कत्यूरी शासकों द्वारा निर्मित बालेश्वर मंदिर
हरीश उप्रेती करन, चंपावत
कभी चंद वंशीय राजाओं की राजधानी रहे चंपावत के प्राकृतिक सौंदर्यता से परिपूर्ण विभिन्न ऐतिहासिक व पुरातात्विक महत्व के स्थल इसकी गौरवगाथा को खुद ही बयां करते हैं। इन स्थलों में मौजूद भित्ती चित्र व कलाकृतियां इसका जीता-जागता उदाहरण है। यहां मौजूद सभी स्थलों में से सबसे महत्वपूर्ण व पर्यटकांे के आकर्षण का केंद्र है बालेश्वर का मंदिर।
नगर की मुख्य सड़क से मात्र सौ मीटर की दूरी पर स्थित यह मंदिर शिल्प का बेजोड़ नमूना है। 12 वीं सदी में कत्यूरी शासकों द्वारा निर्मित बालेश्वर मंदिर समूह अपने समय में देश में प्रचलित सर्वोत्तम शिल्प शैलियों की अनूठी मिशाल है। माना जाता है कि चंपावत के अधिकांश शिल्प कत्यूरी राजवंश ने ही निर्मित किये थे। मंदिरों के समूह बालेश्वर परिसर में श्रृंगार की देवी चंपा व बाली, सुग्रीव सहित अन्य मंदिर भी हैं। मूल रूप से इसे शिव का मंदिर माना जाता है। जानकारों के मुताबिक बलुआ व ग्रेनाइड किस्म के पत्थरों से निर्मित मंदिर समूह की छतें संकुल पर्वतों की भांति निर्मित हैं। शिखर के ठीक नीचे गर्भ गृह बनाये गये हैं। मंदिरों में बाहरी तथा भीतरी दीवारों पर सुंदर कलात्मक मूर्तियां बनाई गयी हैं। मंदिर के प्रवेश द्वार से पहले चार खंभों पर टिके मंडप इसको अलग ही रूप प्रदान करते हैं। मंडप की उल्टी छतों पर नृत्य करती अप्सराओं की मूर्तियां निर्मित की गई हैं।
मंडप के गर्भगृह के अंतराल में कई श्रृंगारिक मूर्तियां निर्मित है। गुंबदनुमा मंदिर के बीचों बीच शिवलिंग की स्थापना की गई है। मंदिर परिसर में कुछ समय व्यतीत करने व मूर्तियों को गौर से निहारने पर प्रतीत होता है मानों हम कहीं स्वर्ग लोक में हों और विभिन्न देवी-देवता, अप्सराएं व पशु-पक्षी क्रीडा कर रहे हों। इन मूर्तियों को निहारने पर ऐसा लगता है जैसे वो अभी तुरंत सजीव हो नृत्य कर उठेंगी। मंदिर की दीवारों पर नृत्य करती अप्सराएं व वाद्ययंत्र बजाती मूर्तियां पर्यटकों को बरबस ही अपनी ओर आकर्षित करने लगती हैं। इन मूर्तियों की विभिन्न प्रकार की भाव भंगिमाएं ऐसी प्रतीत होती हैं मानों जीवन का सारा रंग इनमें ही डाल दिया गया हो। पत्थरों को छेनी व हथौड़े से काटकर बनाई गई ये बेजान मूर्तियां पास से देखने पर ऐसी लगती हैं जैसे तुरंत ही संवाद करने लगेंगी। इस मंदिर में निर्मित मूर्तियों की सबसे बड़ी खासियत यह है कि इसमें हर किसी को अपने व्यक्तित्व की झलक देखने को मिलती है। मंदिर में निर्मित मूर्तियों में जहां विरह झेल रहे प्रेमी को अपनी प्रेमिका नजर आती है वहीं धार्मिक प्रवृत्ति के लोगों को अपने ईष्ट की झलक दिखाई देती है।
इस मुश्किल में ये तस्वीरें अच्छी लगती हैं
ReplyDeleteझूठ- फ़रेब- भरी दुनिया में ....
सचमुच ...
सच्ची लगती हैं ...
veri good
ReplyDeleteharishji chha gaye mahraj
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