Sunday, April 10, 2011

पारंपरिक बीजों में सूखे को मात देने की ताकत

जैविक खेती में ही पहाड़ का भविष्य सुरक्षित

पारंपरिक बीजों का हाईब्रीड के बराबर उत्पादन

बीज बचाओ आंदोलन के संजोयक विजय जड़धारी से बातचीत

               (जहांगीर राजू रुद्रपुर)

मिट्टी, पानी, बीज और पेड़ बंद करो इनसे छेड़ की अवधारणा के साथ बीज बजाओ आंदोलन को राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने वाले सामाजिक कार्यकर्ता विजय जड़धारी बताते हैं कि पारंपरिक बीजों में सूखे को भी मात देने की ताकत है। वर्ष 2009 में पहाड़ में पड़े सूखे के दौरान इस बात की पुष्टि हुई। उन्होंने कहा कि पारंपरिक व जैविक खेती में ही पहाड़ का भविष्य सुरक्षित है।बीज बचाओ आंदोलन के संजोयक विजय जड़धारी का मानना है कि हाईब्रीड व जीएम बीज देश के किसानों के लिए धोखा है। उन्होंने बताया कि हाईब्रीड बीज दो तीन फसलें तो अच्छी देते हैं, लेकिन इन बीजों के साथ होने वाले रासायनिक खादों के बढ़ते प्रयोग के कारण इसकी उत्पादन क्षमता पर भी व्यापक असर पड़ता है। इसके मुकाबले पारंपरिक बीज लंबे समय तक अच्छा उत्पादन देते हैं। इससे जहां खेतों की उर्वरा शाक्ति बने रहती है, वहीं सूखे व कम पानी में भी इसके उत्पादन पर ज्यादा अन्तर नहीं पढ़ता है। उन्होंने बताया कि वर्ष 2009 में पर्वतीय क्षेत्रों में पड़े भयानक सूखे के दौरान मढुवा व रामदाने का सबसे अच्छा उत्पादन हुआ। उन्होंने बताया कि जहां हाईब्रीड बीच उत्पादन के साथ ही लोगों के लिए ढेर सारी बिमारियां लेकर आते हैं वहीं पारंपरिक बीज पोष्टिकता के साथ ही हमें बेहतर स्वाद भी देते हैं। वैज्ञानिक भी शोध में इस बात की पुष्टि कर चुके हैं

उन्होंने बताया कि पारंपरिक बीजों में प्रकृति लडऩे के साथ ही कम पानी में भी बेहतर उत्पादन देने की क्षमता होती है। उन्होंने बताया कि पहाड़ में पैदा किए जाने वाले धान थापाचीनी, चायना चार, कांगुडी व लठमार तथा गेहूं की मुडरी ऐसे प्रजाति है जो हाईब्रीड के बराबर उत्पादन देती हैं। उन्होंने बताया कि हाईब्रीड बीज में होने वाले रासायनिक खादों के उपयोग के चलते मानव स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है। पंजाब में हाईब्रीड व रासायनिक खादों के बढ़ते प्रयोग से मानव डीएनए के कमजोर होने पुष्टि ने इस बात को सिद्ध कर दिया है। उन्होंने कहा कि लोगों को पारंपरिक बीजों के संरक्षण के साथ ही जैविक व पारंपरिक खेती को बढ़ावा देने पर ध्यान देना होगा। उन्होंने बताया कि जलवायु परिवर्तन के इस बदलते दौर में पारंपरिक खेती ही किसानों बेहतर उत्पादन दे सकती है।

पहाड़ में पारंपरिक बीजों के भंडार

रुद्रपुर। बीज बचाओ आंदोलन के संजोजक विजय जड़धारी ने बताया कि पहाड़ में अब भी पारंपरिक बीजों के भंडार मौजूद हैं। उन्होंने बताया कि उनके पास वर्तमान में धान की 80 प्रजातियों के संग्रह के साथ ही 350 प्रजातियों के बारे में जानकारी है। इसी तरह से गेहूं की 10 प्रजातियों का संग्रह व 3२ प्रजातियों की जानकारी है। मढुवे की 12 प्रजातियों की जानकारी है। झंगुरे की 8, रामदाने की 3, राजमा की 220, नौरंगी की 9, लोबिया की 8, भट्ट व सोयाबीन की 5 व तील की 4 प्रजातियों के साथ ही सब्जियों के बीजों की सैकड़ों प्रजातियों का संग्रह है।  

1 comment:

  1. विज्ञान का प्रयोग कुदरत पर विजय पाने के लिए नहीं बल्कि कुदरत के पास इंसान के लिए मौजूद सौगातों को पाने के लिए किया जाना चाहिए. कुदरत के खिलाफ जाने से विकास नहीं विनाश ही संभव है.
    हाइब्रीड बीज व रासायनिक खाद का उपयोग करने से फसल की पैदावार में मात्रात्मक बढ़ोतरी तो होती है किन्तु साथ ही गुणवत्ता में भी कमी आ जाती है. यह भी देखा गया है की इनके लम्बे समय तक प्रयोग से ज़मीन की उर्वरता शक्ति घट जाती है. अगली हरित क्रांति निश्चित रूप से जैविक खेती से ही संभव है.
    -------- रवि बिजारनिया-----------

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