रुस व बेल्जिमय की कंपनी ने किया निर्माण शुरु
2012 तक देवस्थल में स्थापित हो जाएगी दूरबीन
दूरबीन स्थापित करने में होंगे 120 करोड़ खर्च
(कमल जगाती नैनीताल से)
देवस्थल में स्थापित होने वाली एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन के लैंस का निर्माण रुस में शुरु हो गया है। रुस जून माह के अंत तक लैंस का निर्माण पूरा कर इसे बेल्जिमय को सौंप देगा। बेल्जियम लैंस को दूरबीन में स्थापित करने के बाद व्यापक परीक्षण कर इसे भारत लाकर 2012 के अंत तक देवस्थल में स्थापित करेगा।
उल्लेखनीय है कि आर्य भट्ट प्रेक्षण विज्ञान एवं शोध संस्थान एरीज देवस्थल में एशिया की सबसे बड़ी दूरबीन स्थापित करने जा रहा है। इस दूरबीन की स्थापना के लिए केन्द्र सरकार ने 120 करोड़ रुपये की परियोजना को मंजूरी दी है। अन्तर्राष्ट्रीय कोलोबरेशन के तहत इस परियोजना को बेल्जियम व रुस तकनीकी सहयोग मिल रहा है। 3.6 मीटर व्यास की इस दूरबीन के लैंस का निर्माण रुस की कंपनी लौज ने शुरु कर दिया है। साथ ही बेल्जिमय की कंपनी एमौस दूरबीन के निर्माण में लगी हुई है। परियोजना निदेशक डा. अनिल पांडे ने बताया कि रुस लैंस का निर्माण पूरा करने के बाद जून माह के अंत तक उसे बेल्जियम को सौंप देगा। बेल्जिमय में इस लैंस को दूरबीन में स्थापित करने के बाद उसका व्यापक परीक्षण किया जाएगा। जिसके बाद इस दूरबीन को भारत लाकर नैनीताल स्थित देवस्थल में स्थापित करेगा।
बताते चलें की देवस्थल में इससे पहले 1.3 मीटर व्यास वाली दूरबीन स्थापित की जा चुकी है। नई दूरबीन स्थापित होने के बाद इस क्षेत्र से 10 गुने अधिक बेहतर परिमाण प्राप्त किए जा सकेंगे।
एरीज के निदेशक प्रो.राम सागर ने बताया कि देवस्थल स्पेस टेलीस्कोप स्थापित करने के लिए पूरे भारत में सबसे उपयुक्त स्थान है। इस स्थान को खोजने में वैज्ञानिकों को 15 वर्ष का समय लगा है। इस क्षेत्र में प्रकाश व वायुमंडल के बेहतर प्रभोव को देखते हुए दूरबीन को यहां स्थापित किया गया है।
आकाश गंगा का व्यापक अध्ययन होगा
एरीज के निदेशक प्रो.राम सागर ने बताया कि देवस्थल स्पेस टेलीस्कोप स्थापित करने के लिए पूरे भारत में सबसे उपयुक्त स्थान है। इस स्थान को खोजने में वैज्ञानिकों को 15 वर्ष का समय लगा है। इस क्षेत्र में प्रकाश व वायुमंडल के बेहतर प्रभोव को देखते हुए दूरबीन को यहां स्थापित किया गया है।
आकाश गंगा का व्यापक अध्ययन होगा
नैनीताल। परियोजना निदेशक डा.अनिल पांडे ने बताया कि देवस्थल में 3.6 मीटर व्यास की टेलीस्कोप स्थापित होने के बाद आकाश गंगा व तारों का व्यापक अध्ययन किया जा सकेगा। उन्होंने बताया कि इस दूरबीन की क्षमता इतनी अधिक होगी कि कम लाइट वाले तारों का भी आसानी से अध्ययन किया जा सकेगा। दूरबीन के स्थापित होने के बाद एरीज के वैज्ञानिक तारों व ग्रहों के निर्माण की प्रक्रिया का भी आसानी से अध्ययन कर सकेंगे।
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