Saturday, April 30, 2011

कार्बेट पार्क से विलुप्त हुई कईं दुर्लभ प्रजातियां

 कार्बेट के इतिहास में हुए एक शोध में खुलासा

पाड़ा, उदबिलाव व घड़ियाल भी खतरे की जद में


चंदन बंगारी

देशभर में बाघों के सुरक्षित बसेरे के रूप में ख्यातिप्राप्त कार्बेट नेशनल पार्क अपनी स्थापना की 75 वीं वर्षगांठ के मौके पर प्लेटिनम जुबली समारोह मना रहा है। भारत के जंगलों में विलुप्ति की कगार पर पहुंचे वनराज को बचाने की सफलता हासिल कर चुके कार्बेट पार्क की सरहदों के भीतर करीब आधा दर्जन वन्य प्राणियों के वजूद के खात्मे की विडंबना भी जुड़ी हुई है।
जंगली कुत्ते
 हाल ही में पार्क के सात दशकों से भी पुराने इतिहास पर हुए शोध में यह खुलासा हुआ है कि पार्क की स्थापना के समय पाई जाने वाली आधा दर्जन दुर्लभ जीवों की प्रजातियां अब लुप्त हो चुकी हैं। हालत यह है कि पार्क में पाई जाने वाली कई अन्य प्रजातियों पर भी खतरे के बादल मंडरा रहे है। प्लेटिनम जुबली के अवसर पर कार्बेट पार्क के इतिहास से पर्यटकों को रूबरू कराने के लिए ईको टूरिज्म विंग ने ढिकाला में फोटो प्रदर्शनी लगाई है। फोटो प्रदर्शनी के लिए पार्क के इतिहास के दस्तावेज एकत्र करते समय यह हैरतअंगेज मामले का खुलासा हुआ। दरअसल 1936 में कार्बेट राष्ट्रीय उद्यान की स्थापना के समय यहां पाए जाने वाले जीव-जन्तुओं की सूची तैयार की गई थी। सूची में शामिल जंगली कुत्ते, लकड़बग्घा, लोमड़ी पार्क से पूरी तरह से गायब हो चुके है। जिम कार्बेट की किताबों व पार्क के पहले डीएफओ चैम्पियन की फोटोग्राफों में दिखाई देने वाले दुर्लभ जीव पैंगोलिन व रैटल का अस्तित्व भी पार्क से पूरी तरह से समाप्त हो चुका है।
किसी जमाने में पार्क के आसपास दिखने वाले चौसिंघे व बारहसिंघों भी अब लुप्त हो चुके है। 1977 में आखिरी ंबार बारहसिंघे को कार्बेट के ढिकाला जोन में देखा गया था। लुप्त हो चुके जीवों के अलावा अब वर्तमान में पार्क में बहुत कम संख्या में मौजूद हॉग डियर यानि पाड़ा, ऊदबिलाव, घड़ियाल अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे है। इन प्रजातियों पर संकट के बादल मंडरा रहे है। कार्बेट इतिहास पर शोध करने वाले मुख्य वन संरक्षक ईको टूरिज्म व पार्क के पूर्व निदेशक राजीव भरतरी ने बताया कि पार्क से लुप्त हो चुके जंगली कुत्तंे मध्य भारत, पेंच व कान्हा टाइगर रिजर्व में व लकड़बग्गा कभी राजाजी नेशनल पार्क में दिखाई देते है।
पैंगोलिन
 उन्होंने बताया कि बारहसिंघा कभी-कभार प्रदेश में झिलमिल ताल के आसपास दिखाई पड़ता है।  वहीं मामले में पूछे जाने पर कार्बेट पार्क के उपनिदेशक सीके कवदियाल ने लुप्त हुई प्रजातियों के बारे में किसी भी तरह की जानकारी से साफ इनकार कर दिया। उन्होंने कहा कि फिलहाल पाड़े के संरक्षण के लिए बाड़ा बनाने की योजना है। जिसका प्रस्ताव भारत सरकार को भेजा गया है, उसकी मंजूरी मिलने का इंतजार है। घड़ियाल संरक्षण को लेकर अभी कोई योजना नही है। हालांकि पार्क से दुर्लभ वन्यजीवों के लुप्त होने के पीछे कारणों को तलाशे जाना बेहद जरूरी है। वहीं लुप्त होने की कगार पर पहुंच चुके वन्यजीवों को बचाने की चुनौती भी कार्बेट प्रशासन के समक्ष है। मगर केवल बाघ संरक्षण में ही जुटे वन मकहमे के आला अधिकारियों को बाकी वन्यजीवों को बचाने की चिंता करने की आवश्कता है। अगर ऐसा न हुआ तो कार्बेट में बसेरा करने वाले वन्यजीवों को विलुप्त होते देर नही लगेगी।

 

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