Saturday, January 1, 2011

दुर्लभ गिद्वों पर फिर मंडराया खतरा


रिंगौड़ा गांव में तीन दिन पूर्व मरे इंडियन व्हाइट बैक प्रजाति के गिद्व के शरीर में डाइक्लोफिनेक की ज्यादा मात्रा पाई गई

चंदन बंगारी

कार्बेट नेशनल पार्क व आसपास से सटे जंगलों में पाए जाने वाले दुर्लभ गिद्वों की मुश्किलें बढ़ती जा रही है। अपने वजूद के लिए विश्व में संघर्ष कर रहे गिद्वों की कार्बेट पार्क के आसपास के जंगलों में मौजूदगी को आशा की किरण के रूप में देखा जा रहा था। मगर पार्क से सटे जंगल में पाए जाने वाले गिद्व अचानक संकट में आ गए है। पांच दिनों में ही दो गिद्व मौत की नींद सो चुके है। लगातार गिद्वों के ऐसे हालात में मिलने से बचेखुचे गिद्वों पर भी खतरा बना हुआ है। एक मृत गिद्व के शरीर में डाइक्लोफिनेक दवा की बहुत अधिक मात्रा पाए जाने से कुछ लोगों द्वारा प्रतिबंध के बावजूद इसके प्रयोग की बात सामने आ रही है। बतातें चले कि देश में मवेशियों के लिए प्रयोग होने वाली डाइक्लोफेनैेक दवा के चलते इंडियन व्हाइट बैक्ड, लौंग बिल्ड, सिलैन्डर बिल्ड प्रजाति के 99 फीसदी गिद्धों का खात्मा हो चुका है। मृत पशुओं के मांस से गिद्धों के शरीर के भीतर पहुंची दवाई के असर से उनके गुर्दे काम करना बंद कर देते है। जिसके चलते गिद्धों के अस्तित्व पर संकट खड़ा हुआ है। गिद्धों की लगातार मौतों के बाद वर्ष 2006 में सर्वोच्च न्यायालय ने दवा की बाजार में बिक्री के लिए प्रतिबंधित कर दिया था। गिद्ध भारतीय वन्यजीव कानूनों के तहत पहली अनुसूची का संरक्षित प्राणी है।

अस्सी के दशक में भारत के आसमानों मंे आठ करोड़ गिद्ध थे, जो आज घटकर चार हजार रह गए हैं। गिद्ध वर्तमान में सबसे तेजी से विलुप्त होने वाली पक्षी प्रजाति है। भारत में गिद्धों की कुल 9 प्रजातियों में से उत्तराखण्ड में आठ प्रजातियां पाई जाती हैं। कार्बेट व आसपास के जंगलों में कुछ सालों से व्हाइट बैक्ड, हिमालयन ग्रिफन सहित अनेक प्रजाति के गिद्वों को देखा जा रहा था। लेकिन अब गिद्वों पर फिर खतरे के बादल मंडरा रहे है। बीते सोमवार को कार्बेट की सीमा से सटे ग्राम रिंगौड़ा में ग्रामीणों को अचेत अवस्था में इंडियन व्हाइट बैक नाम गिद्व पड़ा मिला। जिसकी दो घंटे बाद ही मौत हो गई थी। गिद्व की बीमारी का पता लगाने के लिए उसके शव को हरियाणा के पिंजौर में बांबे नेचुरल हिस्ट्री ऑफ सोसाइटी के गिद्व प्रजनन केंद्र भेजा गया था। इसके ठीक तीन दिन बाद बीते गुरूवार को भी ग्राम हाथीडगर में अचेतअवस्था में गिद्व मिला। जिसने उपचार के बाद शनिवार को दम तोड़ दिया। दोनों गिद्वों को जंगल से उपचार के लिए महाशीर कर्न्जवेशी के सुमंतो घोष पशु चिकित्सक के पास लेकर आए थे। सुमंतो घोष के अनुसार मृत इंडियन व्हाइट बैक गिद्व की उम्र तकरीबन 6 साल की थी। इस प्रजाति के गिद्व के रिंगौड़ा गांव में आठ घोंसले है।
वहीं दूसरा मरने वाला गिद्व हिमालयन ग्रिफन प्रजाति का है। जो ऊंचाई वाले क्षेत्रों में प्रजनन कर भोजन की तलाश में मैदानी क्षेत्रों की तरफ आता है। दोनों में बीमारी के कुछ लक्षण समान मिले है। उन्होंने संभावना जताई कि दूसरे गिद्व में भी इस दवा की मात्रा हो। उन्होंने बताया कि पहले मरे गिद्व में डाइक्लोफिनेक दवा होने की पुष्टि हरियाणा के पिंजोर में बांबे नेचुरल हिस्ट्री ऑफ सोसाइटी के गिद्व प्रजनन केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक डा. विभुप्रकाश ने की है। डाइक्लोफिनेक प्रतिबंधित दवा होने के कारण अभी भी कुछ लोग इसका प्रयोग कर रहे है। जो गिद्वों की सेहत के लिए खतरनाक है। 


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