Saturday, February 26, 2011

सम्मान और संरक्षण को तरसती यायावर प्रतिभाऐं

कालाढूंगी के जंगल में बौर नदी के किनारे डेरा जमाकर लकड़ी के बर्तन बना रहे हैं चुनेरे

चंदन बंगारी रामनगर
ठेकी, डोकला, माणा पहाड़ी जनजीवन के अभिन्न अंग हैं। लकड़ी से बने इन बर्तनों को पहाड़ के लोग गांवों में दूध, दही, घी रखने के लिए इस्तेमाल करते हैं। एक दशक से भी अधिक समय से पहाड़ों में इस्तेमाल होते आ रहे लकड़ी के बर्तनों को तैयार करने का तरीका भी बेहद अनूठा है। लकड़ी के बर्तन बनाने वाले हस्तशिल्पियों को चुनेर कहा जाता है। बदलती जीवनशैली और कुछ आधुनिकता की दौड़ में बढ़ते स्टील व अन्य धातुओं के बर्तनों के चलन ने चुनेरांे द्वारा लकड़ी के बनाये ठेकी, डोकड़ा, नैया, पाई को हाशिए पर ला दिया है। वहीं वन विभाग व सरकार की बेरूखी से परंपरागत हुनर अंतिम सांसे गिन रहा है।
कालाढूंगी के बौर नदी के किनारे इन दिनों चुनेरों का दल लकड़ी से तैयार बर्तनों को अंतिम रूप देने में जी-जान से जुटा हुआ है। हर साल नवंबर में बागेश्वर जिले के चचई गंाव से कई हुनरबंदों के दल क्षेत्र की नदियों के किनारे डेरे लगाते हैं। सर्दियों भर अपनी परंपरागत शैली में काष्ठ-कला को अंजाम देने के बाद यायावर दस्तकार मार्च में तैयार बर्तनों के साथ बाजार की तलाश में पहाड़ों की तरफ निकलना शुरू कर देते है। पहाड़ों में यह बर्तन सौ रूपये से लेकर एक हजार रूपए तक बिकते है। चुनेरों के बर्तन बनाने का ढंग आज के हुनरमंद कारीगरों को भी दंग कर सकता है। ना बिजली जाने का झंझट व ना मशीनी कल-पुर्जों की खट-पट, बस नदी की एक धारा से घूमते खराद पर लगे ‘साणे’ पर लोहे की ‘सांबी’ से ठोस लकड़ी को भीतर से कुरेदकर लोटा, गिलास, ठेकी, डोकला, माणा, हुड़का, बिंडा व दुमका आदि छोटे-बडे बर्तन तैयार होते हैं। सर्दियों के चार महीनें यह दस्तकार अपनी काष्ठ कला से ढेरों विविध प्रकार के बर्तन तैयार करते है।
पानी से चलने वाली खराद पर पुश्तैनी पेशे में लगे चुनरों को इसके लिए वन विभाग से बाकायदा सांदण की लकड़ी का परमिट मिलता है। दस्तकार तेजराम व पुष्करराम कहते हैं कि पुश्तैनी परंपरा से जुड़ा होने के कारण वह यह काम कर रहे है। लकड़ी के बढते दाम व लोगों का इन बर्तनों की जगह प्लास्टिक, चीनी मिटटी व स्टील के प्रति बढते रूझान ने ध्ंाधे को मंदा कर दिया है। उन्होंने कहा कि सरकार की तरफ से सम्मान तो दूर कोई सहयोग तक नही मिलता है।



Friday, February 18, 2011

भारतीय वायुसेना का मिग21 शेरवुड स्कूल में देगा दर्शन

नैनीताल से कमल जगाती.
वायुसेना के प्रति युवाओं को आकर्षित करने का प्रयास
भारतीय वायुसेना का एक महत्वपूर्ण लड़ाकू विमान MIG21 शेरवुड स्कूल में प्रदर्शित होने वाला है !  विमान की सेवाएँ समाप्त करते हुए वायुसेना ने इसे छात्रों को वायुसेना के प्रति आकर्षित करने के लिए स्कूल को उपहार में दिया है, इस लड़ाकू विमान को जोड़ने की तैयारी चल रही है! सैन्य सेवाओं के प्रति युवाओं में रुझान पैदा करने के उद्देश्य से स्थापित किया जा रहा यह विमान वायुसेना की सेवा की अपनी अवधि पूरी कर चुका है.  
 MIG21 को लाने की उपलब्धि से खुश स्कूल के प्रधानाध्यापक अमनदीप संधू ने बताया की 4 मई 2009 को स्कूल के वार्षिकोत्सव में बतौर मुख्य अतिथि आए दक्षिण कमांड के एयर मार्शल सुमित मुख़र्जी ने उन्हें इसकी खबर दी व मुख़र्जी ने बताया की वे स्कूल में एक MIG21 जहाज लगाना चाहते हैं ! शेरवुड स्कूल के 1966 बच के छात्र रहे मुख़र्जी ने NDA की परीक्षा उत्तीर्ण की उनके साथ कई अन्य छात्रों ने परीक्षा उत्तीर्ण की व तीन भारतीय सेना में  वर्त्तमान में  जर्नल के पदों पर आसीन हैं!
MIG21 देश के लिए चार युद्धों में अपना पराक्रम दिखाने के बाद अब वायुसेना के आधुनिकीकरण के चलते MIG27, Mirage , Jaguar , Antonov , Mi -26 इत्यादि आधुनिक जहाजों द्वारा रिप्लेस कर दिया गया है! पुरानी तकनीक के कारण पिछले कुछ सालों में कई मिग21 विमान हादसे का शिकार हो चुके हैं जिनमें 100 से अधिक पायलटों को जान से हाथ धोना पड़ा है.
लगभग 35 - 40 टन के इस 49 फीट लम्बे और 35 फीट चौड़े विमान को लगाने का कार्य जोरों पर है, इसका पिछला व अगला हिस्सा पहुँचने से छात्र व कर्मचारी बहुत उत्साहित हैं व  एयर फोर्स के  अधिकारी मध्य भाग को लेकर जल्द पहुँचने की उम्मीद है! इसे लगाने के लिए वायुसेना की एक टीम यहाँ आ चुकी है व सेना ने इसे लगाने का जिम्मा भी लिया है !
संधू ने बताया की जहाज को लाने व स्टैंड बनाने की जिम्मेदारी स्कूल की है और हवा में टेड़े खड़ा   करना सेना का काम है ! उन्होंने ये भी बताया की ये देश में चलते MIG21 को निजी  स्कूल में  खड़े करने की यह पहली कवायद  है,इस जहाज की अधिकतम रफ़्तार 2230 किलोमीटर प्रति घंटा है!
अफगानिस्तान, बंगलादेश जर्मनी, इराक , उत्तर कोरिया व हिंदुस्तान के अलावा कई देशों के पास है ! यह सोवियत रूस द्वारा बनाए गए 19601970 दसक   के हीरो जहाजों में से एक हैं !सुखोई जहाज भी इस समय का एक फिघ्टर जहाज है !  MIG21की तैनाती भारतीय वायुसेना में 1965 में हुआ था व देश के विरूद्ध युद्धों में इस जहाज ने दुश्मनों के चक्के छुडा दिए थे!

Monday, February 14, 2011

अटल खाद्यान्न योजना से नहीं भरेगा गरीबों का पेट

एपीएल को मिलेगा मात्र 5.५0 किलो राशन

घट गया एपीएल को मिलने वाले राशन का कोटा

अटल खाद्यान्न योजना गरीबों के लिए धोखा
        

 (जहांगीर राजू रूद्रपुर से)

प्रदेश सरकार ने अटल खाद्यान्न योजना को शुक्रवार से पूरे प्रदेश में लागू कर दिया है। इस योजना के लागू होने के बाद से सरकार प्रदेशभर में वाहवाही लूटने में लग गयी है। पार्टी का हर नेता एपीएल को सस्ते दरों में राशन देने का दावा कर रहा है, लेकिन योजना की हकीकत यह है कि इस योजना के लागू होने से एपीएल को मिलने वाले राशन का कोटा 8 किलो से घटकर 5 किलो 500 ग्राम हो जाएगा। जिसे देखकर लगता है कि योजना के लागू होने से भी एपीएल कार्डधारकों का पेट भरने वाला नहीं है।
लाइन-रुद्रपुर में अटल खाद्यान्न योजना के लागू होने के बाद कोटा कम
होने का विरोध करती महिलाएं।
उल्लेखनीय है कि अटल खाद्यान्न योजना लागू होने के बाद गरीब लोगों को मिलने वाला राशन का कोटा अपने आप ही कम हो जाएगा। जिला पूर्ति दतर के मिले आंकड़ों के मुताबिक एपीएल उभोक्ताओं को पहले प्रति कार्ड पर हर माह 5 किलो गेहूं व 3 किलो चावल मिलता था। जिसके लिए उनको 6.60 रुपये किलो गेहूं व 8.४५ रुपये किलो चावल खरीदना पड़ता था। अटल खाद्यान्न योजना लागू होने के बाद एपीएल कार्डधारकों को प्रतिमाह हर कार्ड पर मात्र 4 किलो गेहूं व 1 किलो 500 ग्राम चावल मिलेगा। यह राशन उन्हें चार रुपये किलो गेहूं व 6 रुपये किलो के हिसाब से चावल मिलेगा। इस प्रकार देखा जाए तो एपीएल को मिलने वाले 8 किलो के घटकर अब 5 किलो 500 ग्राम हो जाएगा। योजना में बीपीएल कार्डधारकों को जरुर फायदा मिलने जा रहा है। योजना के तहत बीपीएल कार्डधारकों को प्रतिकार्ड 35 किलो राशन मिलेगा। जिसमें उन्हें 2 रुपये किलो गेहूं व 3 रुपये किलो चावल मिलेगा। योजना में बीपीएल परिवार को 10 किलो 250 ग्राम गेहूं व 24 किलो 7५0 ग्राम चावल मिलेगा। योजना के लागू होने के बाद बीपीएल को मिलने वाले राशन का कोटा 10 किलो 800 ग्राम से बढक़र 35 किलो हो जाएगा। ऊधमसिंह नगर जिले की अगर बात की जाए तो योजना के तहत जिले में 39१४1 गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों तथा 3३07२६ गरीबी रेखा से उपर जीवन यापन करने वाले कार्ड धारकों को योजना का लाभ मिलेगा।
 जिले में शहरी क्षेत्र की 201 व ग्रामीण क्षेत्रों की 4१1 सस्ते गल्ले की दुकानों में लोगों को यह सुविधा उपलब्ध होगी। इस प्रकार देखा जाए तो योजना के तहत बीपीएल परिवारों को फायदा मिल रहा है, लेकिन एपीएल कार्ड धारक योजना के लागू होने के बाद अपने को ठगा सा महसूस कर रहे हैं। एपीएल कार्डधारक जसवन्त सिंह ने बताया कि क्या 5 किलो सस्ता राशन मिलने से उनके परिवार का गुजारा हो पाएगा। सरस्वती देवी ने बताया कि बड़ी आस लेकर योजना के शुभारंभ के लिए वह गदरपुर से रुद्रपुर आई हैं, लेकिन अब उन्हें जाकर पता चला कि 5 किलो 500 ग्राम राशन मिलेगा। इस योजना के लागू होने से उन्हें कोई फायदा नहीं होने जा रहा है। शकुंतला नारंग व रामायणी देवी ने बताया कि साढ़े पांच किलो राशन से वह अपने परिवार के पेट कैसे भर पाएंगे, इसका जवाब पूर्ति विभाग के अधिकारियों व सरकार को देना चाहिए। ऐसे ही योजना के लागू होने से तमाम एपीएल कार्डधारकों में काफी निराशा है।पूर्ति विभाग के अधिकारियों का दावा है कि इस योजना में यदि उन्हें राशन उपलब्ध हुआ तो एपीएल के कार्डधारकों को 15 किलो तक राशन दिया जा सकता है, लेकिन यह पूरी तरह से प्रदेश को मिलने वाले राशन के कोटे पर निर्भर रहेगा। ऐसे में नहीं लगता की महिने में 5 किलो 500 ग्राम राशन से एपीएल कार्डधाकारकों का पेट भरने जा रहा है।


Thursday, February 10, 2011

रामनगर में जीवंत हुई पहाड़ की लोकसंस्कृति


 लोक कलाकारों ने किया पौराणिक गाथाओं का मंचन

चंदन बंगारी
रामनगर

प्रगतिशील सांस्कृतिक पर्वतीय समिति में आयोजित हुए 19वें बसंतोत्सव में पहाड़ की लोकसंस्कृति के अनेक रंग देखने को मिले। प्रदेश के कोने-कोने से आए लोक कलाकारों ने ऐतिहासिक संस्कृति व पौराणिक लोकगाथाओं पर आधारित नृत्य नाटिकाओं का शानदार मंचन कर सांस्कृतिक छटा का जादू बिखेरा। बीते 19 सालों से समिति बगैर सरकारी मदद के चलते लोक संस्कृति को बचाने की जददोजहद कर रही है। जनता से जुटाए रूपये से होने वाले महोत्सव में प्रदेश से हर हिस्से से आई टीमें हुनर का प्रदर्शन करती है। इस बार 6 जनवरी को बसंतोत्सव का पहला दिन ऐंपण, मेंहदी व चित्रकला प्रतियोगिता के नाम रहा। चित्रकला प्रतियोगिता में 300 स्कूली बच्चों ने कागज पर अनेक भावों को दर्शाते चित्र उकेरे तो महिलाओं ने ऐंपण के जरिए कुमाऊंनी संस्कृति को प्रदर्शित किया। महोत्सव के दूसरे दिन प्रदेशभर से आए लोक कलाकारों ने नगर में सांस्कृतिक झांकियों का जूलूस निकाला।
झांकियों के जरिए पहाड़ की लोकसंस्कृति की झलक बिखेरते हुए दल के रंगकर्मियों ने लोगों से गुम होती संस्कृति व सभ्यता के संरक्षण में आगे आने की अपील की। समिति परिसर पैंठपड़ाव में रिमझिम कला केंद्र भीमताल के कलाकारों के प्रसिद्ध छोलिया नृत्य की प्रस्तुती के बाद सांस्कृतिक झांकियों का जूलूस नगर के लिए रवाना हुआ। जूलूस में शामिल विभिन्न दलों के कलाकारों ने पारंपरिक वेशभूषा धारण कर वाद्ययंत्रों की धुनों से पहाड़ों की मान्यताओं व रीति-रिवाजों को आकर्षक ढंग से पेश किया। नगर की सड़कों पर आकर्षक झांकियों ने फिजां में बसंत ऋतु की मस्ती व उल्लास का रंग घोल दिया।  जुलूस के आगे बसंत ऋतु प्रतीक पीली पताकाओं व पीली टोपी पहने समिति के पदाधिकारी हाथी व घोड़े पर सवार कलाकार चल रहे थे।
जूलूस में मेहता फिल्म प्रोडक्शन खटीमा ने मां नंदा-सुनंदा की डोली, जन आस्था मंच उत्तरकाशी ने डांडा की जात्रा, सर्वोदय प्रेरणा ग्रामीण समिति अल्मोड़ा ने कुमाऊँनी जागर को शानदार ढंग से प्रस्तुत किया। हमारा आर्ट ग्रुप देहरादून ने प्रसिद्व मुखौटा नृत्य, जय गोलू भनारी एवं दिशा बालरंग शाला अल्मोड़ा ने मां नंदा-सुनंदा का डोला, सोमेश्वर कला संगम भटवाड़ी रैथल उत्तरकाशी ने ऋतुराज बसंत स्वागत व रामनगर सांस्कृतिक कला समिति की टीम ने संजैती जागर की प्रस्तुति दी। वहीं आस गु्रप भवाली के रंगकर्मियों ने नरसिंह अवतार को प्रस्तुत किया। जूलूस में सोसायटी फार महावीर कन्जर्वेंसी की दुर्लभ महाशीर व गिद्ध बचाने की झांकी आकर्षण का केंद्र रही। संस्था के सुमांतो घोष, यूके से आई लुईस, कलकत्ता की हीतल, केडी करगेती व हेम बहुगुणा ने गिद्वों व महाशीर को बचाने की अपील करते हुए जनता के बीच प्रचार सामग्री वितरित की। पतंजलि योग समिति रामनगर द्वारा स्वदेशी आंदोलन को दर्शाती झांकी ने लोगों ने काफी सराहा।
सांस्कृतिक जुलूस रानीखेत रोड, लखनपुर, दुर्गापुरी, मुख्य बाजार, भवानीगंज, नन्दा लाईन, कोसी रोड सहित अनेक स्थानों से होता हुआ समिति परिसर में जाकर समाप्त हुआ। तीसरे दिन लोकनाटक प्रतियोगिता में पहली प्रस्तुति रामनगर सांस्कृतिक कला समिति द्वारा प्रस्तुत किए गई देवी देवता वंदना से हुई। समेश्वर कला संगम रैथल उत्तरकाशी के कलाकारों द्वारा दिखाए गए जीतू बगडवाल नाटक व सर्वोदय प्रेरणा ग्रामीण समिति अल्मोड़ा ने पांडव नृत्य का दृश्य प्रस्तुत कर दर्शकों की तालियां बटोरी। जन आस्था मंच उत्तरकाशी के कलाकारों ने यमुना घाटी की प्रचलित लोकगाथा सिदवा रमोला का मार्मिक मंचन किया। यह कथा आज भी टिहरी व उत्तराकाशी में प्रचलित है। मेहता फिल्म प्रोडेक्शन खटीमा ने अपनी प्रस्तुति वीर कल्याण के माध्यम से स्वाभिमान की असत्य पर सत्य की जीत का मंचन किया। हमारा आर्ट गु्रप देहरादून ने महाभारत चक्रव्यूह पर आधारित नृत्य प्रस्तुत कर खूब वाहावाही लूटी। वहीं जय गोलू भनारी अल्मोड़ा ने लोकगाथाओं पर आधारित तीन कथ नाटक का शानदार मंचन किया।चौथे दिन कार्यक्रम की पहली प्रस्तुति मेहता प्रोडक्शन खटीमा की टीम की धार्मिक मान्यता पर आधारित लोकगाथा वीर कल्याण से हुई। नाटक के जरिए कलाकारों ने असत्य पर सत्य की जीत, पीड़ितों को न्याय दिलाने के हौंसले का मंचन किया।
 रामनगर सांस्कृतिक कला समिति ने ऐतिहासिक लोकगाथा पर आधारित बलिवेदना बग्वाल खूबसूरत ढंग से मंचन किया। नाटिका में देवी बाराही मेरी सेवा लिया सहित अनेक धार्मिक गीतों का समावेश कर पहाड़ की मान्यताओं, संस्कारों व रीति-रिवाजों का जीवंत चित्रण किया गया। टीम ने रक्षाबंधन के पर्व पर चंपावत के देवीधुरा में होने वाले पाषाण यु़द्व को भी दर्शकों के सामने पेश किया। हमारा आर्ट ग्रुप अंग्वाल देहरादून ने लोकनाटिका रणू झाकरू द्वि भै, सर्वोदय प्रेरणा ग्रामीण सेवा समिति अल्मोड़ा ने गढ़वाल की वीरगाथा पर आधारित नाटिका भानू भौपेला का शानदार मंचन कर खूब तालियां बटोरी। 
जन आस्था मंच मोरी उत्तरकाशी की टीम ने यमुना व टौंस घाटी की संस्कृति पर आधारित तांदी नृत्य व समेश्वर कला संगम रैंथल उत्तरकाशी ने गढ़वाल में मेले के दौरान गए जाने वाले पोसतुक छुम मेरी भग्यानी बौ गीत पर शानदार नृत्य प्रस्तुत कर वाहवाही लूटी। कुमाऊंनी व गढ़वाली शैली पर आधारित लोक नृत्यों पर दर्शक जमकर झूमे। लोक कलाकार प्रेम पंचोली का कहना है कि सरकार को इस तरह के महोत्सवों को प्रोत्साहित करने की जरूरत है। जिससे गुम हो रही  पहाड़ की संस्कृति व सभ्यता को बचाया जा सकेगा। 

Tuesday, February 8, 2011

संकट में है कार्बेट के गजराज


कार्बेट टाइगर रिजर्व में बीते 5 सालों में 41 एशियाई हाथी मौत के मुंह में जा चुके है  

चंदन बंगारी
रामनगर

विश्वविख्यात कार्बेट टाइगर रिजर्व में गजराज की मौतों का सिलसिला थमने का नाम नही ले रहा है। ताजा मामलों में गजराज पर वनराज भारी पड़ते नजर आ रहे है। पांच दिनों के भीतर बाघ के हमले में दो हाथियों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा है। 
कभी अवैध शिकार तो कभी बीमारी व आपसी संघर्ष के कारण बीते 5 सालों में कार्बेट की सीमाआंे के भीतर 40 से ज्यादा हाथी मारे जा चुके है। बता दें कि 1288 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले कार्बेट टाइगर रिजर्व में छह सौ से ज्यादा एशियाई हाथी निवास करते है। मगर इनकी लगातार मौतों ने वन्यजीव प्रेमियोें को सकते में ला दिया है। सूकून की बात यह है कि इन सालों में रिजर्व में एक भी हाथी तस्करों ने नही मारा है। आंकड़ों को देंखे तो वर्ष 2005 में 5 हाथी प्राकृतिक व बीमारी के कारण मारे गए।
वर्ष 2006 में भी मरे 5 हाथियों में से 3 आपसी संघर्ष व 2 बाघ के हमले में मारे गए। वर्ष 2007 में मरे 6 हाथियों में 1 आपसी संघर्ष व बाकी बीमारी व प्राकृतिक कारणों से मरे। जबकि 2008 में यह संख्या बढ़कर 10 पहुंच गई, जिनमें आपसी संघर्ष से मरने वालों की संख्या थी। बाकी मौतें बीमारी व अन्य कारणों से हुई। 2009 में रिजर्व में मरे 7 हाथियों मेें 2 की मौत बाघ के हमले व 5 की मौतें आपसी संघर्ष के कारण हुई। वर्ष 2010 में मरे 6 हाथियों में से दो की मौत बाघ के हमले व बाकी बाढ़ में बहने व बीमारी के कारण हुई। वर्ष 2011 का पहला महीना हाथियों की सेहत के लिए ठीक नही रहा। 28 जनवरी को ढेला रेंज में बाघ ने हथिनी व बीते रविवार को 7 वर्षीय हाथी को मार डाला। दोनों जगहों पर बाघ ने हाथी को आधा खा लिया था। गौर करने वाली बात है कि तीन सालों में हर साल दो हाथी बाघ के हमले में मर रहे है। जिनमें अधिकांश 10 साल से कम उम्र के ही है। ऐसे में इन हाथियों के संरक्षण के लिए कड़े उपाय करने की जरूरत है।  

हाथी के मांस को पंसद करता है बाघ 

रामनगर। कार्बेट टाइगर रिजर्व के उपनिदेशक सीके कवदियाल का कहना है कि बाघ को हाथी का मांस बेहद प्रिय होता है। अपने को बचाते हुए बाघ हमेशा ही हाथी के छोटे बच्चों पर हमला करता है। उन्होंने कहा कि बाघ के हाथी पर हमले होना कतई चिंता की बात नही है। यह तो फूड चेन का एक हिस्सा है। उन्होंने कहा कि जंगल के भीतर जो सर्वाधिक शक्तिशाली होता है, वह राजा होता है। उन्होंने कहा कि प्राकृतिक मौतों को रोकना किसी के बस की बात नही है।  


कार्बेट में है 622 गजराज

रामनगर। तीन साल पूर्व कार्बेट टाइगर रिजर्व में हुई गणना में 622 हाथी गिने गए थे। जिनमें 515 कार्बेट पार्क, 80 बफर व 27 सोनानदी क्षेत्र में शामिल थे। उससे पूर्व 2005 में हुई गणना में रिजर्व में कुल 638 हाथी गिने गए थे। वर्ष 2010 में भी रिजर्व में हाथियों की गणना की गई थी, मगर उसके परिणाम अभी तक घोषित नही हो सके है। 


तस्कर भी लगा चुके है सुरक्षा में सेंध

रामनगर। कार्बेट टाइगर रिजर्व में तस्कर भी समय-समय पर सेंध लगाते रहे है। लेकिन गजराजों पर वर्ष 2000 व 2001 में तस्कर भारी पड़े थे। जब रिजर्व की सुरक्षा में सेंध लगाते हुए तस्कर चार हाथियों का शिकार कर दांत व सूंड तक काटकर ले गए थे। इसके बाद हाथियों की सुरक्षा के लिए रिजर्व में आपरेशन लार्ड चलाया गया। इस घटना के बाद अब तक को कोई भी हाथी तस्करों का शिकार नही हुआ है।