गिर्दा हमारी यादों, संघर्षों में हमेशा जिंदा रहेंगे
(जहांगीर राजू)
हम मेहनकश जगवालों से जब अपना हिस्सा मागेगे
एक खेत नहीं एक देश नहीं हम सारी दुनिया मंगेंगे
का कुमाऊंनी भाषा में इस तरह से अनुवाद कर लोगों में क्रांतिकारी जोश भरा।
ततुक नी लगा उदेख, घुनन मुनइ नि टेक
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में
जै दिन कठुलि रात ब्यालि,
जै दिन फाटला कौ कड़ालो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में
जै दिन नान-ठुली निरौली,
जै दिन त्योर-म्यौर न होलो
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में
जै दिन चोर नि फलाल, कैके जोर नि चलौल
जैंता एक दिन तो आलो उ दिन यो दुनी में
चाहे हम नी ल्यै सकों, चाहे तुम नी ल्यै सकौ
मगर क्वे न क्व तो ल्यालो उ दिन यो दुनी में
उदिन हम नी हूंलो लेकिन हम लै उदिन हूं लो
जैंता ए क दिन तो आलो यो दिन यो दुनी में
गिरीश तिवारी गिर्दा के इस गीत के माध्यम से सामाज में क्रांतिकारी बदलाव का सपना देखा था। गिर्दा अपने जीते-जी तो समाज में अपने सपने के
गिर्दा शेखर पाठक के साथ |
बदलाव को नहीं देख सके, लेकिन उनकी अंतिम इच्छा थी कि इसी गीत को गाते हुए उन्हें इस दुनिया से विदा कर अनन्त यात्रा में भेजा जाए। इस सब के पीछे उनकी शायद यही मंशा रही होगी कि उनके बदलाव के इस सपने को उनके मानने
वाले वल युवा पीढ़ी पुरा करने का संकल्प ले। जिसके चलते गिर्दा के अंतिम यात्रा में शामिल हुए लोगों को इसी गीत के साथ उन्हें अंतिम विदायी दी।गिर्दा ने दुनिया में बदलाव के लिए इसी तरह के कई गीत लिखे। वह अपने इन्हीं गीतों के माध्यम से हमारे बीच हमेशा जिंदा रहेंगे। गिर्दा क्रांतिकारी लेखक फै़ज अहमद फै़ज के बहुत बड़े समर्थक थे। जिसके चलते उन्होंने फैज के गीतों को पहाड़ी व सरल हिन्दी भाषा में अनुवाद कर आम आदमी में क्रांतिकारी बदलाव के लिए जोश भरने का काम किया। उनका यही जकाबा उत्तराखंड आंदोलन की आवाज बना। उन्होंने फै़ज के गीत
गिर्दा पुष्पेश पंत के साथ |
हम ओड बारुड़ी वार कुल्ली भाड़ी जै दिन इ दूनी से हिसाब ल्यूलों
एक हांग नी मांगूं, एक फांग नी मागूं सब खसरा खतौनी हिसाब ल्यूलों।
गिर्दा का चिंतन केवल उत्तराखंड तक ही सीमित नहीं रहा। वह देश के साथ ही वैश्विक स्तर लोगों पर होने वाले अत्याचार के खिलाफ त्वरित प्रतिक्रिया दिया करते थे। आपरेशन ब्लू स्टार के दौरान समाज विशेष के लोगों के हो रहे उत्पीडऩ के विरोध में गिर्दा 15 अगस्त को नैनीताल में निकले जुलूस के दौरान अली सरदार जाफरी के गीत
कौन आजाद हुआ,किसके माथे से गुलामी की स्याही छूटी मादरे हिन्द के चेहरे पर उदासी है अभी खंजर आजाद है सिने में उतरने के लिए
मौत आजाद है लाशों पर गुजरने के लिए कौन आजाद हुआ किसके माथे से गुलामी की स्याही छूटी के गायन से लोगों में व्यवस्था के खिला नया जोश भरा। गिर्दा का यह ओजस्वी गायन आज भी लोगों की जुबां पर रहता है। गिर्दा देश में हो रही जल संसाधनों की लूट से काफी चिंतित रहे। उन्होंने नदी बचाओ आंदोलन के दौरान उन्होंने अपनी चिंता कुछ इस तरह से व्यक्त की।
सारा पानी चूस गए, नदी संदर लूट गए लेकिन डोलेगी जब धरती, सिर से निकलेगी तब मस्ती
दिल्ली, दून में बैठे योजनाकारी तब क्या होगा विश्व बैंक के कटकनधारी तब क्या होगा।
उत्तराखंड आंदोनल के दौरान
जन कवि बल्ली सिंह चीमा के चर्चित गीत-
ले मशालें चल पड़े हैं लोग मेरे गांव के,
अब अंधेरा जीत लेगे लोग मेरे गांव,
इस गीत को संगीत भी गिर्दा ने ही दिया। यही गीत आगे चलकर उत्तराखंड आंदोलन की आवाज बना।
लोक गीत की विधा झोड़ा, चांचरी, छपेली, भगनौल आदि का बारिकी से अध्ययन कर चुके गिर्दा का सपना था कि लोक संस्कृति की इन विधाओं को जिंदा रखने के लिए कुछ किया जाए। युगमंच ने इस पर पहल शुरु कर इन विधाओं का डाक्यूमेंटेशन किया। जिसमें गिर्दा ने 10 दिन तक लगातार रिकाडिंग दी। युगमंच का यह प्रयास लोक विधाओं को मूल स्वरुप में बनाए रखने में मददगार साबित होगा।
लोकगीत की तरह नाटक भी गिर्दा के खून में बसा हुआ था। रंगकर्मी जहूूर आलम के शब्दों में युगमंच के संस्थापकों में रहे गिर्दा ने अंधा युग नाटक के मंचन में पहाड़ी लोक के तत्वों का प्रयोग कर उसे रोचक बनाया। अंधेर नगरी, भारत दुर्दशा समेत कई नाटक के मंचन में योगदान देने के साथ ही उन्होंने नगाड़े खामोश हैं, ेह्ल धनुष यज्ञ नाटक का लेखन भी किया। वरिष्ठ पत्रकार महेश पांडे कहते हैं कि गिर्दा और उनका 4१ साल पुराना साथ था। उत्तराखंड के सांस्कृतिक व राजनैतिक आंदोलनों को शेर जैसी गर्जना वाली आवाज के दम पर हमेशा चार्ज करते रहने वाले गिर्दा की जगह को भरा जाना मुमकिन नहीं है। वह कहते हैं कि चिपको, नशा नहीं रोजगार दो, उत्तराखंड आंदोलन व नदी बचाओ आंदोलन गिर्दा के बगैर अधूरे ही रहते। इन आंदोलनों की आवाज बने गिर्दा अपने गीतों, रचनाओं व संघर्षों को लेकर हमेशा हमारे बीच बने रहेंगे।
In the age of consumerism and capitalist society, its difficult for anybody to follow their heart and conscience 100%. Only few are able to do this. Girda was one of them. I have never met him personally but have heard many of his songs. I saw him talking on a dacumentary movie produced and directed by Hema Uniyal, about the uttaranchali music and the musical instruments, tradition holi songs etc. I must say that his passion and love for the art was commendable. His death is big loss for all of us. Anand Basera, Mumbai
ReplyDeletegirda ke baare me behtreen aalekh likhne ke liye dhanyavad....girda tum jinda ho ...hum sabke armano me
ReplyDeleteजहागीर भाई ..गिर्दा के अंतिम दर्शनों के लिए नैनीताल में हर तरह के लोगो की भारी ने साबित किया कि जो लोग जनता के सच्चे हितेषी होते हैं ..उनके न रहने का गम सबको होता है ...गिर्दा हम सबके लिए एक प्रेरणा स्रोत हमेशा बने रहेंगे ... \ ganesh rawat ramnagar
ReplyDeleteराजू दा! गिरदा के बारे में आपने अच्छी जानकारी दी है. जिस दिन वह हल्द्वानी अस्पताल में भरती हुए मैं उनसे मिला था. वो पूरे होश में थे और खुद कह रहे थे कि मैं ठीक हो जाउंगा. उनका जाना नयी पीढी के लिये नुकसानदायक है क्योंकि गिरदा नवयुवकों के लिये मार्गदर्शन का बहुत ही सुन्दर काम कर रहे थे.
ReplyDeleteहम लोगों ने पिछले साल से उनकी कविताएं एकत्रित करके इन्टरनेट पर डालना शुरु किया था. आप भी अवलोकन करें--
http://www.merapahadforum.com/uttarakhand-language-books-literature-and-words/''-girda-his-poems/
कृपया पूरे चार पेज देखें.
Hem ji above internet link is not working, can you recheck and confirm it please? thanks . anand basera, mumbai
ReplyDeleteबढ़िया, गिर्दा को श्रद्धांजलि मेरी ओर से भी इस लिंक पर: http://www.merapahadforum.com/articles-by-esteemed-guests-of-uttarakhand/journalist-and-famous-photographer-naveen-joshi's-articles/msg68833/#msg68833
ReplyDeletebahut achha alekh likha hai apne girda pe...
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