Thursday, October 6, 2011

दंगों की सियासत ने सवालों को जला डाला.

कर्यू में मिली ढील ने दिलायी गदर की याद

बारह हजार से अधिक लोगों ने रुद्रपुर छोड़ा

सपरिवार उत्तराखंड की सीमा से यूपी को हुए रवाना

                (रुद्रपुर से जहांगीर राजू)     

शहर में कर्यू के दौरान मिली ढील ने एक बार फिर से गदर की याद ताजा कर दी। इस दौरान शहर से ढाई हजार से अधिक परिवार अपना सारा सामान व बच्चों को लेकर यूपी की सीमा को रवाना हुए। इस दौरान यूपी की सीमा पर ऐसा मंजर था कि लोग मानों लोग एक देश की सीमा छोड़ दूसरे देश की ओर जा रहे हों। इसमें से कुछ परिवार रुद्रपुर शहर को अलविदा कहते हुए हमेशा के लिए यहां से चले गए।
 भारत पाक विभाजन की घटना देश के इतिहास की इतनी बड़ी घटना थी कि जिसमें लाखों की संख्या में लोगों ने पलायन किया। इस दौरान लाखों परिवार अपना मूल्क छोडक़र बेवतन हुए। भारतीय इतिहास की इस दुखद घटना को गदर का नाम भी दिया गया। बुधवार को रुद्रपुर शहर में लगातार चार दिन तक के  कर्यू के बाद मिली दो घंटे की ढील के दौरान उत्तराखंड व उत्तर प्रदेश की सीमा पर ऐसा ही मंजर देखा गया। जहां दो हजार से अधिक परिवारों ने रुद्रपुर को अलविदा कहते हुए उत्तर प्रदेश के लिए रवाना हुए। होने को तो इन लोगों ने अपने की देश के किसी दूसरे राज्य में प्रवेश किया, लेकिन रुद्रपुर शहर से दंगे के बाद हुआ इतनी बड़ी संख्या में पलायन हमारे लिए कई सवाल छोडक़र गया है। इस पलायन ने जहां कई परिवारों के सपनों को अधूरे में तोडऩे को मजबूर कर गया तो किसी को अपना रोजगार व करोबार छोडक़र यहां से जाने को मजबूर किया।
जनकवि जहूर आलम की कविता भी हमें इस सवालों से रुबरु कराती है। जिसमें उन्होंने लिखा है

दंगों की सियासत ने सवालों को जला डाला,
कलियों को मसल डाला, बागों को जला डाला,
एक भूख बिलखती थी लिपटी हुई छाती से,
गुदड़ी में छिपे कितने लालों को जला डाला,
मजहब के लूटेरों ने, नापाक अंधेरों ने,

बस्ती के मेरे सारे उजाले को जला डाला,
छुप छुपके मिलते थे, दो ख्वाब मचलते थे,
 उन नर्म से ख्वाबों को खयालों को जला डाला

इसी तरह से बुधवार को हजारों परिवार अपने जले हुए सपनों को लेकर रुद्रपुर को हमेशा के लिए अलविदा कहकर चले गए। रामपुर निवासी रहमान ने बताया कि रुद्रपुर में कारपेंटर का काम करते थे। लेकिन यहां हुए दंगों ने उनके परिवार को डराकर रख दिया है। इसीलिए अब वह अपना सारा काम छोडक़र हमेशा के लिए यहां से जा रहे हैं। उनका परिवार अब  कभी लौटकर वापस रुद्रपुर नहीं आएंगे। बहेड़ी निवासी रामपाल ने बताया कि वह सिडकुल में मजदूरी करते हैं। परिवार के साथ रम्पुरा में रहते हैं, लेकिन इन दंगों ने उन्हें इस शहर को हमेशा के लिए छोडऩे को मजबूर किया है। इसी तरह से कई राम, रहीम व रामपाल के परिवारों ने रुद्रपुर को हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। इन गरीब लोगों के शहर छोडऩे के कोई मायने नहीं हो सकते हैं, लेकिन इस तरह से हजारों लोगों के पलायन ने जो सवाल हमारे बीच छोड़े हैं उसके जबाव देने के लिए भी यहां के सियासी लोगों को तैयार होना होगा, नहीं तो हमें फिर से इस तरह के गदर व पलायन के लिए तैयार होना होगा।




4 comments:

  1. netaon aur siyasat ne uttrakhand ko dangon me jhokne ka kam kiya hai. ye neta vote ki khatir u.p. ki paripati ko uttrakhand me la rhe hain. jiska pratikar karna bahut jaruri hai

    ReplyDelete
  2. मुझे इससे बेहतर और मार्मिक...
    और हाँ !
    कारुणिक बात मन में नहीं आई.....
    "राजीव" लोचन जी ने भरे "लोचन" से जो पीर प्रकट की .....

    "मैं आज खून के आंसू रोया, जब तीसरे पहर रुद्रपुर से जहाँगीर राजू ने बताया कि कर्फ्यू में दो घंटे की ढील मिलते ही कम से कम एक हजार परिवार सर पर सारी गृहस्थी उठाये रामपुर रोड से यूपी को चले गए, यह कसम खाते हुए कि इस देवभूमि में अब कदम भी नहीं रक्खेंगे...मुझे 'झूठा सच' और तमस' के देश विभाजन के सारे दृश्य याद आ गए. मैं इस अपराध में अपना हिस्सा स्वीकार करते हुए सारी मानवता से माफी मांगता हूँ..."

    ReplyDelete
  3. असख्य लाशों के बीच
    तुम देख पाओगे
    कोई मासूम बच्चा
    जिसे तुमने रौंदा है
    अपने पैरों तले
    वह मरा नहीं है
    सीने पर
    तुम्हारे जूतों का निशान
    लिए वह जिन्दा है

    कोई बूढ़ा सा आदमी
    जिसके सीने पर
    तुमने दागी थी
    बन्दूक की गोलियाँ
    वह भी मरा नहीं
    उसकी आवाज तुम
    सुन सकते हो
    कैसे गरज रहा है बह

    उन असख्य लाशों में
    कोई माँ होगी
    जिसको तुमने किया है
    निर्वस्त्र
    खेला है उसकी कोख से
    एक आग होगी
    उसकी कोख में
    तुम देख सकते हो
    उस आग की लपटे
    कैसे आसमान की तरफ बढ़ रहीं हैं

    जब तुम लौट जाओगे
    उन लाशों को लाँघते हुए
    तब तुम्हें ऐसा लगेगा
    तुम जीत कर भी हार गए

    (देवांशु पाल

    ReplyDelete
  4. निशा भोंसले की कविता

    दंगा

    दंगों में मुस्लमानों के घर जलते हैं
    न हिन्दुओं के घर जलते हैं
    दंगों में
    बस घर जल जाते हैं
    घर के भीतर पलता
    बच्चों का बचपन
    बुजुर्गों का बुढ़ापा
    युवाओं के सुनहरे सपने
    जल जाते हैं

    दंगों में
    सिर्फ राम और रहीम के
    घर ही नहीं जलते
    इंसानों की पहचान
    जल जाती है।

    ReplyDelete