चंडीपुर गांव में विधवा हुई युवक के साथ जान देने को मजबूर
(रुद्रपुर से जहांगीर राजू)
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शीला |
चंडीपुर गांव में हुई प्रेमी युगल की आत्महत्या की घटना कई सवाल छोडक़र गयी है। इस घटना से जहां बेगुनाह हरिदासी हाथ की मेहंदी सुखने से पहले ही बेवा हो गयी वहीं शीला की मौत से उसकी पांच साल की बच्ची हमेशा के लिए अनाथ हो गयी है। यह घटना एक विधवा महिला को बहु के रुप में स्वीकार नहीं करने वाली सामाजिक मान्यताओं को कटघरे में खड़ा कर गयी है। साथ ही यह सवाल भी छोड़ गयी है कि विधवा महिला को परिवार बसाने की इजाजत क्यों नहीं है।
चंडीपुर गांव के युवक प्रशान्त का अपराध यही था कि उसने गांव की विधवा महिला शीला से प्रेम किया था। प्रशान्त का यह रिश्ता न तो उसके परिजनों को स्वीकार था और नहीं समाज के लोग इस रिश्ते के पक्ष में थे। जिसके चलते प्रशान्त के परिजनों ने उसका हरिदासी से जबरन विवाह करा दिया। लोक लाज के चलते प्रशान्त वैवाहिक कार्यक्रम में तो शामिल हो गया, लेकिन वह अपने नए साथी के साथ दो गज का फासला तक तय नहीं कर पाया। जिसके चलते उसने शीला के साथ मिलकर सल्फास खा लिया और दोनों इस दुनिया को हमेशा के लिए छोडक़र चले गए। दोनों की मौत के बाद प्रशान्त की पत्नी हरिदासी व शीला की पांच साल की बेटी काली सामाजिक मान्यताओं के भेंट चढ़ गए हैं, जहां एक विधवा महिला को परिवार बसाने की इजाजत नहीं दी जाती है।
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प्रशान्त |
गांव के युवा परितोष मंडल कहते हैं कि यदि शीला व प्रशान्त का विवाह हो गया होता तो आज नहीं हरिदासी विधवा होती और नहीं काली को अनाथ बनना पढ़ता। प्रशान्त व शीला के रिश्ते से मासूम बच्ची काली को नया जीेवन मिलता। लेकिन समाज के लोगों ने दोनों के रिश्ते को आगे नहीं बढऩे दिया। समाज के लोगों ने ऐसे रिश्ते को अपनाया, जिसमें दो लोग हमेशा के लिए बेसहारा हो गए हैं, लेकिन उस रिश्ते को परवान नहीं चढऩे दिया जिससे पांच साल की बच्ची काली को नया जीवन मिलता। परिमल राय कहते हैं कि प्रशान्त व शीला की मौत हमेशा सामाजिक मान्यताओं की दुहाई देने वाली व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर गयी है।
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हरिदासी |
प्रशान्त व शीला की मौत से जहां युवा पीढ़ी नई दिशा में सोचने को मजबूर है वहीं सामाजिक मान्यताओं की बात करने वाले लोगों ने आज भी इस घटना से कोई सबक नहीं लिया है। इस प्रकार देखा जाए तो इस घटना से सबक लेते हुए समाज के लोगों ने नई व्यवस्था को कायम करने की पहल के लिए आगे आना होगा। जहां फिर से ऐसे रिश्ते को बढ़ावा नहीं दिया जाए जहां काली जैसी मासूम बच्ची फिर से अनाथ न हो और फिर से कोई विवाहिता हाथों की महेंदी उतरने से पहले बेवा हो जाए।
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शीला के साथ काली |
असफलता बना अवसाद का कारण
रुद्रपुर। मनोवैज्ञानिक डा. रेखा जोशी बताती हैं कि विधवा को जीवन साथी बनाने का सपना देखने वाले युवा को समाज से मिले तिरस्कार के चलते उसे मिली असफलता ही उसके अवसाद का कारण बनी। जिसके चलते दोनों ने समाज से संघर्ष करने के बजाए गहरे अवसाद में आकर खुदकुशी कर ली। वह कहती हैं कि इस तरह की घटनाओं के लिए हमेशा सामाजिक व पारिवारिक स्थितियां जिम्मेदार होती हैं। इन दोनों के रिश्ते को यदि सामाजिक व पारिवारिक मान्यता मिल गयी होती तो शायद इस घटना से बचा जा सकता था। इस तरह की घटनाएं हमें सामाजिक मान्यताओं का फिर से मूल्यांकन करने की ओर प्रेरित करती हैं।