Wednesday, June 29, 2011

अरब देशों तक जाती हैं तराई में बनी रजाई

तीन हजार से अधिक महिलाओं को मिला रोजगार

घर बैठे रोजगार का जरिया बना हैंड कुल्टिंग
 
(रुद्रपुर से जहांगीर राजू)
दिनेशपुर में रजाई तैयार करती महिलाएं।

दिनेशपुर, रुद्रपुर, शाक्तिफार्म, खटीमा व आसपास के क्षेत्रों में बनने वाली रजाई अरब देशों तक निर्यात की जाती हैं। फैक्ट्री से सामान लाकर महिलाएं घर बैठे तगाई कर रजाईतैयार करती हैं। जिससे उन्हें हर रोज 150 से लेकर 250 रुपये तक की कमाई हो जाती है। क्षेत्र में तीन हजार से अधिक महिलाएं इस रोजगार से जुड़ी हुई हैं।बंगाली बाहुल्य क्षेत्र होने के कारण दिनेशपुर में हैंड कुल्टिंग का सबसे अधिक काम होता है। यहां घर-घर में महिलाएं हैंड कुल्टिंग का कार्य करती हैं। सिंगल बैड की रजाई तैयार करने में उन्हें प्रति रजाई 8५ रुपये मिलते हैं। एक दिन में एक महिला तीन रजाई की तगाई कर 250 रुपये तक आसानी से कमा लेती हैं। इसी तरह से डबल बैड की रजाई की तगाई करने में दो महिलाओं को पूरा दिन लगा जाता है। यह रजाई तैयार कर उन्हें 450 रुपये मिलते हैं। इस प्रकार देखा जाए बगैर कोई लागत लगाये महिलाएं हैंड कुल्टिंग से 150 से लेकर 250 रुपये तक आसानी से कमा लेती हैं। रजाई तैयार करने के लिए उन्हें सारा सामान एक्सपोर्टर कंपनियों से घर पर ही मिल जाता है। दिनेशपुर के साथ ही रुद्रपुर, शक्तिफार्म, खटीमा व आसपास के क्षेत्रों में भी इसका कारोबार बढऩे लगा है। रुद्रपुर में भी दर्जनों घरों में हैंड कुल्टिंग का कार्य किया जाता है। इसके साथ ही यहां कई रजाई सेंटर चल रहे हैं। जहां आकर महिलाएं दिनभर रजाई का कार्य करती हैं।
एक्सपोर्ट क्वालिटी की रजाईयों की बढ़ती मांग को देखते हुए सिडकुल में रजाई बनाने वाली दो बड़ी कंपनियां स्थापित हो चुकी हैं। जिसमें एक हजार से अधिक महिलाएं काम करती हैं।

तराई की रजाईयों की विदेशों में मांग


रुद्रपुर। तराई में बनने एक्सपोर्ट क्वालिटी की रजाई की मांग लगातार बढ़ रही हैं। तराई में तैयार की जानी वाली इन रजाईयों को फैक्ट्री मालिक दिल्ली की मंडी तक भेजते हैं। जहां से एक्सपोर्टर उसे जापान, अमेरिका, इंग्लैंड, कनाडा व श्रीलंका आदि देशों को निर्यात करते हैं। विदेशों में जाने बिकने वाली इन रजाईयों की कीमत 5 से लेकर 25 हजार रुपये तक होती है। क्षेत्र में तैयार होने वाली खुबसूरत कढ़ाईदार रजाईयों की अरब देशों में सर्वाधिक मांग है।


एक्सपोर्टरों को मलाई, महिलाओं को मात्र रोटी

रुद्रपुर। रजाई उत्पादन में लगे बड़े एक्सपोर्टर इससे बड़ा मुनाफा कमाते हैं, लेकिन इस काम में लगी दिन रात पसीना बहाने वाली महिलाओं को मात्र दो वक्त की रोटी ही आसानी से मिल पाती हैं। इस काम में एक्सपोर्टर जहां एक रजाई को विदेशों में बेचकर पांच हजार रुपये तक का मुनाफा कमाते हैं वहीं महिलाओं को मात्र 150- से 250 रुपये तक ही मिल पाते हैं। सरस्वती मंडल, नेहा वैद्य, श्यामली देवी बताती हैं कि दिनभर पसीना बहाने के बाद 150 रुपये तक की कमाई होती हैं। उन्होंने कहा कि इस रोजगार से जुड़ी महिलाओं की मजदूरी और अधिक बढऩी चाहिए।



Tuesday, June 21, 2011

किंग कोबरा शिशुओं को जन्म देगा

शर्मिला ऐसा की नयी  दुल्हन भी इसके सामने  कुछ  नही 

खतरनाक इतना क खूंखार  जानवर  भी इसके सामने पानी न मागे

कमल जगती, नैनीताल

 जी हाँ  हम  बात कर रहे हैं  हिन्दुस्तानी किंग कोबरा की जो इन दिनो नैनीताल के समीप  ज्युलिकोट  के  जंगलों  में अपने नये शिशुओ को जन्म देने के लिए एसुन्दर सा माहौल तैयार कर रही  है ! डीएफ़ओ बिजु लाल टीआर के अनुसार ये किंग  कोबर प्रजाति का साप  मण्डल  के पहाडी क्षेत्रो व तराई  भाभर में पाया जाता है !  किंग कोबरा जहाँ लोगों के लिए एक कौतुहल  के अलावा आस्था का प्रतीक है वहीँ कुछ लोग इसे प्राकर्तिक संतुलन बनाने  में मददगार  मानते हैं ! इनदिनों एक मादा  किंग कोबरा अपने बच्चे जनने के लिए अपना घोंसला नैनीताल के समीप ज्योलीकोट के जंगल में बना रही है जहाँ गांववासियों का जाना मना कर दिया गया है ! वो अपने  घोसले को माहौल के अनुसार तैयार कर रही है ! किंग कोबरा के लिए कहा जाता है की विश्व में ये ही केवल सांप है जो अपने लिए घोंसला बनाता है !  इसे  इस क्षेत्र के लिए सौभाग्य की बात मानी जा रही है, कोबरा को सिदुल-1 में बाघों के साथ रखा गया है ! ये विलुप्तप्राय प्राड़ी पहाड़ों व तराई भाबर क्षेत्र में बहुतायत में पाए जाते हैं !  
जानकारों के अनुसार ये शर्मीले जीव होते हैं और मनुष्यों को इन  सर्पों द्वारा काटे जानें के बहुत कम मामले सामने आए हैं ! ये सांप किसी आहट को सुनते ही चुपके से खिसक लेते हैं ! वन विभाग ने इस मौके को गंभीरता से लेते हुए इस प्रजनन क्रिया को मोनिटर  करने के लिए एक विशेषज्ञ को जिम्मेदारी सौपी है व इसे कैमरे में कैद करने की व्यवस्था की है ! जिम्मेदार व्यक्ति के अनुसार जहाँ प्रजनन के लिए ये सांप अपना माहौल तैयार कर रहा है वहीँ इसे देखने के लिए गाँव से लोग जमा हो रहे हैं जो इस क्रिया को रूप लेने में दिक्कत पैदा कर सकता है ! उन्होनें भी नज़र बनाये रखने के लिए कुछ दूर अपना ठिया बनाया है ! विभाग ने  ग्रामीणों के द्वारा लगाई गई भीड़ को कम करने के लिए तार बाड लगाएं हैं व उन्हें दूर रहने की  हिदायत दी जा रही है !
कुछ वर्ष पहले भी इसी प्रकार रामगढ में किंग कोबरा ने शिशुओं को जन्म दिया था जो काफी मशहूर हुआ था ! उनका कहना है की अगर ये प्रक्रिया सफलता पूर्वक पूर्ण हो जाती है तो प्राकर्ति के लिए अच्छा इशारा होगा ! ये सांप 12  से 18 फीट लम्बे होते हैं और अपने सीकर को मरने में इनका जहर का एक छोटा हिस्सा ही इस्तेमाल होता है ! ये दिनभर खुले आम
 घूमते हैं और अन्य सापों की तरह बिलों में छुपकर नहीं रहते ! सबकुछ अगर ठीक रहा तो पांच छह दिनों में अच्छे परिणIम सामने आएंगे !

Thursday, June 9, 2011

राज्य के सर्वश्रेष्ठ एथलिट का ऐसा हाल क्यों ?

रहने व खाने तक को मोहताज नेशनल एथलिट कोरंगा

अबतक हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में छह गोल्ड जीते

नेशनल यूथ एथलेटिक्स चौंपियनशिप में जीता गोल्ड

                        (रुद्रपुर से जहांगीर राजू)

होने को राष्ट्रीय अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर बेहतर प्रदर्शन करने वाले खिलाडिय़ों की बेहतरी के लिए हर क्षेत्र में तमाम वादे किए जाते हैं लेकिन राज्य के सर्वश्रेष्ठ एथलिट हरीश कोरंगा के पास रहने व खाते तक की कोई व्यवस्था नहीं है। वह अब तक राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 6 स्वर्ण पदक प्राप्त कर चुका है। सरकार की ओर से कोई  सुविधा नहीं मिल पाने के कारण उसे अपनी प्रतिभा को आगे बढ़ाने में तमाम परेशानियां हो रही हैं।
मूलरुप से बागेश्वर जिले के भनार गंाव निवासी हरीश कोरंगा जनता इंटर कालेज रुद्रपुर में हाईस्कूल का छात्र है। वह ऊधमसिंह नगर स्पोर्ट्स स्डेडियम में प्रतिदिन 30 किलोमीटर तक की रनिंग करता है। कड़ी मेहनत के बदौलत वह पुणे में हुई राष्ट्रीय स्तर की स्कूल स्तरीय प्रतियोगिता में 1500 व 3000 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक प्राप्त कर चुका है। आन्ध्र प्रदेश में हुई राष्ट्रीय स्तर की ग्रामीण खेल प्रतियोगिता में भी हरीश ने 800, 1500 व 3000 मीटर दौड़ में स्वर्ण प्राप्त किया। दिल्ली में हुई नेशनल जूनियर क्रास कंट्री में हरीश ने रजत पदक प्राप्त किया। 27 से 29 मई तक रांची में हुई नेशनल यूथ चौंपियनशिप में हरीश ने 1500 मीटर दौड़ में स्वर्ण पदक प्राप्त किया। अबतक राष्ट्रीय प्रतियोगिता में छह स्वर्ण प्राप्त कर चुका हरीश राज्य का सर्वश्रेष्ठ एथलिट है। बावजूद उसे अपनी खेल प्रतिभा को आगे बढ़ाने में सरकार से कोई भी मदद नहीं मिल पा रही है।
गांव में रह रहे पिता बलवंत सिंह कोरंगा के विकलांग होने व तीन बच्चों की पढ़ाई की जिम्मेदारी होने के कारण वह हरीश को मदद नहीं कर पाते हैं। स्थिति यह है कि उसे खाने व रहने तक के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। ऊधमसिंह नगर के जिला क्रिड़ा अधिकारी सुरेश चन्द्र पांडे ही वर्तमान में उसे व्यक्तिगत रुप से उसे खेल की सुविधा मुहैया करा रहे हैं। हाल में रांची में हुई राष्ट्रीय प्रतियोगिता में राज्य के लिए स्वर्ण पदक जीतकर लाए हरीश कोरंगा की तमन्ना है कि वह एशियन गेम्स में स्वर्ण पदक प्राप्त कर देश व क्षेत्र का नाम रोशन करे।
लेकिन सुविधाओं के अभाव में उसे अपनी प्रतिभाग को आगे बढ़ाने मंे काफी दिक्कतें आ रही हैं। उसे उम्मीद है कि सरकार से उसे कोई न कोई मदद जरुर मुहैया करायी जाएगी। जिसकी मदद से वह अपनी खेल प्रतिभा को आगे बढ़ाते हुए देश के लिए स्वर्ण पदक लेकर आएगा।