Wednesday, July 27, 2011

तराई की बेटी ने जमाया अमेरिका में कारोबार

कड़े संघर्ष के बाद आईटी कंपनी की मालकिन

रुद्रपुर। जहांगीर राजू

रुद्रपुर में पढ़ी-बढ़ी रसनीत कौर आज एक अमेरिकन आईटी कंपनी की मालिक है। अमेरिका और यूरोप में पैर जमाने के बाद रसनीत अब भारत में अपनी कंपनी को विस्तार दे रही है। चंडीगढ़ मंे उन्होंने इसके लिए बाकायदा दफ्तर खोल दिया है। यहां काम करने वाले 30 युवा रसनीत के सपने को सच करने में जुटे हुए है।

एक निजी स्कूल के कार्यक्रम में भाग लेने आई रसनीत ने बाताया कि उनके पिता यहां ऊधमंिसंहनगर और रामपुर के बॉर्डर पर स्थित चड्डा पेपर मिल में जीएम रहें। रसनीत की इंटरमीडिएट तक की पढ़ाई रुद्रपुर के जेसीज पब्लिक स्कूल में हुई। 1997 में रुद्रपुर मंे इंटर की पढ़ाई पूरी करने के बाद रसनीत ने अर्थशास़्त्र में एमए और फिर एमबीए किया। आईटी की दूर-दूर तक कोई समझ न होने के बावजूद रसनीत ने 2002 में अमेरिका में बेल्वो के नाम से आईटी कंपनी शुरू की।  अमेरिका के डेलोस शहर में इसका मुख्यालय बनाया। रसनीत बताती है कि कंपनी को अपने पैरों में खड़ा करने के लिए उन्होंने 10 साल मेहनत की। आखिर मेहन रंग लायी और आज वह आईटी आटोमिशन के साथ प्रिंट व मेल इंडस्ट्री के क्षेत्र में काम कर रही है।
इस समय वह जिराक्स समेत दुनिया की 500 कंपनियों के बाद यूरोप में  अपनी कंपनी का काम बढ़ाने के बाद रसनीत ने अब चंडीगढ़ में भी अपना दफ्तर बना लिया है। इस दफ्तर में उन्होंने 30 से अधिक युवाओं को रोजगार दिया है।
उत्तराखंड से जुड़े रहने की तमन्ना
रसनीत कहती है, आज जो भी हू, उसमें रुद्रपुर और उत्तराखण्ड का विशेष योगदान है। इसलिए उत्तराखण्ड में कंपनी का काम शुरू करके यहां की सेवा करने की तमन्ना है। उन्हांेने कहा कि उत्तराखंड में औद्योगिक विकास के साथ ही आईटी इंडस्ट्री के विकास की काफी संभावना है। सरकार को चाहिए  की वह बड़ी आईटी कंपनियों को निवेश के लिए यहां आकर्षित करें।

Friday, July 8, 2011

विधवा को परिवार बसाने की इजाजत क्यों नहीं ?

चंडीपुर गांव में विधवा हुई युवक के साथ जान देने को  मजबूर
                                                            
                                                   (रुद्रपुर से जहांगीर राजू)

शीला
 चंडीपुर गांव में हुई प्रेमी युगल की आत्महत्या की घटना कई सवाल छोडक़र गयी है। इस घटना से जहां बेगुनाह हरिदासी हाथ की मेहंदी सुखने से पहले ही बेवा हो गयी वहीं शीला की मौत से उसकी पांच साल की बच्ची हमेशा के लिए अनाथ हो गयी है। यह घटना एक विधवा महिला को बहु के रुप में स्वीकार नहीं करने वाली सामाजिक मान्यताओं को कटघरे में खड़ा कर गयी है। साथ ही यह सवाल भी छोड़ गयी है कि विधवा महिला को परिवार बसाने की इजाजत क्यों नहीं है।
चंडीपुर गांव के युवक प्रशान्त का अपराध यही था कि उसने गांव की विधवा महिला शीला से प्रेम किया था।  प्रशान्त का यह रिश्ता न तो उसके परिजनों को स्वीकार था और नहीं समाज के लोग इस रिश्ते के पक्ष में थे। जिसके चलते प्रशान्त के परिजनों ने उसका हरिदासी से जबरन विवाह करा दिया। लोक लाज के चलते प्रशान्त वैवाहिक कार्यक्रम में तो शामिल हो गया, लेकिन वह अपने नए साथी के साथ दो गज का फासला तक तय नहीं कर पाया। जिसके चलते उसने शीला के साथ मिलकर सल्फास खा लिया और दोनों इस दुनिया को हमेशा के लिए छोडक़र चले गए। दोनों की मौत के बाद प्रशान्त की पत्नी हरिदासी व शीला की पांच साल की बेटी काली सामाजिक मान्यताओं के भेंट चढ़ गए हैं, जहां एक विधवा महिला को परिवार बसाने की इजाजत नहीं दी जाती है।  
प्रशान्त
   गांव के युवा परितोष मंडल कहते हैं कि यदि शीला व प्रशान्त का विवाह हो गया होता तो आज नहीं हरिदासी विधवा होती और नहीं काली को अनाथ बनना पढ़ता। प्रशान्त व शीला के रिश्ते से मासूम बच्ची काली को नया जीेवन मिलता। लेकिन समाज के लोगों ने दोनों के रिश्ते को आगे नहीं बढऩे दिया। समाज के लोगों ने ऐसे रिश्ते को अपनाया, जिसमें दो लोग हमेशा के लिए बेसहारा हो गए हैं, लेकिन उस रिश्ते को परवान नहीं चढऩे दिया जिससे पांच साल की बच्ची काली को नया जीवन मिलता। परिमल राय कहते हैं कि प्रशान्त व शीला की मौत हमेशा सामाजिक मान्यताओं की दुहाई देने वाली व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर गयी है।
हरिदासी
 प्रशान्त व शीला की मौत से जहां युवा पीढ़ी नई दिशा में सोचने को मजबूर है वहीं सामाजिक मान्यताओं की बात करने वाले लोगों ने आज भी इस घटना से कोई सबक नहीं लिया है। इस प्रकार देखा जाए तो इस घटना से सबक लेते हुए समाज के लोगों ने नई व्यवस्था को कायम करने की पहल के लिए आगे आना होगा। जहां फिर से ऐसे रिश्ते को बढ़ावा नहीं दिया जाए जहां काली जैसी मासूम बच्ची फिर से अनाथ न हो और फिर से कोई विवाहिता हाथों की महेंदी उतरने से पहले बेवा हो जाए।


शीला के साथ काली
   असफलता बना अवसाद का कारण

रुद्रपुर। मनोवैज्ञानिक डा. रेखा जोशी बताती हैं कि विधवा को जीवन साथी बनाने का सपना देखने वाले युवा को समाज से मिले तिरस्कार के चलते उसे मिली असफलता ही उसके अवसाद का कारण बनी। जिसके चलते दोनों ने समाज से संघर्ष करने के बजाए गहरे अवसाद में आकर खुदकुशी कर ली। वह कहती हैं कि इस तरह की घटनाओं के लिए हमेशा सामाजिक व पारिवारिक स्थितियां जिम्मेदार होती हैं। इन दोनों के रिश्ते को यदि सामाजिक व पारिवारिक मान्यता मिल गयी होती तो शायद इस घटना से बचा जा सकता था। इस तरह की घटनाएं हमें सामाजिक मान्यताओं का फिर से मूल्यांकन करने की ओर प्रेरित करती हैं।


Thursday, July 7, 2011

उम्मीद जगाता ”टेंशन प्वाइंट“

- चार सौ से अधिक समस्याएं हो चुकी हैं प्रदर्शित

- टेंशन प्वाइंट नाम से ब्लॉग भी बनाया

चंदन बंगारी रामनगर

पैसे के पीछे अंधी दौड़ इंसान को अपने इर्द गिर्द फैले हुए भ्रष्टाचार व व्यवस्था की विसंगतियों के प्रति जान बूझकर भी अनजान बना रही है, वहीं संवेदनहीनता के दौर में भी कुछ लोग अपने विचारों की अलख से ठहरे हुए पानी में हलचल पैदा करने की कोशिश में जुटे हुए हैं।
अल्मोड़ा जिले के भिक्यासैंण निवासी शंकर फुलारा भी उन्हीं में एक हैं, जिन्होने अपने कस्बे में टेंशन प्वाइंट नाम के प्रयोग के जरिये जमाने के दर्द व व्यवस्था में पनप रहे भ्रष्टाचार को उजागर करने का अभियान छेड़ा हुआ है। दरअसल उनका यह टेंशन प्वाइंट और कुछ नहीं बल्कि कस्बे के बड़ियाली तिराहे पर लगा एक नोटिस बोर्ड है, जिसमें जनसमस्याओं के विवरण, सरकारी मशीनरी की बेरूखी और राजनीतिबाजों के झूठे वादों पर तीखे तंज कसे जाते हैं। जनता के बीच लोकप्रिय टेंशन प्वांइट पर लिखी इबारतों का तुरंत असर भी होता है। बीते पांच सालों से अब तक टेंशन प्वांइट में चार सौ से ज्यादा मुददे उठाए जा चुके हैं।
टेंशन प्वाइंट की शुरूआत के बारे में शंकर कहते हैं कि सितंबर 2006 में सरकार के प्रयासों से लगे चिकित्सा शिविर में कई डाक्टर पहुंचे थे। लेकिन अस्पताल में डाक्टर मौजूद नही थे। उन्होंने बाजार के चौक पर टेंशन प्वाइंट का बोर्ड लगाकर  पोस्टर लगाया ”सरकार जब चिकित्सा शिविर लगा सकती है तो दाल, आलू, सड़क, तेल, बिजली शिविर भी लगाने की जरूरत है“। इस पहल को जनता की सराहना मिलने के बाद टेंशन प्वाइंट का सफर अनवरत चल रहा है। वह बताते है कि 2008 में बैंक द्वारा ग्रामीणों को कागज पूरे होने के बावजूद लोन नहीं देने पर टेंशन प्वाइंट में लिखा कि ”सरकार ने योजनाएं लोगों को फंसाने के लिए बनाई हैं, भला हो बैंक कर्मियों का जो लोन नहीं देते है“। समस्या प्रदर्शित होने के फौरन बाद व्यवस्था सुधर गई।
पानी, बिजली, सड़क, पेंशन जैसी कई समस्याएं बोर्ड में प्रदर्शित होने पर अधिकारी उसका निदान करने लगे। पोस्टरों में स्थानीय समस्याओं, बुराईयों, पर्यावरण संरक्षण सहित राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय घटनाक्रमों को रखने केअलावा नेताआंे की कार्यप्रणाली पर जमकर कटाक्ष किया जाता पोस्टर लगते ही उसे पढ़ने वालों की भीड़ जमा हो जाती है। यहां नये पोस्टर के लिए लोगों में उत्सुकता बनी रहती है, लोगों को टेंशन प्वाइंट अपनी समस्याओं के समाधान का सहारा लगने लगा है।
 वह .tensionpoint.blogspot.com  नाम से ब्लॉग भी चलाते है। भिक्यासैंण जैसे पहाड़ी कस्बे में भले ही इस पहल ने ज्यादा सुर्खियां नहीं बटोरी हों, मगर उनका टेंशन प्वाइंट इलाके में चर्चित है।   सरकारी अधिकारियों के रवैये व भ्रष्टाचार से त्रस्त लोगों के लिए टेंशन प्वाइंट आशा की किरण है।