पूरन कापड़ी खटीमा
शहीद परमजीत के माता पिता |
इस छाव घनेहरी से वह धूप ही अच्छी थी, वह जिस्म जलाती थी तो यह रुह जलाती है यह टिस है राज्य आंदोलन के दौरान शहीद हुए परिजनों की। जो राज्य गठन के दस साल बीत जाने के बाद भी दर-दर के ठोकरें खाने के मजबूर हैं। राज्य आंदोलन के दौरान 1 सितंबर 1984 केे खटीमा में हुए गोलीकाण्ड में सलीम, भवान सिंह, प्रताप सिंह शहीद हो गये थे तथा धर्मानन्द भट्ट, परमजीत सिंह, गोप चन्द, रामपाल सिंह लापता हो गये थे। जिन्हें बाद में शहीद घोषित कर दिया गया था। इन सात शहीदों में से सबसे दयनिय स्थिति में परमजीत के परिवार है।
बतादें कि 1 सितम्बर 1984 केे परमजीत अपने घर से दोस्तों के साथ खटीमा में जुलुस के नेतृत कर रहा था। परमजीत सिंह जैसे लोगों की शहादत के बाद राज्य भी प्राप्त हो गया। लेकिन शहीद के बुढ़े मां-बाप आज भी दो जून की रोटी के लिए मोहताज हैं। प्रदेश सरकार ने शहीदों के परिवार वालों केे जो भी आर्थिक सहायता दी थी वह परमजीत की पत्नी चरनकौर ने ले ली और दूसरी शादी कर उज्जैन चली गई। लेकिन परमजीत के पिता नानक सिंह व उनकी पत्नी सरनकौर अपने इकलौते लडक़े की मौत के बाद अहसाय हो गये हैं।शहीद केे परिजनों केे पास रहने केे लिए मकान नहीं है इसलिए किराये के मकान में रहते है। नानक सिंह चश्मे की फेरी लगाते है लेकिन उम्र केे बड़ते पड़ाव में पहुंच जाने के कारण अब फेरी का काम भी ज्यादा नहीं हो पा रहा है। ऐसे में नानक सिंह व उनकी पत्नी दोनों को दो जून की रोटी के लिए भी तरसना पड़ रहा है।
वहीं क्षेत्र के कुछ समाजसेवियों के प्रयास के बाद 2005 में उन्हें सरकार की ओर से वर्ग चार की भूमि का पट्टा भी दिया गया है। लेकिन उस पर दबंगों का कब्जा है और मामला न्यायालय में विचाराधीन है। नानक सिंह कहते है खाने केे रोटी नहीं मिल पा रही है ऐसे में न्यायालय में लडऩे का साहस नहीं हो पा रहा है।
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