कृषि वैज्ञानिकों को भी पीछे छोड़ दिया था इन्द्रासन सिंह ने
राष्ट्रपति एजीजे अब्दुल कलाम आजाद ने किया था सम्मानित
गांधी, नेहरु व पटेल के साथ जेल में रहकर किया सत्याग्रह
जहांगीर राजू रुद्रपुर
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इंद्रासन सिंह ने इंद्रासन धान की खोज कर तराई व देश के किसानों को नई दिशा दी थी। उनकी खोज पर आधारित यह धान बाद में पंजाब, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल समेत देश के कई राज्यों के किसानों को बीच लोकप्रिय हुआ । जिसके लिए वर्ष 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद ने उन्हें सम्मानित किया था। तराई की खेती किसानों को नईं दिशा देने वाले 109 वर्षीय इंद्रासन सिंह शुक्रवार को इस दुनिया को छोडक़र चले गए हैं।
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी इंद्रासन सिंह |
इंद्रासन सिंह पंतनगर से लगे इंद्रपुर गांव में रहते थे। उनका जन्म उत्तर प्रदेश के देवरिया स्थित दुबौली गांव में हुआ था। आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी, जवाहर लाल नेहरु व पटेल के साथ जेल में रहकर सत्याग्रह करने वाले स्वतंत्रता संग्राम सैनानी इन्द्रासन सिंह को 1952 में इंद्रपुर गांव में जमीन दी गयी। वह अपने 6 पुत्रों केे साथ यहां रहकर खेती करने लगे। वर्ष 1962 में जब तराई में पैदा होने वाले धान की फसल किसी बीमारी के चपेट में आने से तबाह हो गयी थी। इन्द्रासन सिंह के खेत में भी बीमारी लगने से धान की सारी फसल चौपट हो गयी थी। खेत के पास निराश बैठे इन्द्रासन सिंह ने देखा कि जब खेत में सारे धान के पौंधे सूख गए हैं, ऐसे में दो चार पौंधे ऐसे हैं जो स्वस्थ दिखाई दे रहे हैं। इन्द्रासन सिंह ने धान के उन पौंधों को सहेज कर रखना शुरु किया। वह लगातार उन पौंधों को पानी देते और उनकी निराई गुड़ाई करते। कुछ समय बाद उन दो पौंधों में आई बालियां पक गई। बालियों के पकने के बाद उन्होंने उससे मिले धान को बीज के रुप में सुरक्षित कर लिया। दूसरे साल उन्होंने इसी बीच की बुवाई कर धान को सुरक्षित रख लिया। लगातार यही प्रयोग दोहराते रहने के बाद उन्होंने 20 कुंटल धान का बीज तैयार कर लिया। यह ऐसा बीज तैयार हुआ जिसमें किसी भी बीमारी का असर नहीं पढ़ता था। जिसके बाद इस बेनाम धान को उन्होंने तराई के किसानों को बांटना शुरु किया। रोग नहीं लगने के कारण यह बीज किसानों के बीच लोकप्रिय होता गया।
राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद से पुरस्कार प्राप्त करते इन्द्रासन सिंह |
देखते ही देखते उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाण व पश्चिम बंगाल समेत अन्य राज्यों के किसानों के बीच इस धान की मांग बढऩे लगी। बाद में गांव में हुई पंचायत के निर्णय के बाद इस धान को इन्द्रासन नाम दिया गया। इन्द्रास सिंह को बाद में इसी धान के नाम से देशभर में इन्द्रासन धान के जाना जाने लगा। यह धान आज भी देश के कई राज्यों में बोया जाता है। जबकि पंतनगर विश्वविद्याल की ओर से खोजी गई 17 प्रजातियों में से कई प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं। धान की उल्लेखनीय प्रजाति की खोज करने के बावजूद किसी भी सरकारी या गैर सरकारी अनुसंधान संस्थान ने इसकी केंद्र नहीं की। बाद में नेशनल इनोवशन फाउंडेशन इन्द्रासन सिंह के प्रयोग को सराहा। भारत सरकार के इस संस्थान से जुड़े कमलजीत ने देश के प्रमुख कृषि संस्थानों से जुड़े लोगों को इन्द्रासन सिंह की शोध से अवगत कराया। जिसके लिए नेशनल इनोवशन फाउंडेशन ने वर्ष 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम आजाद के हाथों उन्हें सम्मानित करवाया। अहमदाबाद में हुए इस कार्यक्रम में उन्हें सेकेंड अवार्ड फार प्लांट वैरायटी से सम्मानित किया गया। यह सम्मान पाने में उन्हें 3२ साल का समय लगा। विलगत शुक्रवार को 109 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। देश की आजादी व किसानों के लिए किए गए शोध कार्य के लिए उन्हें हमेशा याद रखा जाएगा।
उन्हें देवलथल पोस्ट का सलाम
उन्हें देवलथल पोस्ट का सलाम
jaanakaari badhee.indraasan singh sahab ko shradhdhanjalee.
ReplyDeleteअपने प्रयासों से दुनिया को नयी खोज देकर भी गुमनाम बने रहने वाले इन्द्रासन जी को हार्दिक श्रद्धांजली..
ReplyDeleteRaju Ji,
ReplyDeleteApne Jannat Maqami shri Indfrashan ji ke bare me itni achchhi jaankari dekar unko sachchi shradhanjali di hai.