पुरातत्व विभाग के पास नही है ऐतिहासिक धरोहरों को सहेजनें का वक्त
चन्दन बंगारी रामनगर
देव भूमि उत्तराखण्ड के मंदिर न सिर्फ आस्था के केन्द्र है बल्कि अपने भीतर कई शताब्दियों का इतिहास भी समेटे हुए है। ये प्राचीन मन्दिर उत्कृष्ट वास्तु शिल्प एवं बेहतरीन हुनर का नायाब उदाहरण हैं। इन्हीं में से एक कुमाऊं के अल्मोड़ा जिले के तालेश्वर गांव में स्थापित ऐतिहासिक प्राचीन शिव मन्दिर है। मंदिर के भीतर स्थापित शिवलिंग व परिसर में लगी मूर्तियां तीसरी व चौथी सदी के आस पास की बताई जाती है। मन्दिर के आसपास लगातार अनेक पुरातन कालीन मूर्तियां व तराशे पत्थर ग्रामीणों को लगातार ही मिल रहे है। इनका वास्ता कई सदियांे पूर्व का है। मगर सरकार व पुरातत्व विभाग की बेरूखी से गांव वाले काफी मायूस है।
कुमाऊं व गढ़वाल की सीमा पर तालेश्वर गांव स्थित है। अल्मोड़ा जिले के अर्न्तगत आने वाले गांव की आबादी साढ़े तीन सौ के करीब है। एक किलोमीटर के दायरे मे फैले गांव में अनेक ऐतिहासिक व पौराणिक चीजें है जिनके अन्वेषण से इतिहास की नयी राह मिल सकती है। तालेश्वर गांव 1963 मे उस वक्त सुर्खियो मे आया था, जब इस गांव के निवासी सदानन्द शर्मा गांव मे मिले दो ताम्रपत्रों को लेकर संग्राहलयो के चक्कर लगा रहे थे। ये ताम्रपत्र गांव के ग्रामीणो को 1915 में एक खेत खोदते वक्त मिले थे। ताम्रपत्रों को ग्रामीणों ने पास ही बने मंदिर में रखवा दिया था। सदानन्द शर्मा ने इन ऐतिहासिक ताम्रपत्रों को महत्व समझते हुए इन्हंे लखनऊ स्थित संग्रहालयों मे रखवा दिया। इन ताम्रपत्रो पर जब अध्ययन किया गया तो पता चला कि ये ताम्रपत्र पांचवी सदी के ब्रहमपुर नरेशांे द्वारा बनवाए गए थे, जो ब्राह्मी लिपि मे लिखे गये थे। इन ताम्रपत्रांे मंे एक ताम्रपत्र ब्रहमपुर के राज्य के नरेश ध्रुतिवर्मन तथा दूसरा ताम्रपत्र राजा विष्णुवर्मन द्वारा पांचवी सदी मे बनवाया गया था। इन दो ताम्रपत्रों मे लिखी गयी लिपि उड़ीसा मे मिले शिलालेखो की लिपि से मिलती जुलती है। इन ताम्रपत्रों के अलावा समय समय पर यहां के निवासियो को पुराने समय की प्राचीन मूर्तिया व अन्य अवशेष मिलते रहे है। इन मूर्तिया मे गणेश की मूर्ति तकरीबन चौथी सदी के आस पास बताई जाती है।
इसके अलावा यहां भैरव, नन्दादेवी,वामनस्वामी (विष्णु के पैरो की मूर्ति) के अलावा दर्जनो मूर्तिया मिली है। इनमंे से कई मूर्तियां दक्षिणी कला शैली की मानी जाती है। हालांकि पांचवी सदी मे गढ़वाल व कुमाऊं को मिलाकर बने पर्वताकार राज्य की राजधानी ब्रहमपुर के अवशेष यहां मिलते तो है मगर इतिहासकारों के इस राजधानी के सवाल पर एक मत न होने से यह विवाद का विषय है। कोई राजधानी को ब्रहमपुर मंडी नेपाल, कोई द्वाराहाट तो कोई श्रीनगर तक बताता है। 1992 मे यहां प्रसिद्व इतिहासकार डा0 शिवप्रसाद ने दौरा कर यहां मिली वामनस्वामी की मूर्ति को ताम्रपत्र मे उल्लेखित बताया साथ ही यहां खुदाई कर अन्य चीजो को भी खोजे जाने की बात कही थी। फरवरी 2008 मे यहां लाल ईंटो की दीवार जो जेड आकार लिये हुए है जमीन मे दबी हुई मिली। इस दीवार मे लगी लाल ईंटो की पड़ताल करने से पता चला की ये ईंटे कुषाण कालीन 1800 साल पुरानी ईंटे है। कई इतिहासकारों ने यहां मिले अवशेषो से इसे 2000 वर्ष पुरानी विकसित सभ्यता माना है। इस गांव के निवासी पुरूषोत्तम शर्मा कहते है कि तालेश्वर गांव अपने आप मे कई रहस्य समेटे हुए है। अगर गंभीरता से इस गांव के खुदाई व पड़ताल की जाये तो यहां ढेरो मूर्तिया व अवशेष मिल सकते है।
क्षेत्र के जिला पंचायत सदस्य पूरन रजवार का कहना है कि ऐतिहासिक धरोहरों को संरक्षित करने के लिए उन्होंने कई बार अल्मोड़ा व देहरादून में पुरातत्व विभाग को पत्र व्यवहार किया। मगर पुरातत्व विभाग के अधिकारियों के पास इन धरोहरों को देखने तक के लिए समय नही है।
बहरहाल गांव के लोगो द्वारा पुरानी सभ्यता के अवशेषो को सहेजकर रखना काबिले तारिफ है। मगर पुरातत्व विभाग को भी जरूरत है कि इसके संरक्षण की ओर कोई ठोस पहल करें। जिससे आने वाली पीढ़ी के लिए ये सारी चीजें इतिहास के पन्नों तक ही सिमट कर ना रहे जाएं।
चन्दन बाबू
ReplyDeleteअच्छा लगा ...सारगर्भित ..तथ्यपरक लेख ...मेरे करीबी ऐतिहासिक - पौराणिक मंदिर के बारे में ....
आगे भी ....उम्मीद है ......
तालेश्वर के नाम से एक प्रसिद्ध मन्दिर पिथौरागढ जिले में झूलाघाट से 7-8 किमी. पूर्व की तरफ़ भी है. काली नदी के तट पर स्थित इस मन्दिर की कालीपार नेपाल के लोगों के बीच भी बहुत मान्यता है. काली नदी में बनी एक ताल के किनारे स्थित होने के कारण शायद इसका नाम तालेश्वर पड़ा है. इस मन्दिर की एक विशेषता यह भी है कि भगवान की इच्छानुसार यह एक पेड़ के नीचे खुले स्थान में स्थित है. इसके ऊपर कोई छत या अन्य कोई भवन आदि का निर्माण वर्जित है.
ReplyDeletechandan ji thanku for this or mishra ji ko vee
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