Sunday, January 30, 2011

तो अब ग्रामीणों को मिल गई आदमखोर से मुक्ति


पार्क निदेशक का दावा- पांच लोगों को शिकार बनाने वाले आदमखोर बाघ को ही मारी गई गोली 

 पदचिन्ह पहचानने में हुई थी चूक

चंदन बंगारी रामनगर

सुंदरखाल गांव में रिश्तेदारी में आए युवक को दिनदहाड़े बाघ उठाकर ले गया। काफी खोजबीन करने के बाद युवक के शरीर का कुछ ही हिस्सा मिल सका है। ग्रामीणों ने युवक को मौत के घाट उतारने वाले को आमदखोर बाघिन बताते मारने की मांग को लेकर एनएच पर जाम लगा दिया। बाद में वन व पुलिस कर्मियों के संयुक्त दल ने शव के पास मौजूद बाघ को गोलियों से छलनी कर ढेर कर दिया। पार्क अधिकारी ग्रामीणों को आदमखोर बाघ से मुक्ति मिलने की बात कह रहे है। लेकिन बाघ के मरने की रात एक दूसरे बाघ ने सुंदरखाल वासियों का जीना हराम कर दिया। ग्र्रामीणों ने किसी तरह बाघ को जंगल भगाया।
 जिसके बाद ग्रामीण अब दहशत में आ गए है। वाक्या बुधवार का है। जब मालधनचौड़ नंबर 2 में रहने वाला पूरन उम्र 26 वर्ष पुत्र भूपाल राम सुंदरखाल में रहने वाली नानी शांति देवी के घर आया था। दोपहर करीब 1 बजे वह घर से 50 मीटर की दूरी पर गांव से होकर जाने वाले कोसी नदी को जाने वाले नाले पर शौच के लिए गया था। काफी देर तक जब वह नही लौटा तो परिजनों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर खोजबीन करनी शुरू कर दी। गुरूवार की सुबह ग्रामीणों ने गांव में ही स्थित रामनगर वन प्रभाग के कोसी रेंज के जंगल से युवक के एक पैर का हिस्सा बरामद किया। इस दौरान बाघ भी काफी देर तक घटनास्थल के आसपास मंडराता रहा। 
जिसे भगाने के लिए वनकर्मियों ने हवाई फायरिंग कर दी। बाघिन को भगाने का आरोप लगाते हुए ग्रामीणों ने गश्त कर रहे वनकर्मियों पर पथराव कर उन्हंें भगाने के साथ ही काशीपुर-बुआखाल राष्ट्रीय राजमार्ग 121 पर जाम लगा दिया। ग्रामीणों के आक्रोश को देखते हुए वन व पुलिस कर्मियों के दल ने सात हाथियों की मदद से इलाके में गश्त की। बाद में जंगल में शव के बिखरे पड़े हिस्सों  से करीब 20 मीटर की दूरी पर मौजूद बाघ पर चार टीमों ने 32 राउंड फायर किए। गोली लगने से बाघ की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। बाघ मारने के बाद करीब 2 बजे ग्रामीणों ने जाम खोला। बाद में युवक के सिर व सीने का हिस्सा भी ग्रामीणों को मिल गया था। 
          आदमखोर बाघ का पीएम करते डाक्टर 

लेकिन अब यह सवाल खड़ा हो गया है कि वन विभाग ने बाघिन को नरभक्षी घोषित किया था, मगर मरने वाला तो नर बाघ निकला है। मारे गए बाघ का तीन डाक्टरों के पैनल ने पोस्टमार्टम किया। बाघ के कंधे एक पखवाड़े पूर्व चलाई गई गोली के छर्रे बरामद हुए है। बाघ का विसरा जांच के लिए भेजा गया है। बाघिन की जगह बाघ की मौत पर उठी सारी शंकाओं पर विराम लगाते हुए पार्क निदेशक ने कहा कि पदचिन्ह एकत्र करने भी अक्सर गलती हो जाती है। मगर संतोष की बात है कि पांच लोगों की जान लेने वाले नरभक्षी बाघ का अब अंत हो गया है। ग्रामीणों की सुरक्षा में कोई ढिलाई नही बरती जाएगी।

वहीं शुक्रवार को तराई पश्चिमी वन प्रभाग की कार्यशाला में मारे गए बाघ का डा. राजीव सिंह, डा. वीपी सिंह व डा. एके रावत की पैनल टीम के अलावा पशु चिकित्सक डा. सत्यप्रियगौतम भल्ला की मौजूदगी में पोस्टमार्टम किया गया। बाघ को वनकर्मियों की चार गोलियां लगी थी। उसके पेट से युवक व एक जानवर के मांस के कुछ अवशेष निकले। जब बाघ का पिछले दोनों पंजों को नापा गया तो वह हूबहू मादा बाघिन की तरह निकले। चंूकि बाघिन के पंजे नुकिले व बाघ के पंजे गोल होते है। लेकिन मारे गए बाघ का पंजे भी नुकिले निकले। वहीं बाघ के दाहिने कंधे से 11 जनवरी को शिकारियों द्वारा मारी गई गोलियों के छर्रे निकले। जिसके बाद पार्क अधिकारियों ने राहत की सांस ली। पोस्टमार्टम की कार्यवाही पूरी होने के बाद बाघ के शव को कार्यशाला में ही जला दिया गया। पार्क निदेशक रंजन मिश्रा ने कहा कि दो माह से आतंक का पर्याय बने बाघ का अंत हो गया है। उन्होंने बताया कि बाघ का पिछला पंजा मादा जैसा है।
जिसे जांच के लिए डब्लूआईआई भेजा जाएगा। पदमार्क पहचानने में ऐसी गलतियां तो जिम कार्बेट तक से हुई है। नरभक्षी को किसी ने तो देखा नही था। उस समय शिकारियों द्वारा मारी गई गोली इसके शरीर से मिली है। उन्होंने कहा कि बाघ को ट्रेंकुलाइज करना खतरे से खाली नही था। आदमखोर को नष्ट करने के आदेश थे। बाघ काफी उम्रदराज हो चुका था। उन्होंने कहा कि जनता की सुरक्षा के लिए हूटर लगाकर गश्त की जाएगी। रामनगर व कार्बेट के वनकर्मी लगाकार तालमेल बनाकर गश्त करेंगे। अगर जरूरत पड़ी तो जिस जगह पर बाघ मारा गया है वहां टैंट लगाकर वनकर्मी बैठेंगे। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में करीब 23 बाघ मौजूद है। इस मौके पर मुख्यवन्यजीव प्रतिपालक श्रीकांत चंदोला, मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं एससी पंत, पार्क उपनिदेशक सीके कवदियाल, डीएफओ रविंद्र जुयाल, निशांत वर्मा, एसडीओ रमाशंकर तिवारी, पीसी आर्य सहित अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं के सदस्य व वनकर्मी मौजूद रहे।


Sunday, January 23, 2011

आईपीएल में भी दिखेगा उत्तराखंड का दम


पिथौरागढ़ के उन्मुक्त चंद का दिल्ली डेयर डेविल्स की टीम में चयन।

दिल्ली की रणजी टीम में दिखा चुके हैं जलवा

जहांगीर राजू रुद्रपुर से

उत्तराखंड मूल के क्रिकेट खिलाड़ी उन्मुक्त चंद अब आईपीएल में भी अपनी बल्लेबाजी का दम दिखाएंगे। उन्मुक्त का आईपीएल में दिल्ली डेयर डेविल्स की टीम में चयन हो गया है। उन्मुक्त की तमन्ना है कि वह आईपीएल में बेहतर खेल का प्रदर्शन कर भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बने।
मूलरुप से पिथौरागढ़ जिले के खडक़ू भल्या गांव निवासी 17 वर्षीय उन्मुक्त चंद के पिता भरत चंद ठाकुर दिल्ली में शिक्षक हैं। 6 साल की उम्र से ही क्रिकेट खेल रहे उन्मुक्त का करियर उल्लेखनीय रहा है। बारहखम्बा रोड स्थित मॉडन स्कूल में 12वीं के छात्र उन्मुक्त ने दिल्ली की टीम से अंडर 15, 16 व 19 में भागीदारी करने के बाद रणजी की वनडे टीम में चयन हुआ। उन्होंने अंडर 19 में देशभर के खिलाडियों में सर्वाधिक 4३५ रन बनाए। जिसमें दो सेंच्युरी व एक 96 रनों के साथ अर्द्धशतक शामिल रहा।
अंडर 19 में उल्लेखीय प्रदर्शन के बाद उन्मुक्त का दिल्ली की रणजी टीम में चयन हुआ। जिसमें उन्होंने रेलवे के खिलाफ खेलते हुए 15१ रन बनाए। साथ ही आसाम व सौराष्ट्र की टीम के खिलाफ अर्द्धशतक बनाया। बीसीसीआई की अंडर 19 इंटरनेशनल क्रिकेट टीम में भी उन्मुक्त का चयन हुआ है। इसकी तैयारी के लिए मुंबई में होने वाले टुर्नामेंट में ेह्लह नार्थ जोन ऽी टीम का प्रतिनिधित्व करेेंगे।   उन्मुक्त के बेहतर खेल के प्रदर्शन के साथ उन्मुक्त का दिल्ली डेयर डेविल्स की टीम में चयन हुआ है। उन्मुक्त की तमन्ना है कि वह आईपीएल में बेहतर खेल का प्रदर्शन के भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा बनें। हिन्दुस्तान से बातचीत में उन्मुक्त ने कहा कि प्रीबोर्ड परीक्षा होने के बावजूद वह पढ़ाई के साथ-साथ आईपीएल की तैयारी में जुटे हुए हैं। जिसके लिए वह हररोज कठोर अभ्यास कर रहे हैं।
उन्मुक्त के पिता भरत चंद ठाकुर बताते हैं कि छह साल की उम्र से ही वह क्रिकेट को ही अपना पैसन बना चुका है। हररोज चार से छह घंटे तक वह क्रिकेट की प्रैक्टिस करता है। 
वह बताते हैं कि उन्मुक्त जब भी अपने गांव पिथौरागढ़ जाता है तो वह वहां भी गांव के बच्चों के साथ क्रिकेट खेलना नहीं भूलता। इस बार की गर्मियों की छूट्टियों में भी वह उन्मुक्त व परिवार के साथ पिथौरागढ़ जाएंगे। उन्मुक्त के पिता भरत चंद को भी अपने बेटे पर बड़ा विश्वास है। वह कहते हैं कि पिथौरागढ़ जिले के सुदूरवर्ती गांव से निकलने के बाद उनका बेटा एक दिन भारतीय क्रिकेट टीम का हिस्सा जरुर बनेगा।


Wednesday, January 12, 2011

न जाने कितनी जाने और लेगी आदमखोर बाघिन

सर्पदुली रेंज में लकड़ी व घास लाने जा रही महिलाएं आसानी ने बाघिन का शिकार बन रही है 

चंदन बंगारी रामनगर

कार्बेट पार्क के सर्पदुली रेंज से सटे गांवों में आदमखोर बाघिन का कहर थमने का नाम नही ले रहा है। लकड़ी व घास की तलाश में जंगल जा रही महिलाएं अपनी जान से हाथ धो रही है। सोमवार को घास लेने जंगल गई शांति देवी उम्र 55 वर्ष को बाघिन ने चौथा शिकार बना दिया। मंगलवार को उसका शव सर्पदुली रेंज के जंगल से बरामद हुआ। घटना के बाद से ही आसपास के गांवों में दहशत का माहौल पहले से बढ़ गया है। जंगल पर निर्भर रहने वाले ग्रामीणों को बाघिन के आतंक से मुक्ति नही दिलाने के दावे हवाई साबित होते जा रहे है। मुख्यवन्यजीव प्रतिपालक के आदमखोर को मारने के आदेश के 12 दिन बीतने के बावजूद इसे अभी तक खत्म नही किया जा सका है ग्रामीणों का कहना है कि विभागीय अधिकारी आदमखोर को मारने की बजाय उसे सुरक्षित पकड़ने की ज्यादा कवायदें कर रहे है। 
आतंक का पर्याय बनी बाघिन ने पिछले दो माह में ही चार महिलाओं को अपना निवाला बना दिया है। बाघिन को मारने के आदेश जारी होने के बावजूद उसे सुरक्षित पकड़ने के लिए जंगल में दो पिंजरे जरूर लगाए गए है। इनमें से एक पिंजरें में 8 जनवरी को एक बाघ फंस गया था। वन विभाग की कवायदों से लगता है कि वह बाघिन को मारने के बजाय उसे पकड़ने पर ज्यादा जोर दे रहा है। न तो बाघिन को मारा जा सका है न ही विभाग महिलाओं को जंगल जाने से रोक पा रहा है। जिसके चलते बाघिन ने एक और महिला को अपना शिकार बना दिया है। रेंज से सटे गर्जिया व सुंदरखाल में रहने वाले ग्रामीण बहुत गरीब है। वह चूल्हा जलाने के लिए लकड़ी व मवेशी पालने के लिए घास के लिए पूरी तरह से जंगल पर ही निर्भर है। वहीं पक्के शौचालय नही होने के कारण वह जंगल में ही शौच को जाते है। हालांकि सभी घटनाएं अभी तक जंगल के भीतर हुई है। लेकिन गांवों से सटे जंगल में बाघिन की बेखौफ गतिविधियां बढ़ने से उसके गांव के भीतर घुसकर भविष्य में वारदातें करने से भी इनकार नही किया जा सका है। कार्बेट पार्क के सर्पदुली रेंज में शिकारियों की गोली से घायल हुई आदमखोर बाघिन की तलाश में अधिकारी व वनकर्मी जमकर पसीना बहा रहे है। पार्क वार्डन द्वारा गठित 3 टीमें लगातार जंगल में हाथी व पैदल गश्त कर बाघिन को खोज रहे है। मगर घायल बाघिन का अभी तक सुराग नही लग सका है। महिला के शव को जंगल से लाकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया गया है। घायल बाघिन के ज्यादा हमलावर होने की आशंका के मददेनजर जंगल से सटे गांवों में मुनादी कराकर ग्रामीणों को जंगल न जाने की अपील की जा रही है।
 रामनगर के सर्पदुली रेंज में घटना के बाद आक्रोश जताती महिलाएं 
मंगलवार की रात करीब 8 बजे सर्पदुली रेंज में रखे महिला के शव को खाने आई बाघिन पर शिकारियों व वनकर्मियों ने गोली चला दी थी। गोली लगने से पहले तक बाघिन मृत महिला के चेहरे व हाथ के मांस का कुछ हिस्सा खाने में सफल रही। गोली लगने से घायल बाघिन जंगल की तरफ निकल गई थी। रात होने के कारण कितनी गोली बाघिन को लगी, इसका पता नही चल सका। लेकिन घटनास्थल के आसपास खून मिलने से उसके गोली लगने से घायल होने का पता चला। बाद में वनकर्मियों ने देर रात 1 बजे से विशेष आपरेशन चलाकर जंगल में बाघिन की तलाश की। बुधवार की सुबह 7 बजे से पार्क वार्डन यूसी तिवारी ने तराई के एसडीओ पीसी आर्य व रामनगर वन प्रभाग के एसडीओ रमाशंकर तिवारी को साथ लेकर तीन टीमें गठित की। एक टीम में शिकारी ठाकुर दत्त जोशी, लखपत सिंह के साथ वनकर्मियों को भेजकर लगाकार पैदल कांबिंग की जा रही है। पैदल गश्त वालों के दोनों तरफ अधिकारी दो हाथियों से बाघिन को तलाश रहे है। हालांकि टीमों को कई जगह पर बाघिन के खून के धब्बे जरूर मिले मगर देर शाम तक उसका पता नही चल पाया। बाघिन की तलाश लगातार की जा रही है। वहीं मुख्यवन्यजीव प्रतिपालक श्रीकांत चंदोला भी गुप्त जगह बैठकर पूरे अभियान की जानकारी फोन के जरिए अधिकारियों से लेते रहे। पार्क वार्डन यूसी तिवारी ने बताया कि गोली लगने से घायल हुई बाघिन इंसानों के लिए बेहद खतरनाक हो गई है। हाथी व पैदल कांबिग कर उसे खोजा जा रहा है। विशेष सर्तकता बरतते हुए कार्बेट से सटे आमडंडा से लेकर मोहान तक मुनादी कराकर लोगों को नही जाने की अपील की जा रही है।घटना के बाद से ही गर्जिया व सुंदरखाल में दहशत का माहौल बना हुआ है। गर्जिया गांव में रहने वाली भावना, कविता, मुन्नी देवी का कहना है कि लकड़ी व घास के बगैर कैसे जीवनयापन करेंगे। अधिकारी बाघिन को मारने का नाटक कर रहे है। डरते हुए कहती है कि न जाने बाघिन अभी कितनी महिलाओं की जान और लेगी। 



Saturday, January 8, 2011

यूं ही नही बढ़ रहा ग्रामीणों में बाघों के प्रति गुस्सा

 कार्बेट पार्क में आराम करता बाघ
ग्रामीणों का बढ़ता गुस्सा बाघ संरक्षण की दिशा में अच्छा संकेत नही माना जा रहा है 

चंदन बंगारी

रामनगर। विश्वप्रसिद्व जिम कार्बेट नेशनल पार्क में पाए जाने वाले जिन बाघों की एक झलक पाने के लिए सैलानी बेताब रहते है, अब यही बाघ पार्क के आसपास रहने वाले ग्रामीणों की जान के लिए मुसीबत बनते जा रहे है। बाघ ने बीते दो माह में ही जंगल से घास ला रही तीन महिलाओं को अपना निवाला बना दिया है। हालांकि सभी घटनाएं जंगल के भीतर हुई है। घटना से आक्रोशित सुंदरखाल के ग्रामीण इन दिनों नरभक्षी बाघ को मारने की मांग पर अड़े हुए है। अपनी मांग को लेकर ग्रामीण एक बार कार्बेट का धनगढ़ी गेट तक बंद करा चुके है। ग्रामीणों के आंदोलन के दवाब में मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक ने बाघ को मारने तक आदेश दे दिए है। बाघ मारने के लिए जंगल में प्रसिद्व शिकारी ठज्ञकुर दत्त जोशी को तैनात किया गया है। सरकार की लाख कवायदों के बीच मानव-बाघ संघर्ष थमने का नाम नही ले रहा है। जंगल में लगातार मानवीय हस्तक्षेप बढ़ने व शिकार की कमी की वजह से बाघ इंसानों पर हमले कर रहा है। जिसका सबसे ज्यादा खामियाजा जंगल में लकड़ी व घास लाने वाली महिलाओं को भुगतना पड़ रहा है। 
आदमखोर बाघ मारने की मांग करते ग्रामीण
कभी संरक्षण में हमेशा आने रहने वाले ग्रामीणों का बाघ के प्रति बढ़ते गुस्से को वन्यजीव प्रेमी संरक्षण के लिहाज इसे सही नही मान रहे है। बाघ को मारने की मांग कर रहे ग्रामीणों के गुस्से ही वजह की पड़ताल की जाय तो कई कार्बेट प्रशासन की कई कमियां सामने निकलकर आती है। इन्हीं कमियों की वजह से लोगों को बाघ बचाने की अपील करने वाले वन विभाग के अधिकारियों को मजबूरी में इसे मारने के आदेश तक देने पड़े। बात शुरू करते है 12 नवंबर को बाघ द्वारा मारी गई महिला नंदी देवी की घटना से। महिला को मारने के बाद जब ग्रामीणों ने इंसानों का मांस खाने वाले  इस खतरनाक बाघ को पकड़ने की बात कही तो घटना को महज हादसा करार देते हुए हल्के में लिया गया। हालांकि पार्क प्रशासन ने इसे आदमखोर घोषित करते हुए पकड़ने के लिए सर्पदुली रेंज में दो पिंजरे लगा दिए थे। मगर बाद में मामला ठंडा होने पर बाघ पकड़ने की मुहिम भी खत्म कर दी गई। अधिकारियों ने बाघ के अचानक मानव मांस खाने की वजह को तलाशने की जरूरत तक नही समझी। जिसके फलस्वरूप ठीक एक हते बाद ही 18 नवंबर को एक बाघ ने रामनगर वन प्रभाग के कोसी रेंज में घास ला रही कल्पना देवी को मार दिया था। लेकिन यह बाघ व सर्पदुली रेंज में महिला को मारने वाले बाघ को लेकर संशय बना रहा। कुछ ग्रामीणों का कहना था कि घटना की सुबह उन्होंने एक बाघ को नदी पार करते हुए रामनगर वन प्रभाग के जंगल में जाते हुए देखा था। लेकिन अंत तक यह रहस्य ही बना रहा कि सुंदरखाल की महिला व चुकम में महिला मारने वाला बाघ एक ही था। चुकुम में भी बाघ को पकड़ने के लिए कुछ दिनों तक मुहिम चलाई गई,मगर बाघ को भी नही पकड़ा जा सका। एक महीने शांत रहने के बाद बाघ ने 29 दिसंबर की दोपहर सर्पदुली रेंज में घास ला रही देवकी देवी को शिकार बना डाला।
 आदमखोर बाघ मारने की मांग करते ग्रामीण
बाघ इतना बेखौफ था कि महिलाओं के झुंड से देवकी देवी को उठा ले गया। महिला का पूरा शव तक नही मिल सका है। जानकारों का कहना है कि तीनों घटनाओं को अंजाम देने वाला बाघ शिकार करने में असमर्थ लग रहा है। बाघ कभी भी अचानक सामने आए इंसान पर हमला करने के बाद उसका मांस नही खाता है। मगर सुंदरखाल व चुकम में बाघ ने महिलाओं का शिकार करने के बाद मांस भी खाया है। इसलिए बाघ के नरभक्षी होने की संभावना प्रबल है। जो इंसानों के लिए बेहद खतरनाक हो सकता है। बीमार या शिकार करने में असमर्थ बाघ को दूसरे स्वस्थ बाघ कोर जोन से बाहर कर देते है। इस समय जानवरों का प्रजनन काल चल रहा है। जिसके चलते अन्य जानवरों की तरह की बाघ के व्यवहार में परिवर्तन आने के साथ ही वह आक्रामक भी हो जाता है। तभी वह सामने आने पर हमले कर देता है। दो महिलाओं को खो चुके सुंदरखाल व चुकुम के ग्रामीणों में बाघों के प्रति आक्रोश पनपना शुरू हो गया था। आक्रोश को हवा देने का काम 29 दिसंबर को बाघ का शिकार हुई देवकी देवी की घटना से हुआ। घटना के बाद ग्रामीणों का गुस्सा फूट पड़ा। ग्रामीणों ने घटना के दो दिन बाद 31 दिसंबर को कार्बेट के धनगढ़ी गेट पर ताला जड़ दिया। ग्रामीणों के गुस्से को देखते हुए मुख्यवन्यजीव प्रतिपालक श्रीकांत चंदोला ने धरनास्थल पर आकर ग्रामीणों को बाघ मारने के लिखित आदेश की कापी देकर धरना शांत कराया था। आश्वासन के 5 दिन बीतने के बावजूद बाघ न मारने से गुस्साए ग्रामीणों ने कार्बेट मुख्यालय में नारेबाजी करते हुए धरना दिया। ग्रामीणों के आंदोलन को जनसंगठनों ने अपना समर्थन दिया। प्रदर्शन के दौरान ग्रामीणों की बाघ बचाओ समिति के कार्यकर्ताओ से तीखी नोंकझोक तक हो गई थी।
बाघ बचाने व मारने की मांग करने वाले आमने-सामने आ गए। इस संवेदनशील मामले पर लोग राजनैतिक रोटियां सेंकने से तक बाज नही आ रहे है। मुख्यवन्यजीव प्रतिपालक के आदेशों के बाद दो टीमें लगातार बाघ को नष्ट करने के लिए सर्पदुली रेंज में घूम रही है। लेकिन जंगल में 5 बाघ दिखाई देने के कारण आदमखोर बाघ की पहचान करने में मुश्किलें सामने आ रही है। महिलाओं को शिकार बनाने वाले बाघ की पहचान अभी तक नही हो सकी है। बाघ की पहचान के लिए पार्क प्रशासन ने घटनाओं के बावजूद किसी विशेषज्ञ को यहां बुलाने की जरूरत तक नही समझी है। बाघ मारने को लेकर संुदरखाल के ग्रामीणों का धैर्य जवाब देता जा रहा है। बाघ की दहशत के चलते गांव में शाम ढलते ही सन्नाटा पसर जाता है। रात में खेतों में लगी फसल का नुकसान करने पहुंचे नीलगाय, सुअर को भी ग्रामीण बाघ के डर के चलते भगाने घर से बाहर तक नही निकल पा रहे है। बाघ घटना के बाद भी गांव के आसपास देखे जा रहे है। इसे दुर्भाग्य ही कहेंगे कि जहां देश भर में कार्बेट पार्क के बाघों को बचाने ही पहल की जा रही है वहीं बाघों के अपने घर कार्बेट पार्क के आसपास रहने वाले ग्रामीण इसके आंतक से दुखी होकर मारने की मांग कर रहे है। बाघों के प्रति ग्रामीणों के गुस्से को रोकना बेहद जरूरी है। यही ग्रामीण जंगल में घुसने वाले तस्करों, जंगली जानवरों के घायल होने की महत्वपूर्ण जानकारी वन विभाग को देते है। इसलिए संरक्षण को लेकर ग्रामीणों की भूमिका नकारी नही जा सकती है। लेकिन पार्क अधिकारियों का ग्रामीणों के बीच किसी भी प्रकार का सामंजस्य नही है। इतने घटनाक्रम होने के बावजूद पार्क निदेशक ने ग्रामीणों के बीच जाने की जरूरत तक नही समझी। पार्क उपनिदेशक ने तो महापंचायत में पहुंचकर आक्रोशित ग्रामीणों पर ही कई सवाल खड़े कर दिए। जिसके बाद ग्रामीणों में इस अधिकारी को पंचायत से खदेड़ दिया। आंदोलन के बीच में इस तरह की बाते भी ग्रामीणों का आक्रोश बढ़ाने का कार्य कर रही है। ग्रामीण बाघ का शव देखने के बाद ही आंदोलन समाप्त करने की बात पर अड़े हुए है।
जिंदगी की आधी उम्र जंगल से घास लकड़ी लाकर गुजारने वाली सुंदरखाल की रामेश्वरी देवी का कहना है कि बाघ अब मानव का मांस खाने का आदि हो चुका है। इससे पहले कभी भी ऐसे बाघ को नही देखा। उन्होंने कहा कि इंसानों की जान का दुश्मन बने बाघ का खात्मा जरूरी है। कहती है बाघों के संरक्षण में करोड़ों रूपये बहाए जा रहे है,मगर उनको मूलभूत सुविधाएं तक नही दी जा रही है। वहीं पार्क अधिकारियों की जनता से दूरी संरक्षण के लिहाज से ठीक नही कही जा सकती है। बाघ व इंसानों के बीच बढ़ते टकराव रोकना वन विभाग व सरकार के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती बनकर सामने आ रही है। इसे रोके बिना बाघ संरक्षण की बात सोचना तक बेमानी है।  

-संरक्षण के लिहाज से ठीक नही रहा बीता साल 

रामनगर। करोड़ों रूपये खर्च होने के बावजूद बाघों का सरंक्षण अहम चुनौती बना हुआ है। बाघों का घर माने जाने वाले कार्बेट टाइगर रिजर्व में वर्ष 2010 में 3 बाघों की मौत हुई। जबकि एक बाघ को आदमखोर घोषित कर मारने का अभियान चल रहा है। वहीं 2009 में रिजर्व में यह आंकड़ा 6 तक पहुंच गया था। वर्ष 2010 में कार्बेट टाइगर रिजर्व के ढिकाला जोन में 5 जनवरी को आपसी लड़ाई व 11 जनवरी को प्राकृतिक कारण से नर बाघों मौत हुई। 2 जुलाई को कालागढ़ रेंज में पीठ में घाव होने से नर बाघ की मौत हो गई। रामनगर वन प्रभाग में एकमात्र बाघ की मौत 19 अगस्त को कालाढूंगी रेंज में नाले में बहकर होने से हुई। 14 मार्च को उत्तरी जसपुर रेंज में नर बाघ का शव मिला। वहीं 24 नवंबर को दक्षिणी जसपुर रेंज में बीमार हालत में मिले मादा बाघ ने पंतनगर में उपचार के दौरान दम तोड़ दिया। यह मौतें बाघ संरक्षण के अभियान को तगड़ा झटका देने वाली रही। 




Saturday, January 1, 2011

तराई में इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रीयल डवलपमेंट की नई पहल

वर्ष 2010 में 94 नए उद्योगों ने शुरु किया उत्पादन

औद्योगिक विकास पर हुआ 1914 करोड़ का पूंजीनिवेश
            

 (जहांगीर राजू रुद्रपुर से)

तराई में लगे उद्योगों ने वर्ष 2010 में इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रीयल डवलपमेंट के क्षेत्र में नईं शुरुआत की है। इसी पहल के चलते टाटा, अशोक लेलेंड व बजाज जैसे बड़े औद्योगिक समूह एक ही स्थान पर सारे उत्पादों का निर्माण कर रहं हैं। इस वर्ष बहुराष्ट्रीय कंपनी अशोक लेलेंड का क्षेत्र में 15 हजार करोड़ का निवेश कर इंटीग्रेटेड इंडस्डस्ट्रीयल डवलपमेंट की शुरुआत करना बड़ी उपलब्धि रहा।
उल्लेखनीय है कि वर्ष 2010 में तराई में 94 नए उद्योगों ने उत्पादन शुरु किया। जिसके चलते तराई में औद्योगिक विकास के क्षेत्र में 1914 करोड़ का पूंजीनिवेश हुआ। क्षेत्र में इस वर्ष बडे पैमाने पर पूंजी निवेश करने वाली कंपनियों में अशोक लेलेंड, डेकन हेल्थकेयर, सेम फूड्स, हल्दीराम, ओमेगा आइस हिल्स, जक्शन फार्मेस्यिुटिकल, गोल्ड स्टार, जीसी कारर्पाेरेशन, सर्वाेदय टेक्स्टाइल, आईटी डब्लू इंडिया, टाइटन इंडस्ट्री व यूएस फूड्स प्रमुख हैं। केन्द्रीय औद्योगिक पैकेज का फायदा मिलने के कारण इस वर्ष क्षेत्र में बड़े पैमाने पर औद्योगिक निवेश हुआ। इस वर्ष क्षेत्र में अशोक लेलेंड के साथ ही टाटा व बजाज का इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रीयल डवलपमेंट की पहल शुरु करना तराई के लिए बड़ी उपलब्धि रहा। जिसके चलते यह सारे उद्योग अब एक छत के नीचे ही अपने सारे उत्पादों का निर्माण कर रहे हैं। जिसमें अशोक लेलेंड जहां एक ही छत के नीचे यू ट्रकों का निर्माण कर रहा है, वहीं टाटा छोटे कामर्शियल वाहनों के साथ ही नैनो समेत तमाम लक्जरी वाहनों का निर्माण कर रहा है। इस वर्ष सिडकुल में टाटा मोटर्स का एशिया की सबसे बड़ी पेंट शॉप की स्थापना करना इसी पहल का हिस्सा रहा। बजाज आटो भी सारे कलपुर्जों व बाईकों का निर्माण सिडकुल क्षेत्र में ही कर रहा है। जिसमें बजाज के साथ दो दर्जन से भी अधिक उद्योग भागीदार बने हुए हैं।
बजाज ऑटो के प्लांट हैड पी दिंडोरकर कहते हैं कि तराई में अब इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रीयल डवलपमेंट की शुरुआत हो चुकी है। जहां बजाज क्षेत्र में अपनी उत्पादन क्षमता बढ़ा रहा है वहीं अन्य आटोमोबाइल उद्योग भी क्षेत्र में लगातार विकास कर रहे हैं। केजीसीसीआई के अध्यक्ष दरबारा सिंह बताते हैं कि तराई में अब सही मायनों मंे औद्योगिक विकास शुरु हुआ है। राज्य व केन्द्र सरकार इस और ध्यान दंे तो तराई देश ऽे सबसे बड़े इंडस्ट्रीयल इस्टेट के रुप में अपनी पहचान बना सकता है। 
इस प्रकार देखा जाए तो तराई में के लिए वर्ष 2010 इंटीग्रेटेड इंडस्ट्रीयल डवलपमेंट के क्षेत्र में नईं संभानाएं लेकर लाया। क्षेत्र में इसी तरह से यदि औद्योगिक विकास जारी रहा तो आने वाले वर्षों में तराई औद्योगिक विकास के क्षेत्र में नए कीर्तिमान स्थापित करेगा। 


तराई में औद्योगिक पूंजी निवेश 

उद्योग                                     पूंजी निवेेश
टाटा मोटर्स                            1850 करोड़
अशोका लेलेंड                        1500 करोड़
हिन्दुस्तान जिंक                     132 करोड़
नेस्ले इंडिया                            103 करोड़
रिद्धिसिद्धी                                97  करोड़
मंगला आटो                            89.31 करोड़
टैराकाम                                    76   करोड़
एक्मे                                        69    करोड़

दुर्लभ गिद्वों पर फिर मंडराया खतरा


रिंगौड़ा गांव में तीन दिन पूर्व मरे इंडियन व्हाइट बैक प्रजाति के गिद्व के शरीर में डाइक्लोफिनेक की ज्यादा मात्रा पाई गई

चंदन बंगारी

कार्बेट नेशनल पार्क व आसपास से सटे जंगलों में पाए जाने वाले दुर्लभ गिद्वों की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। अपने वजूद के लिए विश्व में संघर्ष कर रहे गिद्वों की कार्बेट पार्क के आसपास के जंगलों में मौजूदगी को आशा की किरण के रूप में देखा जा रहा था। मगर पार्क से सटे जंगल में पाए जाने वाले गिद्व अचानक संकट में आ गए है। पांच दिनों में ही दो गिद्व मौत की नींद सो चुके है। लगातार गिद्वों के ऐसे हालात में मिलने से बचेखुचे गिद्वों पर भी खतरा बना हुआ है। एक मृत गिद्व के शरीर में डाइक्लोफिनेक दवा की बहुत अधिक मात्रा पाए जाने से कुछ लोगों द्वारा प्रतिबंध के बावजूद इसके प्रयोग की बात सामने आ रही है। बतातें चले कि देश में मवेशियों के लिए प्रयोग होने वाली डाइक्लोफेनैेक दवा के चलते इंडियन व्हाइट बैक्ड, लौंग बिल्ड, सिलैन्डर बिल्ड प्रजाति के 99 फीसदी गिद्धों का खात्मा हो चुका है। मृत पशुओं के मांस से गिद्धों के शरीर के भीतर पहुंची दवाई के असर से उनके गुर्दे काम करना बंद कर देते है। जिसके चलते गिद्धों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हुआ है। गिद्धों की लगातार मौतों के बाद वर्ष 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने दवा की बाजार में बिक्री के लिए प्रतिबंधित कर दिया था। गिद्ध भारतीय वन्यजीव कानूनों के तहत पहली अनुसूची का संरक्षित प्राणी है।

अस्सी के दशक में भारत के आसमानों मंे आठ करोड़ गिद्ध थे, जो आज घटकर चार हजार रह गए हैं। गिद्ध वर्तमान में सबसे तेजी से विलुप्त होने वाली पक्षी प्रजाति है। भारत में गिद्धों की कुल 9 प्रजातियों में से उत्तराखण्ड में आठ प्रजातियां पाई जाती हैं। कार्बेट व आसपास के जंगलों में कुछ सालों से व्हाइट बैक्ड, हिमालयन ग्रिफन सहित अनेक प्रजाति के गिद्वों को देखा जा रहा था। लेकिन अब गिद्वों पर फिर खतरे के बादल मंडरा रहे है। बीते सोमवार को कार्बेट की सीमा से सटे ग्राम रिंगौड़ा में ग्रामीणों को अचेत अवस्था में इंडियन व्हाइट बैक नाम गिद्व पड़ा मिला। जिसकी दो घंटे बाद ही मौत हो गई थी। गिद्व की बीमारी का पता लगाने के लिए उसके शव को हरियाणा के पिंजौर में बांबे नेचुरल हिस्ट्री ऑफ सोसाइटी के गिद्व प्रजनन केंद्र भेजा गया था। इसके ठीक तीन दिन बाद बीते गुरूवार को भी ग्राम हाथीडगर में अचेतअवस्था में गिद्व मिला। जिसने उपचार के बाद शनिवार को दम तोड़ दिया। दोनों गिद्वों को जंगल से उपचार के लिए महाशीर कर्न्जवेशी के सुमंतो घोष पशु चिकित्सक के पास लेकर आए थे। सुमंतो घोष के अनुसार मृत इंडियन व्हाइट बैक गिद्व की उम्र तकरीबन 6 साल की थी। इस प्रजाति के गिद्व के रिंगौड़ा गांव में आठ घोंसले है।
वहीं दूसरा मरने वाला गिद्व हिमालयन ग्रिफन प्रजाति का है। जो ऊंचाई वाले क्षेत्रों में प्रजनन कर भोजन की तलाश में मैदानी क्षेत्रों की तरफ आता है। दोनों में बीमारी के कुछ लक्षण समान मिले है। उन्होंने संभावना जताई कि दूसरे गिद्व में भी इस दवा की मात्रा हो। उन्होंने बताया कि पहले मरे गिद्व में डाइक्लोफिनेक दवा होने की पुष्टि हरियाणा के पिंजोर में बांबे नेचुरल हिस्ट्री ऑफ सोसाइटी के गिद्व प्रजनन केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. विभुप्रकाश ने की है। डाइक्लोफिनेक प्रतिबंधित दवा होने के कारण अभी भी कुछ लोग इसका प्रयोग कर रहे है। जो गिद्वों की सेहत के लिए खतरनाक है।