अंग्रेजों ने तीन बार सुनायी थी कालापानी की सजा
जेल में थे तो पत्नी व बेटी की हो गयी थी मौत
स्वतंत्रता सेनानी भगवान प्रसाद शुक्ला से संस्मरण
(रुद्रपुर से जहांगीर राजू)
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगवान प्रसाद शुक्ला |
शहीद भगत सिंह, अशफ़ाक उल्ला खां, राम प्रसाद बिस्मिल के आजादी के सपने को आगे बढ़ाने के लिए सशस्त्र क्रांति के जरिए आजादी के आंदोलन में कूदे स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगवान प्रसाद शुक्ला ने अपने दोस्तों के साथ मिलकर सहजनवा में ट्रेन रोक कर सरकारी खजाने से 10 हजार रुपये लूट लिए थे। जिसके बाद उन्होंने आजादी के लिए सशस्त्र संघर्ष को आगे बढ़ाया। गांधी जी के सत्याग्रह से अंग्रेजों को कभी भी कोई भय नहीं रहा। देश की वर्तमान हालत को देखते हुए निराशा भरे शब्दों में वह कहते हैं कि देश को आज भी वास्तविक आजादी नहीं मिली। इस आजादी से उन्हें सिर्फ जेल से बाहर आने का मौका मिला, लेकिन शहीद आंदोलनकारियों के सपने अबतक पूरे नहीं हो पाए हैं। वह कहते हैं कि शहीद भगत सिंह व मार्क्स के साम्यवाद के रास्ते पर चलकर ही देश में अमीरी व गरीबी के बीच की दिवार को समाप्त कर असली आजादी प्राप्त की जा सकती है। देश में जब तक लोगों के पास व्यक्तिगत संपत्ति रहेगी तब तक यह लड़ाई चलते ही रहेगी। वह कहते हैं कि भ्रष्टाचार आजादी का सबसे बड़ा दुश्मन है। वह देश में भ्रष्टाचार के खिलाफ चलने वाले हर संघर्ष का समर्थन करते हैं। वह कहते हैं कि देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिलाने के लिए फिर से एक आंदोलन की जरुरत है। युवा इस आंदोलन को आगे बढ़ाकर देश को भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला सकते हैं।
शहीद भगत सिंह का नाम जुबां पर आते ही 95 वर्षीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भगवान प्रसाद शुक्ला के आखों में आंसू आ जाते हैं। वह बताते हैं कि भगत सिंह से प्रेरणा लेते हुए ही उन्होंने 23 मार्च 1942 को उनके शहादत दिवस पर गोरखपुर जिले के सहजनवा क्षेत्र में अपने मित्र हरि प्रताप तिवारी, बाल स्वरुप शर्मा, कैलाश पति मिश्रा व बनारस से आए दो क्रांतिकारियों के साथ मिलकर ट्रेन को लूटा था। इस ट्रेन से लूटे 10 हजार रुपये से उन्होंने हथियार खरीदर सशस्त्र क्रांति के आंदोलन को आगे बढ़ाया था। इस दौरान अंग्रेज सरकार ने उनपर मुकदमा चलाकर उन्हें तीन बार कालापानी की सजा सुनायी। सहजनवा कांस्प्रेसी, सहजनवा ट्रेन लूटकांड व लखनऊ कांस्प्रेसी के लिए उन्हें 75 साल जेल में रहने की सजा सुनायी गयी। इसके बाद से ही वह जेल से फरार चल रहे थे। 1943 में गिरतार होने के बाद वह पांच साल तक बरेली व लखनऊ जेल में रहे। इस दौरान उनकी पत्नी राजपति व सात माह की बेटी की मौत हो गयी। घर में हुए इस दुखद हादसे ने उन्हें हिलाकर रख दिया। बावजूद इसके वह जेल में रहकर ही साथियों की मदद से आंदोलन को आगे बढ़ाते रहे। भगवान प्रसाद शुक्ला कहते हैं कि शहीद भगत सिंह व सुभाष चन्द्र बोस के आंदोलन के जरिए ही देश को आजादी मिली।