हिमालयी क्षेत्र के आबादी वाले गांवों के भू-वैज्ञानिक सर्वे की जरुरत
(रुद्रपुर से, जहांगीर राजू)
(रुद्रपुर से, जहांगीर राजू)
सुमगढ़ की घटना ने हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता व विषम परिस्थितियों में रह रहे लोगों की हकीकत को बयां किया है।
हिमालयी क्षेत्र की विषम भौगोलिक परिस्थितियों व संवेदनशील भूगर्भीय संरचना के बावजूद प्राकृतिक संसाधनों के हो रहे अंधाधुंध दोहन के चलते हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता और अधिक बढ़ती जा रही है। परिणामस्वरुप में क्षेत्र में हर वर्ष आपदा के रुप में बड़ी-बड़ी घटनाएं सामने आ रही हैं।
18 अगस्त बागेश्वर जिले के सुमगढ़ गांव में बादल फटने से स्कूल के 18 मासूमों का जिंदा दफन हो जाना हमें हिमालयी क्षेत्र की संवेदनशीलता से रुबरु कराता है। पिछले वर्ष 8 अगस्त को मुनस्यारी के ला झकेला गांव में हुई बादल फटने की घटना ने पूरे गांव को जमींदोज कर दिया था। इस घटना में 48 लोग मारे गए थे, जिसमें से अबतक घटना में मारे गए लोगों के शव नहीं मिल पाए हैं। ऐसे में हिमालय के संवेदनशील क्षेत्रों में रह रहे लोगों के पुर्नवास को लेकर हमेशा से उठते आए सवालों को फिर से बल मिल रहा है। साथ ही उच्च हिमालयी क्षेत्रों की संकरी घाटियों व नदियों के किनारे बसे गांवों का संवेदनशीलता को देखते हुए उनका भूगर्भीय सर्वे किए जाने की बात भी प्रमुखता से सामने आ रही है। इन क्षेत्रों का व्यापक अध्ययन के बाद यहां रह रहे लोगों का यदि पुर्नवास किया जाता है तो इससे हिमालयी क्षेत्र में आपदा की घटनाओं के दौरान होने वाले नुकसान व जनहानि को कम किया जा सकता है।
इस बार भी सरकार ने सुमगढ़ में हुए हादसे के दौरान राज्य के सौ से अधिक गांवों का पुर्नवास किए जाने की बात कही। पिछले वर्ष भी ला झकेला में हुई घटना के दौरान इस तरह की बातें सरकार के नुमाइंदों ने कही थी, लेकिन घटना के साथ ही संवेदनशील क्षेत्रों में रह रहे लोगों के पुर्नवास की मांग को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। अब देखना है कि उत्तराखंड सरकार इस घटना से सबक लेते हुए वास्तव में कोई कार्ययोजना बनाकर कार्य करती है या फिर इस घटना को भी पिछली घटनाओं की तरह भुला दिया जाता है।
हिमालयी क्षेत्र में हुई अबतक की बड़ी घटनाएं
घटना स्थान मारे गए लोग
जुलाई 1961 धारचूला 12
अगस्त 1968 तवाघाट 22
जुलाई 1973 कर्मी 37
अगस्त 1989 मदमहेश्वर 109
जुलाई 2000 खेतगांव 5
अगस्त 2002 गंगा घाटी टिहरी 29
जुलाई 21, 2003 डीडीहाट 4
जुलाई 6, 2004 लालगगढ़ 7
जुलाई 12, 2007 दवपुरी 8
सितंबर 5 2007 बरम, धारचूला 10
सितंबर 6, 2007 लधार, धारचूला 5
जुलाई 17, 2008 अमरुबैंड 17
अगस्त 8, 2009 ला झकेला 45
अगस्त 18, 2010 सुमगढ़ बागेश्वर 18
हिमालयी क्षेत्र की संकरी घाटियों में बादल फटने का अधिक खतरा: प्रो. पंत
रुद्रपुर। प्रख्यात भूगर्भ वैज्ञानिक प्रो.चारू सी पंत बताते हैं कि हिमालयी क्षेत्र की भूगर्भीय संरचना बेहद संवेदनशील होने के कारण यहां रह रहे लोगों के लिए तमाम तरह के खतरे बने हुए हैं। वह बताते हैं उच्च हिमालयी क्षेत्र की संकरी घाटियों में बादल फटने की सबसे अधिक घटनाएं होती है। इन घाटियों में बादल फैलने के बजाए एक ही जगह में रहकर वाष्पीकरण के बाद भारी वर्षा करते हैं। जिसे बादल फटने की घटना का जाता है। कपकोट घाटी के सुमगढ़ गांव में हुई घटना इसी का नतीजा है। उन्होंने बताया कि हिमालयी क्षेत्र में धारचूला, गौरी गंगा, काली गंगा, व्यास घाटी, चौदास, कपकोट, भागीरथीव रुद्रप्रयाग से लगे क्षेत्रों में संकरी घाटियां होने के कारण यहां की संवेदनशीलता बहुत अधिक बढ़ जाती है। उन्होंने बताया
कि उच्च हिमालयी क्षेत्र के दक्षिण में इस तरह की संकरी घाटियां काफी संख्या में मौजूद हैं। स्थित
संकरी घाटी हैं। इन क्षेत्रों में नदियों के किरानव अधिक स्लोपव पहाड़ी क्षेत्रों में मकान बनाकर
रहना किसी खतरे से कम नहीं है। खेतगांव बरम, ला झकेलाव सुमगढ़ में इसी तरह की घटनाएं हुई हैं।
प्रो.पंत बताते हैं कि उच्च हिमालयी में रह रहे लोगों के लिए भूस्खलन से दूसरा बड़ा खतरा है। वह बताते हैं कि
उच्च हिमालयी क्षेत्र के दक्षिण वह्ल मेन बाउंड्री थ्रस्ट से लगे क्षेत्र भूस्खलन की दृष्टि से काफी संवेदनशील हैं। इन क्षेत्रों में भी लोगों को भूगर्भीय अध्ययन के बाद भवनों वाले स्कूलों का निर्माण करना चाहिए। उन्होंने बताया कि हिमालयी क्षेत्र में रह रहे लोगों को तीसरा बड़ा खतरा भूकंप से है। उन्होंने कहा कि मैन बाउंड्री थ्रस्ट से लगा क्षेत्र भूकंप की दृष्टि से काफी संवेदनशील है। उन्होंने कहा कि रिवलर मैनेजमेंटव जागरुकता नहीं होने के कारण हिमालयी क्षेत्र में हो रही घटनाओं से काफी संख्या में जनहानि हो रही है। उन्होंने कहा कि उच्च हिमालयी क्षेत्र व नदियों के किनारे रहने वाले लोगों भवन व आवासीय सुविधा बनाने से पहले क्षेत्र का व्यापक भूगर्भीय अध्ययन कर लेना चाहिए। उन्होंने कहा कि स्थानीय स्तर पर व्यापक जागरुकता के बाद ही संवलेदनशील क्षेत्रों में आपदा के दौरान होने वाली जनहानि को कम किया जा सकता है।
इस प्रकार देखा जाए तो दो दिन की बाढ़ से 917 परिवारों के 2700 लोग प्रभावित हुए। क्षेत्र में आई बाढ़ से 48 झोपडिय़ां पूरी तरह से ध्वस्त हो गयी जबकि पांच पक्के मकान आंशिक रुप से क्षतिग्रस्त हुए। इस दौरान प्रशासन की ओर से चलाए गए बाढ़ राहत बचाव कार्य ऊंट में मुंह में जीरा साबित हुए।
तराई-भाबर के लोग भी बाढ़ के खतरे में
ऊधमसिंह नगर में बाढ़ से 11 लोगों की मौत
रुद्रपुर। पहाड़ी क्षेत्रों में हो रही भारी वर्षा के साथ ही तराई-भबर में बाढ़ का खतरा बढ़ गया है। ऊधमसिंह नगर जिले में अबतक बाढ़ से 11 लोगों की मौत हो चुकी है। बाढ़ से जिले में 1493 परिवारों के 5085 लोग प्रभावित हुए हैं।
जिले में अब तक आई बाढ़ से काफी नुकसान हुआ है। बाढ़ के चलते दो भवन पूरी तरह से वस्त हो चुके हैं। जबकि 356 भवन आंशिक रुप से क्षतिग्रस्त हुए हैं। इस दौरान पांच लोग गंभीर रुप से घायल व 20 जानवर मारे गए हैं।आई बाढ़ से सितारंगज तहसील के शाक्तिफार्म क्षेत्र में मात्र दो दिनों में सूखी नदी का बंधा टूट जाने से क्षेत्र के सुरेन्द्र नगर में 200 परिवारों के 600 लोग, निर्मल नगर में 250 परिवारों के 850 लोग, रुद्रपुर के मझरा रंजीतनगर में 250 परिवार के 600 लोग महेन्द्र नगर में 55 परिवारों के 150 लोग, कुसमौठ में 13 परिवारों के 50 लोग, नरेन्द्र नगर में 150 परिवारों के 450 लोग प्रभावित हुए।
Needs of public awareness. And more important issue in the mountains, the dam is built/construct or not?
ReplyDeleteपिछले साल ला-झेकला की यादें अभी तक ताजा थीं, सुमगढ की घटना ने पुन: दिल दहला दिया. सुमगढ घटना के बारे में उसके पास बन रही जलपरियोजना की सुरंग को जिम्मेदार माना जा रहा है. इस घटना में एक मानवीय भूल यह भी सामने आ रही है कि स्कूल के अध्यापकों ने भारी वर्षा से बच्चों को बचाने के लिये कमरे के दरवाजे को कुण्डी लगाकर बन्द कर दिया था. हालांकि शिक्षकों ने बच्चों के हित में ही ऐसा किया लेकिन यदि दरवाजे बन्द नहीं होते तो बच्चे बच सकते थे..
ReplyDeletesumgarh m jo kuch n huwa hai us se jald sabak nahi liya gaya to parinaam kafi bhayanak honge
ReplyDeletekeshav bhatt