Sunday, January 30, 2011

तो अब ग्रामीणों को मिल गई आदमखोर से मुक्ति


पार्क निदेशक का दावा- पांच लोगों को शिकार बनाने वाले आदमखोर बाघ को ही मारी गई गोली 

 पदचिन्ह पहचानने में हुई थी चूक

चंदन बंगारी रामनगर

सुंदरखाल गांव में रिश्तेदारी में आए युवक को दिनदहाड़े बाघ उठाकर ले गया। काफी खोजबीन करने के बाद युवक के शरीर का कुछ ही हिस्सा मिल सका है। ग्रामीणों ने युवक को मौत के घाट उतारने वाले को आमदखोर बाघिन बताते मारने की मांग को लेकर एनएच पर जाम लगा दिया। बाद में वन व पुलिस कर्मियों के संयुक्त दल ने शव के पास मौजूद बाघ को गोलियों से छलनी कर ढेर कर दिया। पार्क अधिकारी ग्रामीणों को आदमखोर बाघ से मुक्ति मिलने की बात कह रहे है। लेकिन बाघ के मरने की रात एक दूसरे बाघ ने सुंदरखाल वासियों का जीना हराम कर दिया। ग्र्रामीणों ने किसी तरह बाघ को जंगल भगाया।
 जिसके बाद ग्रामीण अब दहशत में आ गए है। वाक्या बुधवार का है। जब मालधनचौड़ नंबर 2 में रहने वाला पूरन उम्र 26 वर्ष पुत्र भूपाल राम सुंदरखाल में रहने वाली नानी शांति देवी के घर आया था। दोपहर करीब 1 बजे वह घर से 50 मीटर की दूरी पर गांव से होकर जाने वाले कोसी नदी को जाने वाले नाले पर शौच के लिए गया था। काफी देर तक जब वह नही लौटा तो परिजनों ने ग्रामीणों के साथ मिलकर खोजबीन करनी शुरू कर दी। गुरूवार की सुबह ग्रामीणों ने गांव में ही स्थित रामनगर वन प्रभाग के कोसी रेंज के जंगल से युवक के एक पैर का हिस्सा बरामद किया। इस दौरान बाघ भी काफी देर तक घटनास्थल के आसपास मंडराता रहा। 
जिसे भगाने के लिए वनकर्मियों ने हवाई फायरिंग कर दी। बाघिन को भगाने का आरोप लगाते हुए ग्रामीणों ने गश्त कर रहे वनकर्मियों पर पथराव कर उन्हंें भगाने के साथ ही काशीपुर-बुआखाल राष्ट्रीय राजमार्ग 121 पर जाम लगा दिया। ग्रामीणों के आक्रोश को देखते हुए वन व पुलिस कर्मियों के दल ने सात हाथियों की मदद से इलाके में गश्त की। बाद में जंगल में शव के बिखरे पड़े हिस्सों  से करीब 20 मीटर की दूरी पर मौजूद बाघ पर चार टीमों ने 32 राउंड फायर किए। गोली लगने से बाघ की घटनास्थल पर ही मौत हो गई। बाघ मारने के बाद करीब 2 बजे ग्रामीणों ने जाम खोला। बाद में युवक के सिर व सीने का हिस्सा भी ग्रामीणों को मिल गया था। 
          आदमखोर बाघ का पीएम करते डाक्टर 

लेकिन अब यह सवाल खड़ा हो गया है कि वन विभाग ने बाघिन को नरभक्षी घोषित किया था, मगर मरने वाला तो नर बाघ निकला है। मारे गए बाघ का तीन डाक्टरों के पैनल ने पोस्टमार्टम किया। बाघ के कंधे एक पखवाड़े पूर्व चलाई गई गोली के छर्रे बरामद हुए है। बाघ का विसरा जांच के लिए भेजा गया है। बाघिन की जगह बाघ की मौत पर उठी सारी शंकाओं पर विराम लगाते हुए पार्क निदेशक ने कहा कि पदचिन्ह एकत्र करने भी अक्सर गलती हो जाती है। मगर संतोष की बात है कि पांच लोगों की जान लेने वाले नरभक्षी बाघ का अब अंत हो गया है। ग्रामीणों की सुरक्षा में कोई ढिलाई नही बरती जाएगी।

वहीं शुक्रवार को तराई पश्चिमी वन प्रभाग की कार्यशाला में मारे गए बाघ का डा. राजीव सिंह, डा. वीपी सिंह व डा. एके रावत की पैनल टीम के अलावा पशु चिकित्सक डा. सत्यप्रियगौतम भल्ला की मौजूदगी में पोस्टमार्टम किया गया। बाघ को वनकर्मियों की चार गोलियां लगी थी। उसके पेट से युवक व एक जानवर के मांस के कुछ अवशेष निकले। जब बाघ का पिछले दोनों पंजों को नापा गया तो वह हूबहू मादा बाघिन की तरह निकले। चंूकि बाघिन के पंजे नुकिले व बाघ के पंजे गोल होते है। लेकिन मारे गए बाघ का पंजे भी नुकिले निकले। वहीं बाघ के दाहिने कंधे से 11 जनवरी को शिकारियों द्वारा मारी गई गोलियों के छर्रे निकले। जिसके बाद पार्क अधिकारियों ने राहत की सांस ली। पोस्टमार्टम की कार्यवाही पूरी होने के बाद बाघ के शव को कार्यशाला में ही जला दिया गया। पार्क निदेशक रंजन मिश्रा ने कहा कि दो माह से आतंक का पर्याय बने बाघ का अंत हो गया है। उन्होंने बताया कि बाघ का पिछला पंजा मादा जैसा है।
जिसे जांच के लिए डब्लूआईआई भेजा जाएगा। पदमार्क पहचानने में ऐसी गलतियां तो जिम कार्बेट तक से हुई है। नरभक्षी को किसी ने तो देखा नही था। उस समय शिकारियों द्वारा मारी गई गोली इसके शरीर से मिली है। उन्होंने कहा कि बाघ को ट्रेंकुलाइज करना खतरे से खाली नही था। आदमखोर को नष्ट करने के आदेश थे। बाघ काफी उम्रदराज हो चुका था। उन्होंने कहा कि जनता की सुरक्षा के लिए हूटर लगाकर गश्त की जाएगी। रामनगर व कार्बेट के वनकर्मी लगाकार तालमेल बनाकर गश्त करेंगे। अगर जरूरत पड़ी तो जिस जगह पर बाघ मारा गया है वहां टैंट लगाकर वनकर्मी बैठेंगे। उन्होंने कहा कि क्षेत्र में करीब 23 बाघ मौजूद है। इस मौके पर मुख्यवन्यजीव प्रतिपालक श्रीकांत चंदोला, मुख्य वन संरक्षक कुमाऊं एससी पंत, पार्क उपनिदेशक सीके कवदियाल, डीएफओ रविंद्र जुयाल, निशांत वर्मा, एसडीओ रमाशंकर तिवारी, पीसी आर्य सहित अनेक स्वयंसेवी संस्थाओं के सदस्य व वनकर्मी मौजूद रहे।


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