पिछले 15 सालों से बगैर सरकारी मदद से कार्य कर रहे रैनबों से जुड़ने वाले हजारों लोगों में कई विदेशी भी शामिल है
चंदन बंगारी
रामनगर
सरकार वन्यजीवों व पर्यावरण को बचाने के लिए कार्यक्रम आयोजित करती है। मगर सरकारी प्रयासों से अलग कुछ ऐसे लोग भी है जो बगैर सरकारी इमदाद के निःस्वार्थ भाव से सालभर पर्यावरण संरक्षण अभियान में जुटे रहते है। नगर के दो युवा स्कूली बच्चों को बर्ड वाचिंग के जरिए पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने में जुटे हुए है। आज क्षेत्र में ऐसा कोई भी पर्यावरण व वन्यजीव बचाने के लिए आयोजित कार्यक्रम या रैली नही होती, जिसमें रैनबों की भागीदारी नही होती है। स्कूली बच्चों के जुबान में गुड रैनबो शब्द होना ही संस्था के लोगों का असल पुरस्कार है।
कार्बेट नेशनल पार्क में करीब 600 पक्षियों की प्रजातियां पाई जाती है। इन्हीं पक्षियों के सहारे नगर में रहने वाले एक युवा राजेश भटट ने पर्यावरण सरंक्षण का कार्य करना शुरू किया। उन्होंने 1 अक्टूबर 1995 को पर्यावरण के इंद्रधनुषीय मित्रों का समूह रैनबो फैं्रडस आफ नेचर एंड इन्वायरमेंट संस्था की स्थापना की। स्थापना के समय स्कूली विद्यार्थियों को शामिल करने के साथ ही संस्था को गैर राजनैतिक, गैर सरकारी व गैर पंजीकृत संस्था बनाने का निर्णय लिया गया था। इसके गठन का मकसद प्रकृति, पर्यावरण व संस्कृति की सुरक्षा के लिए जनजागरूकता बढ़ाने के लिए कार्यक्रम संचालित करना है। जिससे जन सामान्य में भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति दिलचस्पी जागृत हो सके। अपने गठन के बाद से ही संस्था ने पर्यावरण संरक्षण के लिए जनजागरूकता रैली, स्लाइड शो, चलचित्र, नुक्कड़ नाटक, वृक्षारोपण, स्वच्छता अभियानों के साथ ही वन्यजीव लेखन, चित्रकला प्रतियोगिता का आयोजन भी करते हुए आ रही है। पॉलीथीन उन्मूलन, कोसी नदी में साफ सफाई व बीमारियों के प्रति जागरूकता अभियानों में भी रैनबों हमेशा आगे ही रहा है।
1997 से एक और उत्साही नौजवान बची सिंह बिष्ट के संस्था से जुड़ने के बाद कार्यक्रमों में तेजी आना शुरू हो गई। संगठन में जुड़ने वाले अधिकांश स्कूली बच्चे होते है। जब भी वे आपस में मिलते हैं तो गुड रैनबो व विदाई लेते समय वाई रैनबो का अभिवादन करते है। संस्था वर्ष में 48 पर्यावरणीय सांस्कृतिक त्यौहार मनाती है। जिसमें विश्व पर्यावरण दिवस, पृथ्वी दिवस, पक्षी, जल, ओजोन, वन्यजीव सुरक्षा सप्ताह सहित अनेक शामिल है। संस्था स्कूली बच्चों को पर्यावरण, जंगल, पक्षियों, जंगली जानवरों से रूबरू कराने के लिए सालभर भ्रमण कार्यक्रम आयोजित करती है। इनमें सबसे महत्वपूर्ण अक्टूबर के पहले सप्ताह होने वाला वन्यप्राणी सप्ताह शामिल है। पूरे सप्ताह प्रदेश के अनेक हिस्सों में संस्था कार्यक्रम संचालित करती है। अपने घोष्णापत्र के अनुरूप संस्था ने पिछले 15 सालों में किसी भी प्रकार के आयोजन के लिए कोई चंदा या आर्थिक सहायता सरकारी, अर्द्वसरकारी संस्थाओं व व्यक्तियों से नही लिया है। राजेश, बची व अन्य क्रियाशील साथी अपनी कमाई का एक हिस्सा संस्था द्वारा आयोजित किए जाने वाले कार्यक्रमों में खर्च करते है। संस्था के संचालन को छोटा सा कार्यालय यूं मानिए छोटी-छोटी सड़कें व गलियारों को ही यह लोग अपना कार्यालय समझते है। संस्था ने पर्यावरण व वन्यजीवों पर आधारित एक छोटे से पुस्तकालय की स्थापना की है। संस्था के वर्तमान में एक हजार से अधिक प्रमाणिक सदस्य है। जिनमें देश के विभिन्न हिस्सों के अलावा विदेशी सदस्य भी शामिल है। पर्यावरण संरक्षण की मुहिम को प्रख्यात पर्यावरणविद सुंदर लाल बहुगुणा, मैती आंदोलन के सूत्रधार कल्याण रावत जैसे लोग ने भी सराहा है। संस्था का अभियान पूरी तरह से अनौपचारिक है। जो भी संस्था के उददेश्यों व कार्यशैली से इत्तेफाक रखते हुए इस क्षेत्र मे कार्य करना चाहता है, वह संस्था का सदस्य होता है।
बीते साल 8 अक्टूबर को संस्था के सदस्यों ने चार विदेशियों के साथ पर्यावरण का संदेश देते हुए पूरे उत्तराखंड में करीब 1400 किलोमीटर लंबी बाइक रैली निकाली थी। संस्था ने वर्ष 2009 में पर्यटन गतिविधियों के संचालन एवं सुविधाओं का कार्य भी शुरू कर दिया है। संस्था के संस्थापक राजेश का कहना है कि पर्यटन गतिविधियों से पर्यावरण व संस्कृति की सुरक्षा का संदेश पहुंचेगा वहीं इससे मिलने वाले लाभांस से प्रकृति, पर्यावरण व संस्कृति की सुरक्षा के लिए खर्च किया जाएगा। उनका कहना है कि उनकी मेहनत का पुरस्कार दूर गलियारों से सदस्यों की जोर से गुड रैनबो की आवाज सुनना है। संस्था के साथ जुड़कर नई पीढ़ी में प्रकृति व वन्यजीवों के प्रति खास नजरिया पैदा होता है। वहीं बची बिष्ट कहते है कि पर्यावरण को बचाने के चुनौती आज सबसे सामने है। रेनबो के माध्यम से बच्चों को पर्यावरण के साथ ही पशु पक्षियों के बारे में बताया जाता है। यह बताया जाता है कि इनका मानव जीवन में कितना महत्वपूर्ण स्थान है। कागजी कार्रवाई के इतर धरातल पर कार्य करने वाली संस्था से सरकार द्वारा संचालित लाखों संस्थाओं के लिए प्रेरणाश्रोत बन सकती है।
Nice post Jahangir, Thanks :)
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