Saturday, April 2, 2011

क्रिकेट के खेल को महायुद्ध होने से बचाएं

खेल की मदद से तोड़ें दुश्मनी के बैरियर

121 करोड़ भारतीयों की जीत का जश्न बनें अमन का पेगाम
       
           जहांगीर राजू रुद्रपुर

वर्ष 1983 के बाद भारतीय क्रिकेट टीम ने 2011 में दोबारा विश्व कप जीतकर इतिहास रच दिया है। 121 करोड़ भारतीयों की जीत के रुप में देखे जा रहे इस विश्व कप को युद्ध के बजाए दुनियाभर के लोगों को आपस में जोडऩे वाले हथियार के रुप में प्रयोग किए जाने की जरुरत है ताकि क्रिकेट का यह खेल महायुद्ध व महासंग्राम के रुप में न देखा जाए।
दुनियाभर में लोकप्रिय इस खेल को दो देशों की बीच बन रही दूरियों को कम करने के लिए एक ब्रीज के रुप में प्रयोग किया जाना चाहिए न कि इसे महायुद्ध व महासंग्राम का नाम देकर दो देशों के बीच फिर से दरारें बढ़ाने वाले हथियार के रुप में। भारत व पाकिस्तान के बीच खेले गए सेमीफाइनल मुकाबले को जहां दोनों देशों के डिप्लोमेट्स ने भारत-पाक संबंधों को मधुर बनाने के हथियार के रुप में प्रयोग करना चाहा, वहीं क्रिकेट नाम पर पैसा बना रहे मीडिया जगत व सांप्रदायिक ताकतों ने इसे महायुद्ध व महासंग्राम का नाम दे दिया। मीडिया इस मैच को महायुद्ध बनाकर चटपटे समाचारों को परोसकर दोनों देशों के बीच मधुर संबंध बनाने की हो रही पहल को करारा झटका दिया, वहीं क्रिकेट से जुड़े लोगों ने मीडिया की इस भूमिका का विरोध किया। मीडिया की इसी भूमिका की बदौलत पूरे देश में इस सेमीफाइनल को महायुद्ध के रुप में ही देखा गया, इस दौरान जहां एक-एक रन व एक-एक बाउंड्री पर आतिशबाजी देखने को मिल रही थी वहीं भारत व श्रीलंका के बीच हुए फाइनल मैच के दौरान देश के लोगों के बीच इतना अधिक उत्साह देखने को नहीं मिला। अगर यही मैच भारत व पाक के बीच खेला जा रहा होता को शरारती लोग खून खराबा करने से भी नहीं चुकते और इसे वास्तविवक महासंग्राम का रुप देने में जुट जाते। ऐसे में समाज के लोगों के जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वह क्रिकेट जैसे इस लोकप्रिय खेल को महायुद्ध व महासंग्राम होने से बचाएं। खेल को खेल ही रहने दिया जाए ताकि लोगों का खेल के प्रति उत्साह कभी भी कम न होने पाए। भारतीय क्रिकेट टीम ने 201१ का विश्व कप जीतकर जो इतिहास रचा है उसे विश्वभर में सभी देशों के बीच बेहतर संबंध बनाने के लिए उपयोग में किया जाए। 
भविष्य में भी हमें किसी भी खेल के लिए युद्ध व महायुद्ध शब्द के प्रयोग करने से बचते हुए खेल को खेल ही रहने देने का संकल्प लेना होगा, ताकि दो देशों के बीच विवादों की सीमाओं को तोडऩे वाले खेलों के प्रति लोगों का विश्वास कायम रहें। ऐसे में हम उम्मीद करते हैं कि भविष्य में भारत व पाकिस्तान के बीच होने वाले किसी भी खेल को महायुद्ध व महासंग्राम के रुप में नहीं देखा जाए और बेहतर खेल की मदद से दोनों देशों के बीच बढ़ रही दूरियों को कम किया जाए ताकि 121 करोड़ भारतीयों की जीत के इस जश्न को दुनियाभर में दोस्ती के पैगाम के रुप में याद किया जाए।



1 comment:

  1. Time the oafs in the media and the so called opinion leaders stop being jingoistic about sport which needs to be appreciated anbd enjoyed with only sportsmanspirit...

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