Tuesday, November 16, 2010

दस बरस बाद भी दराजों में बंद शहीदों के सपने

अंतिम गांव तक नहीं पहुंची विकास की किरणें

एक लाख जनसंख्या पर मात्र 4.46 अस्पताल

163082 जनसंख्या पर मात्र एक डिग्री कालेज
          (जहांगीर राजू रुद्रपुर से)

उत्तराखंड राज्य की स्थापना के दस साल बाद भी राज्य निर्माण को लेकर संघर्ष करने वाले लोगों व शहीदों के सपने आज भी दराजों में बंद पड़े हुए हैं। स्थिति यह है कि हर साल करोड़ों का बजट खर्च होने के बाद भी राज्य के अंतिम गांव में रहने वाले लोगों तक विकास नहीं पहुंच पाया है। शिक्षा व स्वास्थ्य जैसी चीजों के लिए भी लोगों के लिए मुलभूत संसाधन विकसित नहीं हो सके हैं। स्थिति यह है कि आज राज्य की एक लाख जनसंख्या में मात्र 0.94 फीसदी डिग्री व प्रोफेशनल कालेज हैं। राज्य की चिकित्सा व्यवस्था भी दयनीय है, यहां एक लाख जनसंख्या में मात्र 4.6 फीसदी ही चिकित्सालय मौजूद हैं।
राज्य गठन के बाद के आंकडो़ं पर अगर नजर डाले तो नए राज्य में विकास प्रमुख नगरों व महानगरों तक ही सिमटकर रह गया है। जिसे देखकर लगता है कि नए राज्य के लिए शहादत देने वाले लोगों के सपने अब भी दराजों में ही बंद पड़े हुए हैं।
सांख्यकी सर्वे के मुताबिक राज्य में यदि संचार सुविधाओं को अगर देखा जाए तो यहां मात्र 4.३६ फीसदी लोगों तक ही टेलीफोन पहुंच पाए हैं। राज्य के बागेश्वर व रूद्रप्रयाग जिले में तो मात्र 0.9 व 1.9 फीसदी लोगों तक की संचार सेवा पहुंच पायी है। राज्य में पोस्टआफिस की स्थिति को अगर देखा जाए तो यहां 3१२0 जनसंख्या में मात्र एक पोस्ट आफिस मौजूद है। इस प्रकार अगर देखा जाए को एक पोस्ट आफिस क्षेत्रफल के हिसाब से 19 किलोमीटर के क्षेत्र को वर कर रहा है। राज्य की प्राथमिक शिक्षा को अगर देखा जाए तो यहां एक लाख की जनसंख्या में मात्र 168 स्कूल हैं। जबकि प्रति लाख जनसंख्या में पिथौरागढ़ में 3३५, पौडी में 3२५, टिहरी में 27६ व उत्तरकाशी में 260 विद्यालय हैं। माध्यमिक व उच्च माध्यमिक विलद्यालयों के आंकडों के मुताबिक यहां एक लाख जनसंख्या में मात्र 6२ विद्यालय हैं। राज्य में डिग्री व प्रोफेशन विद्यालयों की स्थिति बहुत नगण्य है। यहां एक लाख लोगों पर मात्र 0.9४ फीसदी विद्यालय हैं। इस प्रकार अगर देखा जाए तो 16३08२ जनसंख्या को एक महाविद्यालय केवल कर रहा है। राज्य में सडक़ों की स्थिति को अगर देखा जाए तो 6४ फीसदी गांव सडक़ों से जुड़ चुके हैं, लेकिन चंपावत जिले में यह अनुपात 38 व टिहरी जिले में 7६ प्रतिशत हैं। 
राज्य में चिकित्सा सेवा की स्थिति भी काफी दयनीय है। दुर्गम क्षेत्रों में यह लगातार बिगड़ती जा रही है। राज्य में एक लाख जनसंख्या पर मात्र 4.6 फीसदी प्राथमिक विद्यालय हैं। इस प्रकार देखा जाए तो पौड़ी में 0.13, चंपावत में 0.9, पिथौरागढ़ में 2.4 व उत्तरकाशी में प्रति एक लाख लोगों पर 2.6 फीसदी चिकित्सालय हैं। एक लाख जनसंख्या पर अस्पतालों में मात्र 8४ शय्याएं ही मौजूद हैं। चमोली, टिहरी यह आंकड़ा 5३ व 58 तक पहुंच जाता है। राज्य में चिकित्सकों की संख्या को अगर देखा जाए तो यह आंकड़ा बहुत की चौकाने वाला है। यहां एक लाख लोगों में मात्र 9.५ फीसदी चिकित्सक मौजूद हैं। प्रो. पांडे बताते हैं कि राज्य के सुदूवर्ती क्षेत्रों में रह रहे लोगों के लिए अबतक मुलभूत सुविधाएं मुहैया कराने का कार्य शुरू नहीं हो पाया है। जिन क्षेत्रों में विकास कार्य हो रहे हैं वह गुणवत्ता नहीं होने के कारण एक साल में भी व्यस्त हो जाते हैं। चंपावत पिथौरागढ़ मोटर मार्ग में हुए कार्य इसका उदाहरण हैं। 
उत्तराखंड राज्य के गठन के लिए शहादत देने वाले व संघर्ष करने वाले लोगों का सपना था कि राज्य बनने के बाद अंतिम गांव तक विकास पहुंचेगा। अपने राज्य में आम आदमी की मुश्किलेें कम होंगी। लेकिन राज्य गठन के दस साल बाद के आंकड़े बताते हैं कि यहां अबतक सुदूरवर्ती क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के लिए मुलभूत संसाधन विकसित नहीं हो पाए हैं

3 comments:

  1. sir mughe lagta hai ye up ke sasankal main pahari xetro ki undekhi ka karan hai lekin ub sthit kuchh sudhar rahi hai or uk vikas ki or agrasar hai

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  2. सटीक आंकड़ों के साथ आपका लेख उत्तराखण्ड के विकास की पोल खोल रहा है.
    उत्तराखण्ड के विकास में सबसे बड़ी बाधा राजनेताओं और नौकरशाहों की यह सोच है कि पहाड़ में उद्योग और रोजगार का विकास नहीं हो सकता.
    राज्य निर्माण की सोच के पीछे सबसे बड़ा उद्देश्य था - पहाड़ का सुनियोजित विकास. लेकिन इन दस सालों में इस महत्वपूर्ण लक्ष्य से हम शायद भटक गये हैं.

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  3. यदि राजनितिक इच्छा शक्ति काम करे , तथा भ्रष्टाचार रुके तो , थोडा धैर्य रखे , क्योंकि जो काम पिछले ५० वर्षो में हुआ वह इन दश वर्षो में संभव नहीं है आवश्यकताये भी बढ चुकी है इमानदारी समाप्त हो रही है बावजूद इसके विकाश हो रहा है. आपके आंकड़े सटीक हैं.

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