन के लिए जर्मन में शिक्षा प्राप्त नहीं की। वर्तमान में वह इसी यूनिवर्सिटी में गेस्ट साइंटिस्ट के रुप में कार्य कर रहं हैं।
डा.जोशी की तमन्ना है कि वह भारत में रहकर ही अपने शोध कार्य को आगे बढ़ाएं। जिसके लिए उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट आफ साइंस एजूकेशन एंड रिसर्च मोहाली में साक्षात्कार दिया है। इसके साथ ही आईआईटी पटना ने भी उन्हें एसिस्टेंट प्रोफेसर के पद नौकरी के लिए आमंत्रित किया है। डा.जोशी का मानना है कि लगातार विदेशों मंे जाकर रह रहे युवाओं को रोकने के लिए बेहतर नीति बनाए जाने की जरुरत है। उन्होंने बताया कि वह वर्तमान मे जर्मन में ही सेेवारत हैं, बावजूद इसके उन्हें जर्मन में रोजगार के लिए बड़े-बड़े आफर मिल रहे हैं, लेकिन उन्होंने भारत में ही रहकर अपने शोध कार्य को आगे बढ़ाने का निर्णय लिया है।
उन्होंने कहा कि विदेशों में रहकर शिक्षा ग्रहण करने वाले युवा वैज्ञानिकों को यदि अपने ही देश में रोजगार के बेहतर माध्यम मुहैया हों तो उन्हें विदेशों में जाने से रोका जा सकता है। वह कहते हैं कि भारत में नैनो टैक्नालाजी के क्षेत्र में शोध की अपार संभावनाएं हैं। इसीलिए उन्होंने अपने देश में रहकर इस क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने का मन बनाया है। डा.जोशी ने संघर्षों के दम पर अपनी सफलता की जो कहानी लिखी है, उससे युवा पीढ़ी को सबक जरुर दोहराना चाहिए।

Friday, March 25, 2011

पत्रकारिता की धार बढ़ाने के लिए एकजुट हुए पत्रकार

विजयवर्धन उप्रेती व भक्तदर्शन पांडे को उमेश डोभाल स्मृति सम्मान

उमेश डोभाल स्मृति समारोह रूद्रपुर में संपन्न             

              (चंदन बंगारी रूद्रपुर से)  

उत्तराखंड में जनपक्षीय पत्रकारिता की धारा को आगे बढ़ाने के संकल्प के साथ 21 वां उमेश डोभाल स्मृति समारोह सम्पन्न हुआ। उमेश डोभाल स्मृति ट्रस्ट के तत्वावधान में आयोजित समारोह में युवा पत्रकारिता पुरस्कार इलैक्ट्रॉनिक मीडिया के लिए विजयवर्धन उप्रेती व प्रिंट मीडिया के लिए भक्तदर्शन पांडे को दिया गया, जबकि उमेश डोभाल स्मृति सम्मान डॉ0 शेर सिंह पांगती को दिया गया। इसी वर्ष से शुरू हुआ जनकवि गिरीश तिवारी गिर्दा सम्मान जनकवि अतुल शर्मा व राजेंद्र रावत जनसरोकार सम्मान बीज बचाओ के प्रणेता विजय जड़धारी को दिया गया। सभी ने उमेश डोभाल की परंपरा को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। शुक्रवार को रूद्रपुर सिटी क्लब सभागार में आयोजित समारोह के पहले सत्र का शुभारंभ पंतनगर विश्वविद्यालय के कुलपति डा. बीएस बिष्ट व आजादी बचाओ आंदोलन के राष्ट्रीय संयोजक बनवारी लाल शर्मा ने दीप प्रज्जवलित कर किया। मुख्य वक्ता बनवारी लाल शर्मा ने कहा कि राजनीति व मीडिया में कारपोरेट कंपनियों का दखल समाप्त किए जाने की जरूरत है।
कारपोरेट के बढ़ते दखल से मीडिया आम आदमी के सवालों को दमदार ढंग से नही उठा पा रहा है। मीडिया कारपोरेट का ऐजेंट बन गया है। उन्होंने लोकतांत्रिक व्यवस्था की कारपोरेट परस्ती के दौर मंे मीडिया के व्यवसायीकरण पर गहरी चिंता जताई। जनकवि अतुल शर्मा ने गिर्दा के गाए गीत सुनाकर समां बांध दिया। विजय जड़धारी ने कहा कि खेती की असली बुनियाद बीज है। जैविक खेती व परंपरागत बीजों को बचाने की जरूरत है। पहाड़ को जिंदा रखने के लिए जैविविधता को बचाने की जरूरत है। डा. शेर सिंह पांगती ने पहाड़ की लोक भाषाओं के शब्दों का संकलन को आने वाली पीढ़ी के लिए बचाए रखने की जरूरत पर बल दिया। पुरस्कार से सम्मानित हुए दोनों युवा पत्रकारों विजयवर्धन व भक्तदर्शन ने पत्रकारिता के समक्ष आ रही चुनौतियों के बारे में बताया।
 वरिष्ठ पत्रकार एवं ट्रस्ट के अध्यक्ष गोविंद पंत राजू ने संस्था का इतिहास बताते हुए गतिविधियों की जानकारियां दी। इस दौरान ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित स्मारिका का विमोचन किया गया। पहले सत्र के कार्यक्रम का संचालन योगेश धस्माना व कस्तुरी लाल ने संयुक्त रूप से किया। दूसरे सत्र में वैकल्पिक मीडिया की चुनौतियां विषय पर संगोष्ठी आयोजित हुई। पत्रकार राजीव खन्ना ने कहा कि कम्यूनिटी रेडियो व इंटरनेट के माध्यम से अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचा जा सकता है। सुभाष चतुर्वेदी ने कहा कि पहाड़ में बढ़ते शराब माफिया वहां के जनजीवन को निगल रहे है। भूपेंद्र सिंह ने कहा कि मीडिया में जनता के मूलभूत सवालों से मुंह चुराने की कौशिश की जा रही है। मीडिया की संरचना को समझने की जरूरत है। वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर भटट ने कहा कि मीडिया की भूमिका जनता के पक्ष व राजनीति के विपक्ष में ही सशक्त होती है।
उमाशंकर थपलियाल ने कहा कि मीडिया की कुंद पड़ी धार तेज करने की जरूरत है। पूर्व विधायक मुन्ना सिंह चौहान ने कहा कि जनसरोकार की चीजें मीडिया से दूर होती जा रही है। आज पत्रकारों को बुनियादी सरोकारों को साहस के साथ कहने की जरूरत है। राजीव लोचन शाह ने कहा कि मीडिया का चरित्र निश्चितरूप से जनविरोधी है। जनआंदोलन तेज होगा तो निश्चितरूप से मीडिया में भी बदलाव आएगा। दूसरे सत्र का संचालन वरिष्ठ पत्रकार गोविंद पंत ने किया। समारोह स्थल में कोटद्वार से आए देवंेद्र नैथानी की 300 कविताओं को दर्शाती पोस्टर प्रदर्शनी आकर्षण का केंद्र रही। इस मौके पर ट्रस्ट के सचिव ललित मोहन कोठियाल, प्रोफेसर शेखर पाठक, मथुरा दत्त मठपाल, ओंकार बहुगुणा, एपी घायल, भूपेंद्र सिंह, जितेंद्र भटट, पूनम पांडे, महेश जोशी, बी शंकर, सुशील सीतापुरी, विधि चंद्र सिंघल, दीपक आजाद, आनंद बल्लभ उप्रेती, पीसी तिवारी, सूरज कुकरेती, गणेश रावत, मनीष सुंद्रियाल, जगमोहन रौतेला, ओपी पांडे, अशोक पांडे, सहित देश के अलग-अलग हिस्सों से आए पत्रकार व बुद्विजीवी मौजूद रहे।     

Tuesday, March 8, 2011

महिलाओं को क्यों नहीं मिलता अपना आसमान ?

समाज सेवी नफीसा अली से बातचीत।
        (रुद्रपुर से जहांगीर राजू)

समाजसेवी, पूर्व मिस इंडिया व फिल्म अभिनेत्री नफीसा अली का कहना है कि समाज में महिलाओं को बराबर की हिस्सेदारी तभी मिल सकती है, जब जन्म के बाद से ही उसे परिवार में बाराबरी का दर्जा मिले। हम लोगों को अपने घर से ही इस मुहिम की शुरुआत करनी चाहिए। वह कहती हैं कि समाज में पुरुषों की तरह महिलाओं के अपने सपने होते हैं। ऐसे में उन्हें अपने सपनों को जीने की आजादी जरुर मिलनी चाहिए।अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर नफीसा अली ने बातचीत में कहा कि महिलाओं को क्यों नहीं मिलता अपना आसमान ?। उन्होंने कहा कि महिलाओं को जिस क्षेत्र में भी आगे बढऩे का मौका मिला है, उसने उस क्षेत्र में अपनी काबलियत को साबित करके दिखायी है। आज देश की प्रथम नागरिक से लेकर अन्तरिक्ष तक के क्षेत्र में हो रहे शोध कार्यों में महिलाओं ने अपने आप को साबित कर दिखाया है, बावजूद इसके लोगों का महिलाओं के प्रति नजरिया नहीं बदला है। ऐसे में हमें पुरुष प्रधान समाज के दायरे से बाहर निकलकर महिलाओं को भी हर क्षेत्र में बराबरी का दर्जा देना होगा।
वह कहती हैं कि समाज में आज भी बेटी को दुनिया में आने से पहले भ्रुण में ही उसकी हत्या कर दी जाती है या फिर कुपोषण व उपचार के दौरान उसकी मौत हो जाती है, लेकिन बेटे कभी भी इलाज के अभाव में नहीं मरते। जिससे स्पष्ट होता है कि बेटी को आज भी हम बराबरी का हक नहीं दे पाए हैं। उन्होंने कहा कि दो बार चुनाव लडक़र देश की राजनैतिक स्थितियों को देश चुकी हैं। वह अब दोबारा कभी भी चुनाव नहीं लड़ेंगी। लेकिन कांग्रेस से जुड़े रहकर वह क्षेत्र में पॉलिटिकल रिफोम के क्षेत्र में काम करेंगी। उन्होंने बताया कि देश में सिख दंगों को लेकर जिम्मेदार लोगों को टिकट देने के विरोध में ही उन्होंने कांग्रेस छोडक़र सपा का दामन थामा था,
लेकिन अब वह हमेशा कांग्रेस के साथ ही बने रहना चाहेंगी। उन्होंने कहा कि आज राजनीति काफी हद तक दूषित हो चुकी है। देश में महात्मा गांधी बनकर राजनीति करने वाला कोई नहीं रहा। ऐसे में उनका प्रयास रहेगा कि लोगों को बेहतर राजनीति के लिए प्रेरित किया जाए। उन्होंने बताया कि वह समाज सेेवा के क्षेत्र में भी काम कर रही हैं। दिल्ली में रहकर वह लोगों को एड्स के प्रति जागरुक करने के साथ ही महिलाओं व वृद्ध लोगों के लिए काम कर रही हैं। उनका प्रयास रहेगा कि उत्तराखंड के लोगों के बीच भी समाज सेेह्ला के क्षेत्र में कार्य किया जाए।

...अब समाज सेवा करेगी क्लोडिया

रुद्रपुर। बिग बॉस फेम जर्मन मॉडल क्लोडिया सिएसला अब समाज सेेवा के क्षेत्र में भी काम करेगी। इस क्षेत्र में काम करने के लिए वह स्वयं सेवी संस्था वाटर की अन्तर्राष्ट्रीय ब्रांड एंबेसडर बनी हैं। क्लोडिया ने कहा कि जर्मन के मुकाबले भारत के सुदूरवर्ती गांवों में रहने वाली महिलाओं की स्थिति बहुत अच्छी नहीं हैं। ऐसे में समाज के लोगों की जिम्मेदारी है कि वह महिलाओं को विकास की मुख्य धारा में लाने के लिए काम करें। उन्होंने कहा कि वह एनजीओ वाटर से जुडक़र अब लगातार उत्तराखंड आते रहेंगी। यहां रहकर वह महिलाओं, बुजुर्गों व युवाओं के बीज जाकर काम करेंगी। उन्होंने बताया कि अब वह पूरी तरह से मुंबई में रहने लगी हैं। मुंबई में रहकर वह हिन्दी व साउथ इंडियन फिल्मों के लिए काम कर रही हैं। फिल्मों के साथ ही समाज सेवा के क्षेत्र में काम करना उनके लिए बेहतर माध्यम है। क्लोडिया ने बताया कि कलर्स चौनल के रियलिटी शो बीग बॉस में काम करने के दौरान उन्हें हिन्दी सिखने का मौका मिला। हिन्दी सिखने के बाद उन्हें हिन्दी फिल्मों में काम करने में आसानी हो रही है।

Saturday, March 5, 2011

तनु वैड्स मनु के पप्पी ने किया दर्शकों के दिल में राज

मुंबई कटिंग व  तीन थे भाई होगी अगली फिल्म

काबरा का दीपक  डोबरियाल अब बना हिरो

(रुद्रपुर से जहांगीर राजू)

मूलरुप से उत्तराखंड स्थित पौड़ी जिले के सुदूरवर्ती गंाव काबरा का युवक दीपक डोबरियाल इन दिनों अपनी चर्चित फिल्म तनु वैड्स मनु में बेहतर अभिनय कर लोगों के दिलों में राज कर रहा है। काबरा गांव के इस पप्पी का किरदार लोगों को खुब पसंद आ रहा है।
विशाल भारद्वाज की फिल्म ओमकारा से अभिनय की शुरुआत करने वाला दीपक डोबरियाल इन दिनों बालीवुड की फिल्म तनु वैड्स मनु में धमाल मचा रहे हैं। इस फिल्म की सफलता के बाद दीपक का मानना है कि तनु वैड्स मनु उनके फिल्मी करियर के लिए टर्निंग प्वाइंट है।
दीपक डोबरियाल पूरी तरह से पहाड़ की संस्कृति व परिवेश में रचे बसे हुए हैं। वह पहाड़ के परिवेश में बनी बेला नेगी की फिल्म दायें या बाएं में अभिनय कर चुके हैं। इस फिल्म में उन्होंने प्रख्यात रंगकर्मी स्व.गिरीश तिवारी गिर्दा के साथ अभियन किया है।
दीपक को इस फिल्म का ज्यादा प्रचार नहीं हो पाने का गम है। वह कहते हैं कि एक बेहतर फिल्म होने के बावजूद दायें या बाएं अधिक लोगों तक नहीं पहुंच पायी। दीपक का मानना है कि पहाड़ के लोगों की फिलिंग बहुत अच्छी होती है। एक कलाकार की सफलता के पीछे 80 फीसदी फीलिंग व 20 फीसदी टेलेंट काम करता है। बेहतर फीलिंग के चलते ही वह अपने किरदार में सही ढंग से उतर पाते हैं। बालीवुड की फिल्म तनु वैड्स मनु में उनका किरदार पप्पी लोगों को काफी पसंद आ रहा है। इस फिल्म में पप्पी शर्मिले मनु (माधवन) की आवाज बने हुए हैं। फिल्म में दर्शन मनु के दिल की हर बात को पप्पी की जुबान से सुनना चाहते हैं। तनु वैड्स मनु एक रोमांटिक कामेडी है। जिसमें उत्तराखंड का दीपक लोगों के दिलों में राज कर रहा है।
16 करोड़ के बजट की यह फिल्म मात्र चार दिनों में ही 17 करोड़ से अधिक का कारोबार कर चुकी है। दीपक बताते हैं कि यह फिल्म उनके फिल्मी करियर का टर्निंग प्वाइंट है। दीपक ने बताया कि फिल्म ओमकारा के साथ उनके करियर की शुरुआत हुई। इस फिल्म में अभिनय के लिए उन्हें बेस्ट क्रिटिक का एवार्ड मिला था। इस फिल्म के बाद उन्होंने गुलाल, दिल्ली-6, सौर्य, 13-बी, 19६1 में काम कर चुके हैं। ओम प्रकाश मेहरा के बैनर पर बन रही फिल्म तीन थे भाई उनकी अगली फिल्म है। इस फिल्म में ओमपुरी, दीपक डोबरियाल व श्रेयस तलपड़े मुख्य भूमिका में हैं। यह फिल्म अप्रैल माह में रिलीज होगी। इसके साथ ही व सहारा वन के बैनर पर बनी फिल्म मुंबई कटिंग में भी नजर आएंगे। यह फिल्म भी अप्रैल माह में प्रदर्शित की जाएगी। उन्हें अपनी आने वाली इन दोनों फिल्मों से काफी उम्मीद है। वह कहते हैं कि इन फिल्मों में भी उनका किरदार लोगों को जरुर पसंद आएगा। दीपक बताते हैं कि उत्तराखंड के लोगों में काफी टेलंेट है। दीपक कहते हैं फिल्मों की शूटिंग से छूट्टी मिलते ही वह अपने गांव जरुर  जाएंगे। दीपक का मानना है कि हम अपनी जड़ों से जुड़े रहकर हर क्षेत्र में बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। वह कहते हैं कि अपनी जड़ों को भूलकर हम इंसानियत व दायित्वों को भी भूल जाते हैं। जिसका असर हमारे करियर में भी पड़ता है। दीपक ने कहा कि उत्तराखंड के युवाओं में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है। ऐसे में उन्हें मात्र सही दिशा दिए जाने की जरुरत है। उनका प्रयास रहेगा कि यहां के अधिक से अधिक युवाओं को बालीवुड से जोड़ा जाए।