Sunday, November 14, 2010

समुदाय पर्यटन की मिसाल बना कार्बेट का गांव

कालाढूंगी स्थित छोटी हल्द्वानी में घूमने आने वाले सैलानियों को कुमाऊंनी व्यंजन परोसे जा रहे है 

चंदन बंगारी रामनगर

कालाढूंगी स्थित कार्बेट के गांव छोटी हल्द्वानी के ग्रामीण समुदाय पर्यटन की नई मिसाल पेश कर रहे है। गांव घूमने आने वाले देशी-विदेशी सैलानियों को ग्रामीण कार्बेट से जुड़ी धरोहरों के साथ ही कुमाऊंनी संस्कृति व खानपान से भी रूबरू करा रहे है। सैलानियों की बढ़ती आवाजाही से ग्रामीणों को भी अच्छा मुनाफा मिल रहा है। 
नैनीताल जिले के कालाढंूगी में बसे छोटी हल्द्वानी को 1915 में शिकारी से संरक्षणवादी जिम कॉर्बेट ने बसाया था। जिम कॉर्बेट एक महान षिकारी एवं संरक्षणवादी होने के साथ-साथ सामाजिक कार्यकर्ता भी थे। उनका सामाजिक कार्याें के प्रति रूझान उनके द्वारा छोटी हल्द्वानी को विकसित करने के लिए किये गये कार्यों से लगाया जा सकता है। कृषि कार्य को बढ़ावा देने के लिए जिम कॉर्बेट द्वारा विदेषों से इस गाँव में विभिन्न फसलों की प्रजातियां लाई गयी, इनमें प्रमुख रूप से केले एवं मक्का की प्रजातियांे के अलावा कॉफी की फसलें प्रमुख थी। उन्होने अपने सहयोगी मोती सिंह के लिए घर का निर्माण किया, गा्रमवासियों की फसल की सुरक्षा हेतु गाँव के चारो ओर दीवार बनवाई तथा जंगली जानवारों से सुरक्षा हेतु एक भरूवा बन्दूक गाँव वालों को दी। इसके अलावा गाँव का राजस्व भी जिम कॉर्बेट स्वयं ही भरते थे।
सन् 1947 में आजादी के बाद जिम कॉर्बेट व उनकी बहन मैगी भारत छोड़कर केन्या में बस गये। भारत छोड़ने के बाद भी उनका मन छोटी हल्द्वानी और भारत के लोगों के साथ ही रहा और ग्राम छोटी हल्द्वानी का राजस्व रू 910 प्रति वर्ष उन्होने वहीं से भेजना जारी रखा। आजादी के बाद कार्बेट के बंगले व धरोहरों को म्यूजियम का रूप देकर सैलानियों के देखने के लिए खोला गया। गांव में ठहरने की व्यवस्था न होने से कई सैलानी ऐतिहासिक गाँव में रहने की तमन्ना रखने के बावजूद मायूस होकर वापस लौट जाते थे। जिसके बाद कार्बेट ग्राम विकास समिति ने ग्रामीणों के साथ तालमेल कर एक साल पहले होम स्टे का कार्यक्रम गांव में ही शुरू किया। होम स्टे कार्यक्रम के तहत देश-विदेश से आने वाले सैलानियों को स्थानीय परिवारों के घरों में ही रात्रि विश्राम की सुविधा कराई जाती है। पर्यटकों की बढ़ती आमद को देखते हुए ग्रामीणों ने इलाके में मौजूद घास व बांस के प्रयोग से चार कॉटेज भी बनवाए है। गाँव में ठहरने वाले सैलानियों को रात में मनोरंजन के लिए कुमाऊंनी संध्या में लोकगीतों, झोड़ा, चांचरी आदि का आयोजन होता है।
वहीं उन्हें कार्बेट संग्रहालय सहित ग्रामीण परिवेश से भी रूबरू कराया जाता है। गांव के बीच बने अरण्य नामक सामुदायिक भोजनालय में होम स्टे के तहत सैलानियों को कुमाऊंनी व्यंजन भटट की चुड़कानी, डूबके, मडुवे की रोटी, बड़ी की सब्जी, गहत, मास की दाल, मक्के व बेडुवे की रोटी, चावल, पुआ परोसा जाता है। सैलानियों से प्राप्त होने वाले शुल्क का 15 प्रतिशत संस्था व बाकी धनराशि ग्रामीणों को दी जाती है। सैलानियों की बढ़ती आवाजाही ग्रामीणों के लिए आमदनी का जरिया भी बन रही है। होम स्टे से जुड़े ग्रामीण भुवन ढौंढियाल का कहना है कि गांव में कार्यक्रम शुरू होने से ग्रामीणों के आजीविका के साधनों में वृद्धि हो रही है। गाँव के पढे़-लिखे बेराजगार युवाओं के पलायन में कमी आई है। सैलानी पर्वतीय भोजन को बहुत चाव से खाते है।

एक साल में 2 लाख रूपये की आमदनी

रामनगर। कार्बेट ग्राम विकास समिति के कार्यकारी निदेशक राजेश पंवार ने बताया कि वर्तमान में समुदाय आधारित पर्यटन कार्यक्रम से गाँव के करीब  25 लोग परिवार लाभान्वित हो रहे हैं। 1 अक्टूबर 2009 से 1 सितंबर 2010 तक कुल 530 सैलानी होम स्टे कर चुके है। जिनमें से 52 विदेशी शामिल है। इन सैलानियों से 2 लाख रूपये की आमदनी हुई है। कार्यक्रम में अन्य ग्रामीणों को भी शामिल करने का प्रयास किया जा रहा है। वर्तमान पर्यटक सीजन के लिए होम स्टे में रूकने के लिए उनके पास लगातार देश-विदेश के विभिन्न शहरों से पर्यटकों के ई-मेल व फोन आ रहे हैं। 

क्या खास है होम स्टे में

- सैलानियों को कुमाऊंनी व्यंजन परोसना
- सांस्कृतिक संध्या के तहत झोड़ा, चांचरी होते हैं प्रस्तुत 
- दो सैनानियों की एक रात की फीस 1500 रूपये
- कार्बेट संग्रहालय, गांव भ्रमण, रात में रहने व भोजन की सुविधा
ग्रामीणों को लाभ
- 25 ग्रामीण सीधे जुड़े हैं समुदाय पर्यटन से
- ग्रामीणों को मिलता है फीस का 15 प्रतिशत 

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