Saturday, January 8, 2011

यूं ही नही बढ़ रहा ग्रामीणों में बाघों के प्रति गुस्सा

 कार्बेट पार्क में आराम करता बाघ
ग्रामीणों का बढ़ता गुस्सा बाघ संरक्षण की दिशा में अच्छा संकेत नही माना जा रहा है 

चंदन बंगारी

रामनगर। विश्वप्रसिद्व जिम कार्बेट नेशनल पार्क में पाए जाने वाले जिन बाघों की एक झलक पाने के लिए सैलानी बेताब रहते है, अब यही बाघ पार्क के आसपास रहने वाले ग्रामीणों की जान के लिए मुसीबत बनते जा रहे है। बाघ ने बीते दो माह में ही जंगल से घास ला रही तीन महिलाओं को अपना निवाला बना दिया है। हालांकि सभी घटनाएं जंगल के भीतर हुई है। घटना से आक्रोशित सुंदरखाल के ग्रामीण इन दिनों नरभक्षी बाघ को मारने की मांग पर अड़े हुए है। अपनी मांग को लेकर ग्रामीण एक बार कार्बेट का धनगढ़ी गेट तक बंद करा चुके है। ग्रामीणों के आंदोलन के दवाब में मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने बाघ को मारने तक आदेश दे दिए है। बाघ मारने के लिए जंगल में प्रसिद्व शिकारी ठज्ञकुर दत्त जोशी को तैनात किया गया है। सरकार की लाख कवायदों के बीच मानव-बाघ संघर्ष थमने का नाम नही ले रहा है। जंगल में लगातार मानवीय हस्तक्षेप बढ़ने व शिकार की कमी की वजह से बाघ इंसानों पर हमले कर रहा है। जिसका सबसे ज्यादा खामियाजा जंगल में लकड़ी व घास लाने वाली महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। 
आदमखोर बाघ मारने की मांग करते ग्रामीण
कभी संरक्षण में हमेशा आने रहने वाले ग्रामीणों का बाघ के प्रति बढ़ते गुस्से को वन्यजीव प्रेमी संरक्षण के लिहाज इसे सही नही मान रहे है। बाघ को मारने की मांग कर रहे ग्रामीणों के गुस्से ही वजह की पड़ताल की जाय तो कई कार्बेट प्रशासन की कई कमियां सामने निकलकर आती है। इन्हीं कमियों की वजह से लोगों को बाघ बचाने की अपील करने वाले वन विभाग के अधिकारियों को मजबूरी में इसे मारने के आदेश तक देने पड़े। बात शुरू करते है 12 नवंबर को बाघ द्वारा मारी गई महिला नंदी देवी की घटना से। महिला को मारने के बाद जब ग्रामीणों ने इंसानों का मांस खाने वाले  इस खतरनाक बाघ को पकड़ने की बात कही तो घटना को महज हादसा करार देते हुए हल्के में लिया गया। हालांकि पार्क प्रशासन ने इसे आदमखोर घोषित करते हुए पकड़ने के लिए सर्पदुली रेंज में दो पिंजरे लगा दिए थे। मगर बाद में मामला ठंडा होने पर बाघ पकड़ने की मुहिम भी खत्म कर दी गई। अधिकारियों ने बाघ के अचानक मानव मांस खाने की वजह को तलाशने की जरूरत तक नही समझी। जिसके फलस्वरूप ठीक एक हते बाद ही 18 नवंबर को एक बाघ ने रामनगर वन प्रभाग के कोसी रेंज में घास ला रही कल्पना देवी को मार दिया था। लेकिन यह बाघ व सर्पदुली रेंज में महिला को मारने वाले बाघ को लेकर संशय बना रहा। कुछ ग्रामीणों का कहना था कि घटना की सुबह उन्होंने एक बाघ को नदी पार करते हुए रामनगर वन प्रभाग के जंगल में जाते हुए देखा था। लेकिन अंत तक यह रहस्य ही बना रहा कि सुंदरखाल की महिला व चुकम में महिला मारने वाला बाघ एक ही था। चुकुम में भी बाघ को पकड़ने के लिए कुछ दिनों तक मुहिम चलाई गई,मगर बाघ को भी नही पकड़ा जा सका। एक महीने शांत रहने के बाद बाघ ने 29 दिसंबर की दोपहर सर्पदुली रेंज में घास ला रही देवकी देवी को शिकार बना डाला।
 आदमखोर बाघ मारने की मांग करते ग्रामीण
बाघ इतना बेखौफ था कि महिलाओं के झुंड से देवकी देवी को उठा ले गया। महिला का पूरा शव तक नही मिल सका है। जानकारों का कहना है कि तीनों घटनाओं को अंजाम देने वाला बाघ शिकार करने में असमर्थ लग रहा है। बाघ कभी भी अचानक सामने आए इंसान पर हमला करने के बाद उसका मांस नही खाता है। मगर सुंदरखाल व चुकम में बाघ ने महिलाओं का शिकार करने के बाद मांस भी खाया है। इसलिए बाघ के नरभक्षी होने की संभावना प्रबल है। जो इंसानों के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है। बीमार या शिकार करने में असमर्थ बाघ को दूसरे स्वस्थ बाघ कोर जोन से बाहर कर देते है। इस समय जानवरों का प्रजनन काल चल रहा है। जिसके चलते अन्य जानवरों की तरह की बाघ के व्यवहार में परिवर्तन आने के साथ ही वह आक्रामक भी हो जाता है। तभी वह सामने आने पर हमले कर देता है। दो महिलाओं को खो चुके सुंदरखाल व चुकुम के ग्रामीणों में बाघों के प्रति आक्रोश पनपना शुरू हो गया था। आक्रोश को हवा देने का काम 29 दिसंबर को बाघ का शिकार हुई देवकी देवी की घटना से हुआ। घटना के बाद ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा। ग्रामीणों ने घटना के दो दिन बाद 31 दिसंबर को कार्बेट के धनगढ़ी गेट पर ताला जड़ दिया। ग्रामीणों के गुस्से को देखते हुए मुख्यवन्यजीव प्रतिपालक श्रीकांत चंदोला ने धरनास्थल पर आकर ग्रामीणों को बाघ मारने के लिखित आदेश की कापी देकर धरना शांत कराया था। आश्वासन के 5 दिन बीतने के बावजूद बाघ न मारने से गुस्साए ग्रामीणों ने कार्बेट मुख्यालय में नारेबाजी करते हुए धरना दिया। ग्रामीणों के आंदोलन को जनसंगठनों ने अपना समर्थन दिया। प्रदर्शन के दौरान ग्रामीणों की बाघ बचाओ समिति के कार्यकर्ताओ से तीखी नोंकझोक तक हो गई थी।
बाघ बचाने व मारने की मांग करने वाले आमने-सामने आ गए। इस संवेदनशील मामले पर लोग राजनैतिक रोटियां सेंकने से तक बाज नही आ रहे है। मुख्यवन्यजीव प्रतिपालक के आदेशों के बाद दो टीमें लगातार बाघ को नष्ट करने के लिए सर्पदुली रेंज में घूम रही है। लेकिन जंगल में 5 बाघ दिखाई देने के कारण आदमखोर बाघ की पहचान करने में मुश्किलें सामने आ रही है। महिलाओं को शिकार बनाने वाले बाघ की पहचान अभी तक नही हो सकी है। बाघ की पहचान के लिए पार्क प्रशासन ने घटनाओं के बावजूद किसी विशेषज्ञ को यहां बुलाने की जरूरत तक नही समझी है। बाघ मारने को लेकर संुदरखाल के ग्रामीणों का धैर्य जवाब देता जा रहा है। बाघ की दहशत के चलते गांव में शाम ढलते ही सन्नाटा पसर जाता है। रात में खेतों में लगी फसल का नुकसान करने पहुंचे नीलगाय, सुअर को भी ग्रामीण बाघ के डर के चलते भगाने घर से बाहर तक नही निकल पा रहे है। बाघ घटना के बाद भी गांव के आसपास देखे जा रहे है। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि जहां देश भर में कार्बेट पार्क के बाघों को बचाने ही पहल की जा रही है वहीं बाघों के अपने घर कार्बेट पार्क के आसपास रहने वाले ग्रामीण इसके आंतक से दुखी होकर मारने की मांग कर रहे है। बाघों के प्रति ग्रामीणों के गुस्से को रोकना बेहद जरूरी है। यही ग्रामीण जंगल में घुसने वाले तस्करों, जंगली जानवरों के घायल होने की महत्वपूर्ण जानकारी वन विभाग को देते है। इसलिए संरक्षण को लेकर ग्रामीणों की भूमिका नकारी नही जा सकती है। लेकिन पार्क अधिकारियों का ग्रामीणों के बीच किसी भी प्रकार का सामंजस्य नही है। इतने घटनाक्रम होने के बावजूद पार्क निदेशक ने ग्रामीणों के बीच जाने की जरूरत तक नही समझी। पार्क उपनिदेशक ने तो महापंचायत में पहुंचकर आक्रोशित ग्रामीणों पर ही कई सवाल खड़े कर दिए। जिसके बाद ग्रामीणों में इस अधिकारी को पंचायत से खदेड़ दिया। आंदोलन के बीच में इस तरह की बाते भी ग्रामीणों का आक्रोश बढ़ाने का कार्य कर रही है। ग्रामीण बाघ का शव देखने के बाद ही आंदोलन समाप्त करने की बात पर अड़े हुए है।
जिंदगी की आधी उम्र जंगल से घास लकड़ी लाकर गुजारने वाली सुंदरखाल की रामेश्वरी देवी का कहना है कि बाघ अब मानव का मांस खाने का आदि हो चुका है। इससे पहले कभी भी ऐसे बाघ को नही देखा। उन्होंने कहा कि इंसानों की जान का दुश्मन बने बाघ का खात्मा जरूरी है। कहती है बाघों के संरक्षण में करोड़ों रूपये बहाए जा रहे है,मगर उनको मूलभूत सुविधाएं तक नही दी जा रही है। वहीं पार्क अधिकारियों की जनता से दूरी संरक्षण के लिहाज से ठीक नही कही जा सकती है। बाघ व इंसानों के बीच बढ़ते टकराव रोकना वन विभाग व सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रही है। इसे रोके बिना बाघ संरक्षण की बात सोचना तक बेमानी है।  

-संरक्षण के लिहाज से ठीक नही रहा बीता साल 

रामनगर। करोड़ों रूपये खर्च होने के बावजूद बाघों का सरंक्षण अहम चुनौती बना हुआ है। बाघों का घर माने जाने वाले कार्बेट टाइगर रिजर्व में वर्ष 2010 में 3 बाघों की मौत हुई। जबकि एक बाघ को आदमखोर घोषित कर मारने का अभियान चल रहा है। वहीं 2009 में रिजर्व में यह आंकड़ा 6 तक पहुंच गया था। वर्ष 2010 में कार्बेट टाइगर रिजर्व के ढिकाला जोन में 5 जनवरी को आपसी लड़ाई व 11 जनवरी को प्राकृतिक कारण से नर बाघों मौत हुई। 2 जुलाई को कालागढ़ रेंज में पीठ में घाव होने से नर बाघ की मौत हो गई। रामनगर वन प्रभाग में एकमात्र बाघ की मौत 19 अगस्त को कालाढूंगी रेंज में नाले में बहकर होने से हुई। 14 मार्च को उत्तरी जसपुर रेंज में नर बाघ का शव मिला। वहीं 24 नवंबर को दक्षिणी जसपुर रेंज में बीमार हालत में मिले मादा बाघ ने पंतनगर में उपचार के दौरान दम तोड़ दिया। यह मौतें बाघ संरक्षण के अभियान को तगड़ा झटका देने वाली रही। 




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