कश्मीरियों को डेमोक्रोटिक स्पेस देने की वकालत
सरकारें व सेना कश्मीर को लेकर गंभीर नहीं
फिल्म निदेशक संजय काक से बातचीत
(जहांगीर राजू रुद्रपुर से)
कश्मीर को लेकर बनी फिल्म जश्ने आजादी के निदेशक संजय काक का कहना है कि हमें कश्मीरियों को उनके हिस्से की आजादी जीने देनी चाहिए। उन्होंने कश्मीरियों को डेमाक्रोटिक स्पेस दिए जाने की वकालत की हैं। उन्होंने कहा कि वहां सरकारें व सेना कश्मीर को लेकर कभी भी गंभीर नहीं रही। इसीलिए कश्मीर में आज ऐसे हालत पैदा हो गए हैं जहां न तो लोगों का सरकार पर विश्वास है और नहीं सेना लोगों का विश्वास जीत पायी है।
फिल्म निदेशक संजय काक ने कहा कि कश्मीर को अब हमें अलग से पहचान दिए जाने की जरुरत है, ताकि दुनिया के सबसे खुबसूरत हिस्से में वहां के लोग आजादी से सांस ले सकें। उन्होंने कहा कि कश्मीरियों का सेना द्वारा किया गया दमन व सरकारों की उपेक्षा ने उन्हें सेना व सरकारों से दूर कर दिया है। उन्होंने बताया कि वह मूलरुप से कश्मीर के पंडित हैं। क्षेत्र में रहकर अबतक किए गए उनके अध्ययन के मुताबिक कश्मीर के लोग सदियों से गुलामी की जंजीरों में जकड़े रहे हैं। देश की आजादी के बाद भी उन्हें वास्तविक डेमोेक्रेटिक स्पेश नहीं मिल सका। स्थिति यह रही कि मिलीटेंसी के नाम पर वहां लाखों की संख्या में सेना तैनात कर दी गयी।
इस बीच वहां बनी सरकारों ने भी कश्मीर की जनता के दर्द को जानने की कोशिश नहीं की। यही कारण है कि कश्मीर के लोगों का न वहां की सरकारों पर विश्वास है और नहीं आर्मी ही उनके विश्वास को जीत पायी है। जिसके चलते कश्मीर की जनता पूरी तरह से नेतृवविहीन हो चुकी है। वर्तमान में क्षेत्र के युवाओं का सडक़ों पर उतरकर पत्थरबाजी करना इसका प्रमाण है। संजय काक का मानना है कि कश्मीर के लोगों का पाकिस्तान पर भी कतई विश्वास नहीं है। ऐसे में यदि वहां के लोगों को स्वतंत्र पहचान देकर डेमोक्रोसी को बहाल करने की बात की जाती है तो वह आसानी से पूरी तरह से भारत के साथ जुड़ सकते हैं। इटली व जर्मनी से लगे क्षेत्र में इस तरह के प्रयोग सफल हुए हैं। बुकर एवार्डी अरुंधती राय के बयान को लेकर काक का कहना है कि वह किसी की व्यक्तिगत राय पर कोई प्रतिक्रिया नहीं देना चाहते हैं, लेकिन जबतक कश्मीर के लोगों के दुखदर्द को समझने के लिए वहां की सरकारें व आर्मी आगे नहीं आएगी तबतक कश्मीर में अराजक माहौल कायम रहेगा। सरकारों व सेना ने कश्मीर की जनता का विश्वास जीतना होगा। इस क्षेत्र में धरातल पर अबतक कोई भी पहल शुरु नहीं हो पायी है। उन्होंने कहा कि जश्ने आजादी फिल्म के माध्यम से कश्मीर की हकीकत को बयां करने का प्रयास किया गया है, जिसके बाद से ही देश में कश्मीर व वहां के लोगों की स्थिति को लेकर राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर बहस शुरु हुई है।
वह कहते हैं कि जब कश्मीर में मात्र सात सौ मीलिटेट ही बचे हुए हैं तब सात लाख की फौंज को वहां रखकर सरकार क्या करना चाहती है इसका जवाब किसी के पास नहीं है। वह कहते हैं कि क्षेत्र में सेना के दखल को कम कर आमजन के बीच लोकतंत्र को मजबूत बनाने के प्रयास किए जाने चाहिए। उन्होंने कहा कि जबतक कश्मीर का आम आदमी सेना व सरकारों के दो पाटों के बीच पीसता रहेगा तबतक कश्मीर में वहां के नागरिकों की आजादी की कल्पना बेमानी ही साबित होगी।
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